तलाक की कगार पर खड़ी लड़की के जीवन में बहार - Hindi Sex Stories
- Kamvasna
- Mar 22
- 17 min read
दोस्तो, मेरा नाम अनिकेत भारद्वाज है.मैं कामवासना का नियमित पाठक हूँ. सभी पाठकों को मेरा कामवासना भरा नमस्कार.
मेरी लम्बाई पूरी छह फुट की है और मैं कसरती शरीर का युवा हूँ. मेरी उम्र 26 साल है.
लड़कियों की जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि मेरे लंड की लम्बाई 7 इन्च है और मोटाई 3 इन्च है.
साथ ही मेरा लंड गेहुंआ रंग का है और टोपे का रंग बिल्कुल गुलाबी है.
मेरी चौड़ी छाती मेरे शरीर की शोभा बढ़ाती है क्यूंकि मेरा सीना दो भागों में मजबूती से बंटा हुआ है, जिस पर हाथ फेरते ही महिलाओं की चुत भभक उठती है.
हुआ यूं कि आज से एक महीने पहले मैं अपने निजी काम से इंदौर से दिल्ली जा रहा था.
मेरी सीट एसी बोगी में बुक थी.
जब मैं अपनी सीट पर पहुंचा तो मेरी सीट पर एक 35 साल की औरत बाल खोल कर अपने बालक और बालिका के साथ बैठी हुई थी और उसने मेरे लिए दिए गए कम्बल और बेडशीट को पूरी तरह से गंदी कर रखी थी.
जब मैंने उससे टिकट के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि उसकी सीट बुक नहीं है.
मैंने उसने उठने को बोला, तो वह सारी चादर सिकोड़ कर एक कोने में हो गयी.
मुझे गुस्सा आया तो मैं उस पर बरस पड़ा और कोच के अटेंडेंट से नयी चादर और कम्बल तकिए लेकर मैंने अपनी सीट को दुबारा से सैट किया.
इतने में उसकी नन्हीं सी बालिका मेरे हाथ पर हाथ रख कर खेलने लगी और वह औरत दूसरी सीट पर साइड में बैठ गयी थी.
पर मुझे वह गुस्से से देख रही थी.
उसने अपनी लड़की को खींचा और डांट कर गोदी में ले लिया, पर वह छोटी बालिका थी, तो वह फिर से कूपे में घूमती हुई मेरे पास आकर खेलने लगी.
मैंने उसके सैंडल उतार कर उसे अपने आगे की साइड लोअर में बिठा लिया था.
मैं उसे चॉकलेट देकर उसके गाल से खेलने लगा.
इतने में टीटीई आया और टिकट देख कर आगे को जाने लगा.
उस औरत ने टीटीई से सीट मांगी तो उसने ‘गाड़ी फुल है’ का बहाना बना दिया और आगे चला गया.
अब वह मायूस सी होकर बैठ गयी.
तभी उसका छोटा बालक रोने लगा.
वह उसे अपना दूध पिलाना चाहती थी पर उधर ऐसी कोई सुविधा नहीं थी, जिससे वह दूध पिला सके.
अब उसने मुझसे सीट को गंदी करने के लिए माफी मांगी और उस सीट पर खिड़की तरफ बच्चे को दूध पिलाने की जगह के लिए पूछा.
मैंने बेडशीट को खोल कर फैला दिया और उसका आग्रह स्वीकार कर लिया.
मैंने उसे कम्बल ओढ़ने को भी दे दिया ताकि वह ब/च्चे को ढक कर आराम से ब्रेस्ट फीडिंग करा सके.
इधर मैं बता दूँ कि उसका नाम जूही था.
उसका चेहरा एकदम गोल था और उसके चेहरे पर कोई भी दाग या तिल भी नहीं था जो उसकी खूबसूरती को कम करे.
जूही की आंखें तीखी व भरी हुई थीं और पतली नुकीली भौएं थीं.
प्याली जैसी सफेद आंखें, जिसमें गोल सुनहरा चक्र था … जो उसके चह्ररे पर किसी भी कयामत से कम नहीं था.
लम्बी सुराही सी गर्दन और सुडौल कूल्हों तक लटकते हुए लंबे रेशमी बाल.
सीने पर 36 इंच के भरे हुए चूचे, जो उसके टॉप में से बाहर निकलने को उतावले थे.
एकदम सपाट मादक पेट, जिस पर कुंए सी गहरी नाभि, उसके रूप यौवन में चार चाँद लगा रही थी.
