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पति के हब्शीपने से तंग आके बॉस से चुदवा लिया-२ : Kamvasna Sex Stories


अशोक अब अगले शुक्रवार की तैयारी में जुट गया। वह चाहता था कि अगली बार जब वह कामिनी के साथ हो तो वह अपनी सबसे पुरानी और तीव्र इच्छा को पूरा कर पाए। उसकी इच्छा थी गांड मारने की। वह बहुत सालों से इसकी कोशिश कर रहा था पर किसी कारण बात नहीं बन रही थी।


उसे ऐसा लगा कि शायद कामिनी उसे खुश करने के लिए इस बात के लिए राज़ी हो जायेगी। उसे यह भी पता था कि उसकी यह मुराद इतने सालों से पूरी इसलिए नहीं हो पाई थी क्योंकि इस क्रिया मैं लड़की को बहुत दर्द हो सकता है इसीलिए ज्यादातर लड़कियाँ इसके खिलाफ होती हैं।


उनके इस दर्द का कारण भी खुद आदमी ही होते हैं, जो अपने मज़े में अंधे हो जाते हैं और लड़की के बारे में नहीं सोचते। अशोक को वह दिन याद है जब वह सातवीं कक्षा में था और एक हॉस्टल में रहता था। तभी एक ग्यारहवीं कक्षा के बड़े लड़के, रणवीर ने उसके साथ एक बार बाथरूम में ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी तो अशोक को कितना दर्द हुआ था वह उसे आज तक याद है।


अशोक चाहता था कि जब वह अपनी मन की इतनी पुरानी मुराद पूरी कर रहा हो तब कामिनी को भी मज़ा आना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो न केवल उसका मज़ा दुगना हो जायेगा, हो सकता है कामिनी को भी इसमें इतना मज़ा आये की वह भविष्य में भी उससे गांड मरवाने की इच्छा जताए।


अशोक को पता था कि गांड में दर्द दो कारणों से होता है। एक तो चूत के मुकाबले उसका छेद बहुत छोटा होता है जिससे लंड को प्रवेश करने के लिए उसके घेरे को काफी खोलना पड़ता है जिसमें दर्द होता है। दूसरा, चूत के मुकाबले गांड में कोई प्राकृतिक रिसाव नहीं होता जिस से लंड के प्रवेश में आसानी हो सके।


इस सूखेपन के कारण भी लंड के प्रवेश से दर्द होता है। यह दर्द आदमी को भी हो सकता है पर लड़की (या जो गांड मरवा रहा हो) को तो होता ही है। भगवान ने यह छेद शायद मरवाने के लिए नहीं बनाया था !!! अशोक यही सोच रहा था कि इस क्रिया को किस तरह कामिनी के लिए बिना दर्द या कम से कम दर्द वाला बनाया जाए।


उसे एक विचार आया। उसने एक बड़े आकार की मोमबत्ती खरीदी और चाकू से शिल्पकारी करके उसे एक मर्द के लिंग का आकार दे दिया। उसने यह देख लिया कि इस मोम के लिंग में कहीं कोई खुरदुरापन या चुभने वाला हिस्सा नहीं हो।


उसने जानबूझ कर इस लिंग की लम्बाई ९-१० इंच रखी जो कि आम लंड की लम्बाई से ३-४ इंच ज्यादा है और उसका घेरा आम लंड के बराबर रखा। उसने मोम के लिंग का नाम भी सोच लिया। वह उसे “लिंगराज” बुलाएगा! उसने बाज़ार से एक के-वाई जेली का ट्यूब खरीद लिया।


वैसे तो कामिनी के बारे में सोच कर अशोक को जवानी का अहसास होने लगा था फिर भी एहतियात के तौर पर उसने एक पत्ती तडालफ़िल की गोलियों की खरीद ली जिस से अगर ज़रुरत हो तो ले सकता है। वह नहीं चाहता था कि जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए वह इतना उत्सुक है उसी की प्राप्ति के दौरान उसका लंड उसे धोखा दे जाये।