सच कह रहा हूँ दोस्तो … कि इतनी करारी सुडौल जांघें मानो केले के तने जैसी हों और उसकी अगर नग्न जाँघें ही किसी को दिख जाएं, तो उसे जूही के ऊपर का जिस्म देखने का मन ही ना करे.
सबसे कातिलाना थे, उसके फूल जैसे खिले हुए रस से भरे हुए होंठ, जिनमें शहद से भी ज्यादा मीठा रस छलकने को आतुर था.
वह मेरे नजदीक आकर बैठ गयी थी.
उसके बदन की महक मुझे उसकी ओर खींच रही थी.
पर मैंने खुद को अलग किया और गेट की तरफ जाकर खड़ा हो गया ताकि वह अपने बेबी को बिना किसी संकोच के अच्छे से दूध पिला सके.
करीब 30 मिनट बाद उसकी बेबी मेरे पास आयी और खाली बॉटल से मारने लगी.
वह मुझे मम मम कह कर पानी मांगने लगी.
पर उसमें पानी नहीं था.
मैंने उसे गोद में उठा लिया और बाहर का नजारा दिखाते हुए उससे खेलने लगा.
करीब एक घंटा के बाद कोई स्टॉप आया और गाड़ी रुकी.
तो मैंने एक बॉटल पानी और चिप्स का पैकेट उसे दिलाया.
फिर उसे उठा कर अपनी सीट पर आ गया.
जूही और मेरी अभी भी कोई खास बात नहीं हुई थी.
फिर जब जूही ने अपनी बेटी से पूछा कि ये सब कहाँ से लायी?
तो उसने मेरी तरफ इशारा करके बताया.
उसने अपनी बिटिया को डाँटा.
मुझे उस पर दया आयी कि बेचारी मेरी वजह से डांट खा रही है.
बाकी आस पड़ोस में बैठे हुए लोग उसको पुचकारने वाऊर खिलाने लगे, तो बात आयी गयी हो गयी.
तभी जूही सब सामान के पैसे मुझे देने लगी, पर मैंने उसके सामने हाथ जोड़ कर मना किया और पैसे वापस रखने को बोला.
उसने कुछ नहीं कहा.
करीब चार घन्टे के सफर में मैं बच्ची से खेलता रहा, पर जूही से कोई बात नहीं हुई.
जूही भी उठ कर अपनी पहले वाली जगह पर ही बैठ गयी थी.
अब सब लोग सीट खोलने लगे.
जिन सज्जन की सीट पर जूही बैठी थी, वे उसको उठाने लगे.
सब लोग खाना आदि खाकर सोने की तैयारी करने लगे थे.
जूही उधर से खड़ी हो गयी थी.
वह जीन्स और टॉप में थी और मैं उसे ऊपर से नीचे तक निहार रहा था.
सब सोने लगे और लाईट बन्द करने लगे.
उसकी बेटी मेरे बाजू में सो गयी थी.
तो मैंने उसे पैर सिकोड़ कर बैठने के लिए इशारा किया तो उसने थैंक्स बोला और बेबी को गोद में लेकर छाती से लगाकर सुलाने लगी.
अब रात के 11 बज गए थे.
मेरा लंड अकड़ गया तो मैं फ़्री सेक्स कहानी पर कहानी पढ़ने लगा और एक चादर के अन्दर हाथ डाल कर हल्के हल्के से लौड़े को सहलाने लगा.
मेरे पैर घुटनों से ऊपर की तरफ फ़ोल्ड थे तो उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था.
वह भी अपने पैरों को हल्के से मोड़ कर ऊपर को बैठ गयी थी.
अब मेरे पैर उसके पैर आपस में लग रहे थे.
इतने में उसकी बेटी उठी और उसने मेरा फोन नीचे गिरा दिया, जो जूही की साइड गिरा.
उसने स्क्रीन पर देखा, तो उसका आंखें बड़ी बड़ी हो गयी थीं.
अब मुझे शर्म भी थी और हवस भी.
तभी उसकी चुप्पी टूटी और उसने पूछा कि तुम भी ये सब पढ़ते हो!
मैंने पूछा- तुम भी मतलब क्या तुम भी?
यह सुनकर वह फिर से चुप हो गयी.
मैंने जोर दिया तो उसने बताया कि हाँ मैं अब ये सब पढ़ लेती हूँ, जब मेरा मूड होता है.
मैं- क्यों आपके तो पति है न!
जूही- नहीं, हम लोग दो साल से अलग रह रहे हैं, जब से ये बेटा हुआ है, तभी से!
मैं- क्यों?
इस पर उसने छिपे हुए शब्दों में जो बयां किया, उसे मैं इधर खुले शब्दों में लिख रहा हूँ.
जूही- ये बच्चा ऑपरेशन से हुआ था, तो मैं सेक्स नहीं कर पाती थी पर प्यास मुझे खाए जा रही थी. मेरी चुत चौड़ी हो चुकी थी, जिसे चोदने में मेरे पति को मजा नहीं आता था. वे जल्दी झड़ जाते थे और मैं प्यासी ही रह जाती थी तो झुंझला जाती थी. उसी की वजह से बात बढ़ती गयी और हम अलग अलग हो गए, पर अभी भी कोर्ट में केस चल रहा है. मैं उसी की तारीख पर जा रही हूँ.
मैं- बस इतनी सी बात! ऐसा नहीं हो सकता कि सिर्फ सेक्स की वजह से सम्बन्ध खत्म हो जाएं.
जूही- जाने दो, मुझे अपने रिश्ते को किसी के साथ साझा नहीं करना.
मैं- तुम काफी जज्बाती हो रही हो. वैसे एक बात बताओ कि तुम ये कहानी कब से पढ़ रही हो?
जूही- एक साल से, मेरी एक दोस्त ने मुझे इसके बारे में बताया था.
मैं- कोई खास लेखक है, जो तुम्हें पसंद हो?
जूही- नहीं, मैं कोई भी कहानी खोलती हूँ और कमेंट पढ़ने के बाद पता चल जाता है तो पढ़ लेती हूँ, वरना पिक्स देखती हुई सो जाती हूँ.
मैं- कमेंट … किसके कमेंट?
जूही- वैसे तो सभी के, पर एक अनिकेत है कोई, जो मुझे सही लगता है.
मैं- तो तुमने कभी बात की?
जूही- नहीं! मैं डरती हूँ और बचती हूँ ऐसी जगह बात करने से. क्योंकि वहां सब जिस्म के भूखे दिखाई देते हैं और सभी बस औरत का जिस्म भोगना चाहते हैं. इधर मुझे बस दूसरों के करने के भोग को पढ़ने में ही शान्ति मिल जाती है.
मैं- मान लो आज अनिकेत ही तुम्हारे सामने बैठा हो तो क्या बात करना चाहोगी!
जूही- हां शायद अपने रिश्ते की, जो बिखरा हुआ है.
मैं- तो बोलो, मैं ही अनिकेत हूँ.
जूही- हा हा कुछ भी.
मैं- कोई शक है क्या?
जूही- शक … जैसे तुम उठ कर गए, बालक की तरह, उस हिसाब से तो नहीं लगता!
मैं- फोन दो, मैं कमेंट करता हूँ और तुम पढ़ना.
मैंने करने से पहले वह कमेंट उसे सुनाया और फिर करके दिखाया.
अब वह चौंक गयी और शर्मा कर चुप हो गयी मानो उसे सांप सूंघ गया हो.
मैं- क्या हुआ?
जूही- कुछ नहीं!
वह अपने आपको ढकने लगी.
मैं- घबराओ मत, अब बताओ क्या हुआ है?
जूही- वही जो बताया था. उसके बाद वह बाहर भी मुँह मारने लगे थे, जो मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने अलग रहने का फैसला ले लिया.
मैं- पर तुम इतनी मस्तानी हो, जैसे काम की देवी खुद सामने बैठी हो!
जूही- ये मक्खन लगाने वाली बातें सबको आती हैं, पर रिश्ता निभाना नहीं आता.
मैंने उसके पैर को दबाया और सांत्वना देते हुए कहा- सब ठीक हो जाएगा, तुम बेफिक्र रहो.
जूही- पर कैसे?
मैं- बस जो मैं कहता जाऊं, वह तुम करती जाना.
जूही- मैं तुम पर भरोसा क्यों करूं?
मैं- रास्ता कुछ और बचा नहीं … या तो करो वरना कोर्ट में फैसला तो आना ही है!
जूही कुछ सोचती हुई रुकी और अगले पल बोली- अच्छा बताओ, मुझे क्या करना होगा!
मैं- सेक्स को एक उच्चतम स्तर पर करना और अपने पति को बता देना कि तुमसे बेहतर कोई नहीं.