एक गोली के सेवन से वह पूरे २४ घंटे तक “लिंगराज” की बराबरी कर पायेगा। अब उसने अपने हाथ की सभी उँगलियों के नाखून काट लिए और उन्हें अच्छे से फाइल कर लिया। एक बैग में उसने “लिंगराज”, के-वाई जेली का ट्यूब, एक छोटा तौलिया और एक नारियल तेल की शीशी रख ली।


अब वह कामिनी से मिलने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए तैयार था। बेसब्री से वह अगले शुक्रवार का इंतज़ार करने लगा। उधर कामिनी भी अशोक के ख्यालों में गुम थी। उसे रह रह कर अशोक के साथ बिताये हुए पल याद आ रहे थे।


वह जल्द से जल्द फिर से उसकी बाहों में झूलना चाहती थी। अशोक से मिले दस दिन हो गए थे। उस सुनहरे दिन के बाद से वे मिले नहीं थे। अशोक को किसी काम से कानपुर जाना पड़ गया था। पर वह कल दफ्तर आने वाला था।


कामिनी सोच नहीं पा रही थी कि अब दफ्तर में वह अशोक से किस तरह बात करेगी या फिर अशोक उस से किस तरह पेश आएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि आम आदमियों की तरह वह उसकी अवहेलना करने लगेगा। कई मर्द जब किसी लड़की की अस्मत पा लेते हैं तो उसमें से उनकी रुचि हट जाती है और कुछ तो उसे नीचा समझने लगते हैं….। कामिनी कुछ असमंजस में थी….।


लालसा, वासना, डर, आशंका, ख़ुशी और उत्सुकता का एक अजीब मिश्रण उसके मन में हिंडोले ले रहा था। कामिनी ने सुबह जल्दी उठ कर विशेष रूप से उबटन लगा कर देर तक स्नान किया। भूरे रंग की सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनी जिसे पहन कर ऐसा लगता था मानो वह नंगी है।


उसके ऊपर हलके बैंगनी रंग की चोली के साथ पीले रंग की शिफोन की साड़ी पहन कर वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बालों में चमेली का गजरा तथा आँखों में हल्का सा सुरमा। चूड़ियाँ, गले का हार, कानों में बालियाँ और अंगूठियाँ पहन कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही हो।


कामिनी मानो दफ्तर भूल कर अपनी सुहाग रात की तैयारी कर रही थी। सज धज कर जब उसने अपने आप को शीशे में देखा तो खुद ही शरमा गई। उसके पति ने जब उसे देखा तो पूछ उठा- कहाँ कि तैयारी है …? कामिनी ने बताया कि आज दफ्तर में ग्रुप फोटो का कार्यक्रम है इसलिए सब को तैयार हो कर आना है !!


रोज़ की तरह उसका पति उसे मोटर साइकिल पर दफ्तर तक छोड़ कर अपने काम पर चला गया। कामिनी ने चलते वक़्त उसे कह दिया हो सकता है आज उसे दफ्टर में देर हो जाये क्योंकि ग्रुप फोटो के बाद चाय-पानी का कार्यक्रम भी है।


दफ्तर १० बजे शुरू होता था पर कामिनी ९.३० बजे पहुँच जाती थी क्योंकि उसे छोड़ने के बाद उसके पति को अपने दफ्तर भी जाना होता था। कामिनी ने ख़ास तौर से अशोक का कमरा ठीक किया और पिछले १० दिनों की तमाम रिपोर्ट्स और फाइल करीने से लगा कर अशोक की मेज़ पर रख दी।


कुछ देर में दफ्तर के बाकी लोग आने शुरू हो गए। सबने कामिनी की ड्रेस की तारीफ़ की और पूछने लगे कि आज कोई ख़ास बात है क्या?


कामिनी ने कहा कि अभी उसे नहीं मालूम पर हो सकता है आज का दिन उसके लिए नए द्वार खोल सकता है !!!