जूही- पर मैं क्या करूं?
मैं- तुम ये तरीका कर लो, फिर जब दिल्ली पहुँच जाओ तो मुझे कॉल करना. तब मैं तुम्हें आगे बताऊंगा.
फिर हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ पैर सीधे कर लिए.
अब मेरे आगे उसका बेटा सो रहा था और उसके आगे उसकी बेटी.
मैं सो नहीं पा रहा था.
ऊपर से मर्द जात अपनी औकात दिखा रहा था.
मैं उठ कर बैठ गया तो वह भी बैठ गयी.
उसने अपने बालों को मोड़ कर पूछा- क्या हुआ?
मैं- सो नहीं पा रहा यार, जगह कम है न. ऊपर से ये सोने नहीं दे रहा है.
जूही- रुको!
उसने बेटी को उठा लिया.
अब वह बोली- तुम पैर खोल कर लेट जाओ.
मैंने वैसे ही किया.
वह मेरे पैरों के बीच में बैठ गयी और उसने बिंदास मेरे सीने पर सिर रख लिया.
उसके बाद उसकी गोद में बेटा और बेटी साइड में लेट गयी.
मैंने उसकी रजामंदी समझ ली और अपना हाथ उसके चूचे पर रख दिया.
नीचे से अपना पूरा लंड उसकी गांड से चिपका दिया, ऊपर से चादर ओढ़ ली.
साइड में दोनों सीट से एक चादर बाँध दी ताकि अन्दर एक कंपार्टमेन्ट सा बन जाए.
फिर धीरे से कंबल के अन्दर उसके कंधे से हाथ ऊपर से नीचे चुत तक कपड़ों के ऊपर से फिरा रहा था.
अब आगे की कहानी को आप जूही की जुबानी सुनिएगा.
मैंने बहुत सोचा उसके सीने से लगने से पहले, पर मैं भी क्या करती … स्त्री को अपनापन किसी से मिले, तो वह मदद खास हो जाती है.
सफर के दौरान अनिकेत से मिलना मुझे एक अलग अहसास जगा चुका था तो मैं खुद ही सीने से लिपट कर छाती पर सर रख कर सोने लगी.
पर उसकी उंगलियों की सरसराहट ने मेरे जिस्म में मानो आग लगा दी थी.
वासना से भभक रहे तन पर एक मर्द का हाथ ऐसा लगा मानो पहली बारिश से हल्की मिट्टी सी सौंधी महक आने लगी हो.
अपनी छाती से ऊपर से उसके हाथ को जकड़ कर पकड़ा, तो उसके दूसरे हाथ ने मेरी नाभि पर उंगलियों को थिरकाना शुरू कर दिया.
साथ ही मेरी गर्दन पर एक गर्म सांसों का अहसास मेरे सर पर वासना के तूफान को हावी कर रहा था.
पर मैं बस कसमसा सकती थी.
मेरे बदन में जो चींटियाँ सी रेंग रही थीं, उनकी रेंगने की सरसराहट से मेरे पेट में गुड़गुड़ हो रही थी.
दूसरी तरफ ये भय भी था कि कोई हमें ऐसा करते हुए देख ना ले.
इतने में ही एक भारी और कठोर से हाथ ने मेरे जीन्स की चुस्त पकड़ को चीरा और सीधे मेरी चुत के होंठों पर जाने लगा.
आह … इस मर्दाना स्पर्श से मेरी आंखें बन्द हो गईं और मैंने उस हाथ को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया.
साथ ही मैंने अपने दोनों पैरों को आपस में जोर से भींच लिया.
उसी पल मैंने अपने होंठों को अनिकेत के ठोड़ी पर चिपकाया और सरका कर उसके होंठों पर जमा दिए.
मैंने अपने होंठों से उसके होंठों को डांटने के अंदाज में चूमा और अपनी गर्दन को हिला कर चुत को छेड़ने से मना किया.
फिर प्यार भरे इशारे से उससे हाथ बाहर निकालने को कहा.
पर उसकी उंगली लगातार मेरी चुत की लकीर पर एक लम्बे से औजार के आगमन की तरह लग रही थी.
मेरे पैर कसे होने की वजह से चुत कस गई थी और उसकी उंगली उसी कसावट में मेरी क्लिट पर रुक गई थी.
उसकी उंगली मेरे दाने को लगातार छेड़ रही थी.
मैंने मना किया तो वह अपना हाथ बाहर निकालने लगा और मेरे कंधे पर अपने सिर को रख कर आंखों को बन्द कर लिया.
अब उसका हाथ बाहर आ गया था तो उसने अपने हाथ में मेरे हाथ को फँसा लिया.
उसके बाद हमारी आंख ऐसे लग गयी, जैसे हम दोनों एक विवाहित जोड़े हों.
सुबह मेरी आंख 4 बजे खुली.
दिल्ली आने में अभी और 2 घन्टे का समय बाकी था.
मैं काफी हल्का महसूस कर रही थी और मेरा सर भी अब हल्का लग रहा था, पर ऐसा क्यों था, यह मुझे समझ नहीं आया.
फिर जब मैंने नीचे हाथ लगाकर देखा, तो मेरी चुत कामरस से भीगी हुई थी.
मैं उठी और अनिकेत को उठा कर उसकी जकड़ से छूट कर उसे पूरा सीधा लिटा दिया.
फिर वाशरूम में जाकर खुद को फ्रेश किया और टिश्यू पेपर से पूरा रस अच्छे से साफ किया.
जब मैं बाहर आयी तब तक अनिकेत जग चुका था और उसका लंड एकदम कठोर होकर तन चुका था.
मन तो मेरा था कि एक बार में ही अपनी चुत में लील जाऊं, पर सामाजिक व्यथा ऐसी थी कि बस देख ही सकती थी.
मैं दूसरी ओर बैठ गयी और अनिकेत खड़ा होकर फ्रेश होने जाने लगा कि तभी मेरे फोन पर कॉल आयी.
‘आज ही कोर्ट की सुनवाई है एक बजे की रोहणी कोर्ट में.’
अनिकेत के आने के बाद मैंने उसे सारा वाकिया बताया.
मैं- अनिकेत यार, मैं ये रिश्ता खत्म नहीं करना चाहती, मुझे अपने पति के साथ रहना है.
अनिकेत- तो माफी माँग लो और सीधे ये बात उससे कह दो.
मैं- पर मैं माफी क्यों माँगू जब वह किसी दूसरी स्त्री के साथ रिश्ते बना रहा है तो मैं माफी क्यों मांगने लगी?
अनिकेत- तो फिर जो उसे बाहर जाने पर मजबूर कर रहा है, वह उसे तुम दे दो!
मैं- सेक्स तो मैं देती ही हूँ और मेरे पास क्या है देने को?
अनिकेत- सेक्स ही मत दो, बाकी सब दे दो.
मैं- बाकी! क्या?
अनिकेत- तारीख कब की है?
मैं- आज की.
अनिकेत- चलो मैं साथ चलता हूँ.
मैं- पर तुम क्या करोगे वहां जाकर?
अनिकेत- बस भरोसा रखो.
मैं- ठीक है!
अब हम दोनों 6 बजे दिल्ली उतरे और सामान एक अनिकेत के जानकार के फ्लैट में रख कर निकल गए.
जब कोर्ट पहुंचे तो वहां मेरे माता-पिता आये हुए थे, जो अभी भी समझा रहे थे कि ये सब किस्से आम हैं, होते रहते हैं.
पर मुझे मंजूर नहीं था कि कोई मेरे होते हुए मेरे ही घर में हाथ डाले.
मैंने सभी को अनिकेत को दोस्त कहकर मिलवाया.
फिर अनिकेत कुछ दर बाद पति के वकील के साथ हंस हंस के बात करता रहा था.
जब मैं उधर गयी तो पता चला कि वह वकील उसके स्कूल का दोस्त है.
मैंने उधर बैठ कर वकील और अनिकेत के सामने सारी बात रख दी जो रिश्ते में दरार ला रही थी.
अब माहौल बहुत भावुक था.
तब मेरे वकील और उसके वकील ने मिलकर एक कहानी बनायी और मेरे पति को हर तरह से डरा दिया और कोर्ट में ऐसे पेश किया कि याचिका खारिज हो गयी.
और हम दोनों को 6 महीने एक साथ और रहने का वक्त दे दिया गया.
कोर्ट ने कहा कि यदि इस मियाद में भी अगर सब कुछ ठीक नहीं रहता है, तब फिर से सुनवाई होगी.
मैं इस फैसले से खुश भी थी और दुखी भी.
पर अब मेरे पति के वकील की फीस भी मुझे देनी पड़ी.
फिर अनिकेत और मैं फ्लैट पर जाने लगे और बेबीज को मैंने माता पिता के साथ भेज दिया.