लोगों को इस व्यंग्य का मतलब समझ नहीं आ सकता था !! वह मन ही मन मुस्कराई…. ठीक दस बजे अशोक दफ्तर में दाखिल हुआ। सबने उसका अभिनन्दन किया और अशोक ने सबके साथ हाथ मिलाया। जब कामिनी अशोक के ऑफिस में उस से अकेले में मिली अशोक ने ऐसे बर्ताव किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो।


वह नहीं चाहता था कि दफ्तर के किसी भी कर्मचारी को उन पर कोई शक हो। कामिनी को उसने दफ्तर के बाद रुकने के लिए कह दिया जिस से उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। किसी तरह शाम के ५ बजे और सभी लोग अशोक के जाने का इंतजार करने लगे।


अशोक बिना वक़्त गँवाए दफ्तर से घर की ओर निकल पड़ा। शीघ्र ही बाकी लोग भी निकल गए। कामिनी यह कह कर रुक गई कि उसे एक ज़रूरी फैक्स का इंतजार है। उसके बाद वह दफ्तर को ताला भी लगा देगी और चली जायेगी। उसने चौकीदार को भी छुट्टी दे दी। जब मैदान साफ़ हो गया तो कामिनी ने अशोक को मोबाइल पर खबर दे दी।


करीब आधे घंटे बाद अशोक दोबारा ऑफिस आ गया और अन्दर से दरवाज़ा बंद करके दफ्टर की सभी लाइट, पंखे व एसी बंद कर दिए। सिर्फ अन्दर के गेस्ट रूम की एक लाइट तथा एसी चालू रखा। अब उसने कामिनी को अपनी ओर खींच कर जोर से अपने आलिंगन में ले लिया और वे बहुत देर तक एक दूसरे के साथ जकड़े रहे।


सिर्फ उनके होंठ आपस में हरकत कर रहे थे और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह की गहराई नाप रही थी। थोड़ी देर में अशोक ने पकड़ ढीली की तो दोनों अलग हुए। घड़ी में ५.३० बज रहे थे। समय कम बचा था इसलिए अशोक ने अपने कपड़े उतारने शुरू किये पर कामिनी ने उसे रोक कर खुद उसके कपड़े उतारने लगी।


अशोक को निर्वस्त्र कर उसने उसके लिंग को झुक कर पुच्ची की और खड़ी हो गई। अब अशोक ने उसे नंगा किया और एक बार फिर दोनों आलिंगन बद्ध हो गए। इस बार अशोक का लिंग कामिनी की नाभि को टटोल रहा था।


कामिनी ने अपने पंजों पर खड़े हो कर किसी तरह लिंग को अपनी योनि की तरफ किया और अपनी टांगें थोड़ी चौड़ी कर लीं। अशोक का लिंग अब कामिनी की चूत के दरवाज़े पर था और कामिनी उसकी तरफ आशा भरी नज़रों से देख रही थी।


अशोक ने एक ऊपर की तरफ धक्का लगाया और उसका लंड चूत में थोड़ा सा चला गया। अब उसने कामिनी को चूतड़ से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और कामिनी ने अपने हाथ अशोक की गर्दन के इर्द-गिर्द कर लिए तथा उसकी टांगें उसकी कमर से लिपट गईं।


अब वह अधर थी और अशोक खड़ा हो कर उसे अपने लंड पर उतारने की कोशिश कर रहा था। थोड़ी देर में लंड पूरा कामिनी की चूत में घुस गया या यों कहिये कि चूत उसके लंड पर पूरी उतर गई। कामिनी ने ऊपर नीचे हो कर अपने आप को चुदवाना शुरू किया।


उसे बड़ा मज़ा आ रहा था क्योंकि ऐसा आसन उसने पहली बार ग्रहण किया था। कुछ देर के बाद अशोक ने बिना लंड बाहर निकाले कामिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेट कर उसको जोर जोर से चोदने लगा। हालाँकि अशोक आज कामिनी की गांड मारने के इरादे से आया था पर काम और क्रोध पर किसका जोर चलता है !!