अब मैं बिंदास खुश होकर अनिकेत के साथ फ्लैट पर आ गयी.
शाम के 7 बज चुके थे.
कमरे में घुसते ही दरवाजा लगा कर मैंने खुद अनिकेत को भींचा और उसको दीवार से सटा दिया.
मैंने जोर लगाते हुए उसके सीने से टी-शर्ट खींच कर अलग कर दी और अपनी गांड को मटकाती हुई उसके होंठों पर होंठ रख कर चूसने लगी.
उसने मेरी गांड पर एक जोर का थप्पड़ मारा और मेरे पूरे वजन को अपनी गोदी में भर कर उठा लिया.
उसने मुझे अपने हाथों के झूले में लटका कर दीवार से सटाते हुए उठा लिया.
साथ ही अपनी जीभ मेरे होंठों पर फिराते हुए मेरी जीभ को चूसने लगा.
नीचे से वह मेरी गांड को अपनी हथेलियों में जकड़ कर जोर जोर से भींचने लगा.
मेरे मुँह से ‘उमं म्हआ आआह मर गयी प्लीज आअ हअ.’ की जोरदार आवाज निकली और मैंने उसके बाल पकड़ लिए.
करीबन 20 मिनट के लम्बे होंठ मिलन से हम दोनों की सांसें मानो थम सी गयी थीं.
वह मुझे उठा कर बाथरूम की ओर लेकर आ गया.
उधर मुझे नीचे उतार कर मेरी जाघों के बीच में आकर एक लम्बी सी सांस लेकर मेरी चुत में खलबली सी मचा दी.
मैंने बाल पकड़े और उसे भींचने की कोशिश की, पर तब तक उसने मेरी पैंटी जींस के साथ नीचे कर दी थी.
अब मैं अपने हाथ से अपनी चुत को छुपाने लगी, पर उसने हाथ को ऐसे फैलाया, जैसे गोल रॉड को सीधा करते हैं.
उसने अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को एक साइड हैंगर से बाँध दिया और हैंड शॉवर की धार से मेरी छाती को खुलने पर मजबूर कर दिया.
मेरी चूचियाँ एकदम कड़क होकर उठ चुकी थीं और मेरे पैर कांप रहे थे.
जिस्म की गर्मी और वासना की भूख मुझे बेहाल किए हुई थी.
अब अनिकेत ने मेरी टांगों को अपने कंधों पर रख लिया था और पैंटी को चुत पर मसलते हुए धीरे धीरे नीचे को उतारने लगा था.
उसने मेरी जींस और पैंटी दोनों को मेरी दोनों टाँगों से निकाल कर एक टांग में फंसा हुआ छोड़ दिया था.
अनिकेत ने मेरी नग्न जांघ पर किस किया और ऊपर बढ़ते हुए उसने हाथ से चुत को अपनी मुट्ठी में भींच लिया.
मेरे मुँह से एक लम्बी चीख निकल गयी और आंखों में पानी भर आया.
मैं पैरों से उसको मारने लगी थी.
पर उसने अपनी पोजीशन कुछ ऐसी बना ली थी कि उसकी जुबान मेरी चुत लगातार ऐसे चलने लगी थी मानो कपड़े पर कैंची चल रही हो.
मेरी सांसें ऐसे धौंकनी से टक्कर लेती हुई चल रही थीं, मानो मैं एक लम्बी रेस में दौड़ लगा रही हूँ.
वह मेरी चुत को चूसते हुए धीरे धीरे ऊपर को आने लगा.
वह अब नाभि से चुत तक जीभ को फेरता और मुझे बार बार सिहरन के दरिया में हिलाने पर मजबूर करने लगा.
नाभि और चुत पर एक अजीब सी सिहरन हो रही थी और बाकी बीच के हिस्से में उसकी जीभ फेरने से गुदगुदी हो रही थी.
ऐसा खेल मैंने कभी नहीं खेला था.
इसी के साथ वह मेरी क्लिट को उंगली से छेड़ते हुए उसे सहला रहा था.
मेरे पैरों ने ऊपर उठ कर उसकी गर्दन पर अपना कब्जा जमा लिया था.
उसका सर मेरी टाँगों में इस कदर हो गया था मानो कैंची के बीच में अखरोट हो.
इधर उसकी जीभ धीरे धीरे मेरी चुत के अन्दर जाने लगी और बाथरूम में केवल मादक आवाजें ही आ रही थीं.
मेरी चुत की दीवारों से उसकी जीभ टकरा कर गजब की आग सुलगाने लगी थी.
करीब पांच मिनट के बाद मैं झड़ गयी और उससे रुकने की मिन्नत करने लगी.
अब वह उठा और मुझे खोल दिया.
मैंने अपनी ब्रा और टी-शर्ट खुद ही अलग कर दी और अनिकेत का पैंट खोल कर उसे उतार दिया.
अब हम दोनों जन्म जात नंगे हो चुके थे.
फिर जैसे ही मैंने अनिकेत का लंड पकड़ा, वह एकदम ऐसा सख्त था मानो आइसक्रीम की कोन में मलाई भर दी हो.
उसके लौड़े से जीभ लगाते ही मानो गर्म सोया सौस का सा टेस्ट आया.
मैंने एक पल को उस स्वाद को जज़्ब किया और अगले ही पल लपक कर पूरा लंड लीलने की कोशिश करने लगी.
पर मैं उसका पूरा लंड अन्दर नहीं ले पा रही थी.
फिर उसने अपना मुँह ऊपर किया और एक बार मुझे देखा.
फिर मेरी गर्दन पर हाथ से सहलाते हुए पूरा लंड मेरे मुँह में ठूंस दिया और मेरी नाक बन्द कर दी.
मेरी सांस घुटने लगी थी और मेरी आंखें लाल हो चुकी थीं.
वह गर्दन पर ऐसे हाथ ठोक रहा था जैसे कील पर हथौड़ा चल रहा हो.
इतने में बाथ टब भर गया था.
अब उसने मेरे मुँह से लंड निकाला तो मैं गिर गयी और मानो बेहोश ही गयी.
उसने मुझे गोद में उठाया और बाथ टब में बैठा दिया.
उसमें गुनगुना पानी था.
उस वक्त मुझे गर्म पानी का स्पर्श बहुत अच्छा लगा.
मेरे पीछे से आकर अनिकेत बैठ गया और मैं उसके सीने से अपनी पीठ लगाकर बैठ गयी.
वह अपने एक हाथ से मेरे चूचे को मसल रहा था और एक हाथ से मेरी चुत को सहला रहा था.
मैं उसके हाथ पर गर्दन रख कर केवल सुख का अहसास कर रही थी.
तभी अनिकेत ने कान में कहा- पलट जाओ!
मेरी गर्दन पर एक किस करते हुए उसने मेरे होंठों तक अपने होंठ लाकर लगा दिए.
हम दोनों ने एक लम्बी समूच मारी.
मैंने हाथ से उसे हटाने की कोशिश की पर उसने मुँह नहीं हटाया.
मैंने इशारे से पूछा कि पलटना कैसे है!
तो उसने कहा- खड़ी हो जाओ!
मैं खड़ी हो गयी. उसने मेरे दोनों पैरों को खोला और लंड ऊपर को करके खड़ा करते हुए इशारा कर दिया.
मैं समझ गई कि क्या करना है.
मैंने अपनी चुत पर थूक लगाया और लंड के ऊपर बैठ गयी.
उसकी कमर के दोनों ओर अपने पैरों को घुटनों से मोड़ सैट कर लिए.
हमारे होंठ ऐसे मिल गए मानो हम दोनों ही जन्मों से प्यासे हों.
फिर धीरे धीरे नीचे से कमर हिलने लगी थी तो मस्ती चढ़ने लगी.
उसी मस्ती में ऊपर हम दोनों की जुबानें एक दूसरे से मिल रही थीं.
उसके हाथ लगातार मेरी कमर पर चल रहे थे और चूचों में कड़कपन आ गया था.
कभी वह मेरे दूध पीने लगता तो कभी निप्पल को खींच कर छोड़ देता.
कुछ मिनट बाद हमारे होंठ अलग हो गए थे और उसके मुँह में मेरे चूचे कुल्फी की तरह घुमा घुमा कर चूसे जाने लगे थे. बीच बीच में उसके दांत भी लग रहे थे.
मस्ती का इतना गजब आलम था कि क्या ही बताऊँ!
मैं अब शिथिल हो चुकी थी और अपनी कमर को उचका उचका कर अपनी चुत की गहराई में लंड को समाती और निकालती जा रही थी.
बाथटब में पानी की फच फ्च्छ की आवाज आ रही थी और मेरे मुँह से उम्ह्ह उम्ह्ह की आवाज आ रही थी.