अशोक २-३ मिनटों में ही बेहाल हो गया और उसकी पिचकारी कामिनी की योनि में छूट गई। अशोक की यही एक कमजोरी थी कि पहली बार उसका काम बहुत जल्दी तमाम हो जाता था। पर दूसरी और तीसरी बार जब वह सम्भोग करता था तो काफी देर तक डटा रह सकता था।


उसने लंड बाहर निकाला और कामिनी को माथे पर पुच्ची करके बाथरूम चला गया। अपना लंड धो कर वह वापस आ गया। कामिनी जब कुछ देर के लिए बाथरूम गई तो अशोक ने एक गोली खा ली। शाम के ६ बज रहे थे। अभी भी उसके पास करीब २ घंटे थे। जब कामिनी वापस आई तो अशोक ने उससे पूछा कि वह कितनी देर और रुक सकती है।


कामिनी ने भी अपने पति से देर से आने की बात कह दी थी सो उसे भी कोई जल्दी नहीं थी। तो अशोक ने सोचा की शायद आज ही उसकी बरसों की मनोकामना पूरी हो जायेगी। उसने कामिनी से पूछा वह उस से कितना प्यार करती है।


कामिनी ने कहा- इम्तिहान ले कर देख लो !!


अशोक ने कहा- कितना दर्द सह सकती हो?


कामिनी ने कहा- जब औरत बच्चे को जन्म दे सकती है तो बाकी दर्द की क्या बात !!


यह सुन कर अशोक खुश हो गया और कामिनी को बिस्तर पर उल्टा लेटने के लिए बोला। कामिनी एक अच्छी लड़की की तरह झट से उलटा लेट गई। अशोक ने उसके पेट के नीचे एक मोटा तकिया लगा दिया जिस से उसकी गांड ऊपर की ओर और उठ गई।


अशोक ने अपने बैग से तेल की शीशी, जेली का ट्यूब, छोटा तौलिया और “लिंगराज” को निकाला और पास की मेज़ पर रख दिया। कामिनी का मुँह तकिये में छुपा था और शायद उसकी आँखें बंद थीं। वह जानती थी कि क्या होने वाला है और वह अशोक की खातिर कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार थी।


अशोक ने नारियल के तेल से कामिनी के चूतड़ों की मालिश शुरू की। कामिनी की मांस पेशियाँ जो कसी हुईं थीं उन्हें धीरे धीरे ढीला किया और उसके बदन से टेंशन दूर करने लगा। उसके हाथ कई बार उसकी चूत के इर्द गिर्द और उसके अन्दर भी आने जाने लगे थे। कामिनी को आराम भी मिल रहा था और मज़ा भी आ रहा था।


इस तरह मालिश करते करते अशोक ने कामिनी की गांड के छेद के आस पास भी ऊँगली घुमाना शुरू किया और अच्छी तरह तेल से गांड को गीला कर दिया। अब उसने अपनी तर्जनी ऊँगली उसकी गांड में डालने की कोशिश की। ऊँगली गांड में थोड़ी सी घुस गई तो कामिनी थोड़ी सी हिल गई।


अशोक ने पूछा- कैसा लग रहा है?


तो कामिनी ने कहा- अच्छा !


उसने कहा की अब वह ऊँगली पूरी अन्दर करने की कोशिश करेगा और कामिनी को इस तरह जोर लगाना चाहिए जैसे वह शौच के वक़्त लगाती है। इससे गांड का छेद अपने आप ढीला और बड़ा हो जायेगा। कामिनी ने वैसा ही किया और अशोक की एक ऊँगली उसकी गांड में पूरी चली गई।


अशोक ने कोई और हरकत नहीं की और ऊँगली को कुछ देर अन्दर ही रहने दिया। फिर उसने कामिनी से पूछा- कैसा लग रहा है?