जब जब मुँह हटता तो मुँह से बेशर्म रांड की सी आवाज निकलती- आह … खाआ जाओ मुझे … आह म्ह्ह आहह्ह … प्लीज कम फास्ट म्ह्म्ह … थोड़ा और तेज चोदो मुझे … हह मर गयीई अहह आह म्म्ं!
मेरे जिस्म से ज्वालामुखी की सी आग मानो बहने लगी थी और मेरी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी.
पर पता नहीं क्यों … मुझे झड़ने का मन ही नहीं कर रहा था.
उस गुनगुनाहट भरे माहौल में ऐसा लग रहा था मानो ये लम्हा यहीं थम जाए और मेरी चुत में ऐसे ही लंड रगड़ता रहे.
मैं तीन बार शिथिल हो चुकी थी पर मेरा मन अभी भी उस लंड का स्वाद लेना चाहता था.
इतने में अनिकेत का काम हुआ और उसने मेरे बाल पकड़ कर मुझे अपने में समा लिया.
उसने मेरी चुत के अन्दर ही सारा रस भर दिया.
हम दोनों की सांसें बहुत तेज चल रही थीं, पर फिर भी लब मिले हुए थे.
मुझे हल्का महसूस हो रहा था, मैं शान्त हो गयी थी.
फिर उसने मुझे छोटे शिशु की तरह नहलाया और साफ किया.
मैंने वापिस कपड़े पहने और एक दूसरे की बांहों में समा कर फिर से एक जोरदार किस किया.
मैं उससे फिर से मिलने का वादा करके घर के लिए निकल पड़ी.
रास्ते में मेरी चुत में सरसराहट हो रही थी और जो अनिकेत ने निशान दिए थे वे भी दर्द कर रहे थे, पर जिस्म हल्का होने की वजह से मन शान्त था.
इसके बाद हमारी मुलाकत कई बार हुई और फोन पर भी हमने अपने जिस्म की कामुकता हल्की की.
उसका एक अलग ही अहसास था मानो सेक्स को सेलिब्रेट कैसे करना है, अनिकेत के प्यार करने के तरीके में ये एक खूबी थी.
आज भी मेरा रिश्ता अनिकेत से अच्छा है और मेरे जीवन में पति के साथ भी सेक्स को लेकर फिर नये सिरे से आनन्द की प्राप्ति होना शुरू हुई है.
अब मुझमें वह खामी नहीं, बल्कि सेक्स में एक नया बीज फूटा है. अनिकेत ने चुदाई में बहुत सारे आसन भी मुझे सिखाए थे, उनके जरिए हमने अपने सम्बन्ध बनाये तो आज मेरा अपने पति से रिश्ता भी सही हो गया है और खुशी भी है.
आगे की Hindi Sex Stories अनिकेत की जुबानी:
ये एक नया अनुभव था, जहां हम दोनों के बीच बहुत कम समय में जिस्मानी ताल्लुकात बने.
पर यह एक ऐसा सम्बन्ध था, जिसने पत्नी को पति की जरूरत समझ आई.
उसने अपने पति को दिल से स्वीकारा क्योंकि जूही जब मेरे साथ सेक्स कर चुकी थी.
तब मैंने उससे पूछा था कि अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द से सेक्स करके कैसा लगा?
तब उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा.
मैंने उसे समझाया कि यह एक सच्चाई है कि लड़की हो या लड़का उसे सेक्स की जरूरत होती ही है.
यदि पत्नी अपने पति को सहयोग नहीं करेगी तो वह दूसरी लड़की की तरफ झुकता चला जाएगा.
ठीक यही बात लड़की को भी महसूस होती है. तुमने मेरे साथ सेक्स जरूर किया है लेकिन जीवन भर का साथ सिर्फ पति के साथ ही निभता है.
भोग वासना में कुछ समय उपरांत बदलाव होना आवश्यक है, उससे रिश्ते में मिठास बनी रहती है.
ये हर दांपत्य को समझना चाहिये और वासना में चरमसुख पाने में समयानुसार बदलाव करते रहने चाहिये.
जिन्दगी का सफर है, हंस कर बिता ले गालिब.
जिस्म की भूख को खुल कर आजमा ले गालिब.
अहसासों की नाव है, होंठ से होंठ तो मिला ले गालिब.
आप लोगों को मेरी Hindi Sex Stories कैसी लगी, मुझे मैसेज करके जरूर बताएं.
धन्यवाद.
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