कामिनी ने कहा- ठीक है।


तो अशोक ने धीरे से अपनी ऊँगली बाहर निकाल ली। अब उसने अपनी ऊँगली पर जेली अच्छी तरह से लगा ली और कामिनी की गांड के बाहर और करीब आधा इंच अन्दर तक अच्छी तरह से जेली मल दी। अब उसने कामिनी से कहा कि जब वह ऊँगली अन्दर की तरफ डालने की कोशिश करे उसी वक़्त कामिनी को शौच वाला जोर लगाना चाहिए।


जब दोनों ने ऐसा किया तो ऊँगली बिना ज्यादा मुश्किल के अन्दर चली गई। अशोक ने ऊँगली अन्दर ही अन्दर घुमाई और बाहर निकल ली। अब उसने अपनी दो उँगलियों पर जेली लगाई और वही क्रिया दोहराई। दो उँगलियों के अन्दर जाने में कामिनी को थोड़ी तकलीफ हुई पर ज्यादा दर्द नहीं हुआ।


अशोक हर कदम पर कामिनी से उसके दर्द के बारे में पूछता रहता था। उसने इसीलिए अपनी उँगलियों के नाखून काट कर फाइल कर लिए थे वरना कामिनी को अन्दर से कट लग सकता था… एक दो बार जब दो उँगलियों से गांड में प्रवेश की क्रिया ठीक से होने लगी तो उसने दो उँगलियों को गांड के अन्दर घुमाना शुरू किया जिस से गांड का छेद और ढीला हो सके।


इसके बाद उसने “लिंगराज” को निकाला और उसके अगले ४-५ इंच को अच्छी तरह जेली से लेप दिया। कामिनी की गांड के छेद के इर्द गिर्द और अन्दर भी अच्छे से जेली लगा दी। अब अशोक ने कामिनी की टांगें थोड़ी और चौड़ी कर दी और लिंगराज को उसकी गांड के छेद पर रख दिया।


दूसरे हाथ से वह उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा। लिंगराज का स्पर्श कामिनी को ठंडा लगा और उसकी गांड यकायक टाइट हो गई। उसने पलट कर देखा तो लिंगराज को देख कर आश्चर्यचकित रह गई। उसने ऐसा यन्त्र पहले नहीं देखा था।


अशोक ने बताया कि इसे उसने खुद ही बनाया है और इसको इस्तेमाल करके वह कामिनी के दर्द को कम करेगा। उसने यह भी बताया कि इस यन्त्र का नाम “लिंगराज” है। नाम सुन कर कामिनी को हंसी आ गई। अशोक ने आश्वासन के तौर पर उसकी पीठ थपथपाई और फिर से उलटे लेट जाने को कहा।


उसने कामिनी को याद दिलाया की किस तरह (शौच की तरह) उसे अपनी गांड ढीली करनी है जिस से लिंगराज गांड में जा सके। कामिनी ने सिर हिला कर सहयोग करने का इशारा किया। अब अशोक ने कहा कि तीन की गिनती पर वह लिंगराज को अन्दर करेगा। कामिनी तैयार हो गई पर अनजाने में फिर उसकी गांड टाइट हो गई। अशोक ने उसे घबराने से मना किया और उसकी योनि, पीठ तथा चूतड़ों पर प्यार से हाथ सहलाने लगा।


उसने कहा- जल्दबाजी की कोई ज़रुरत नहीं है। अगर तुम तैयार नहीं हो तो किसी और दिन करेंगे।


कामिनी ने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है और मैं तैयार हूँ !


अशोक ने कहा “ओ के, अब मैं तीन गिनूंगा तुम तीन पर अपनी गांड ढीली करना”।


कामिनी ने चूतड़ हिला कर हाँ का इशारा किया। अशोक ने एक, दो, तीन कहते हुए तीन पर लिंगराज को गांड के छेद में डालने के लिए जोर लगाया। पर कामिनी की कुंवारी गांड लिंगराज की चौड़ाई के लिए तैयार नहीं थी सो लिंगराज अपने निशाने से फिसल गया और जेली के कारण बाहर आ गया। अशोक की हंसी छूट गई और कामिनी भी मुस्करा कर पलट गई।


अशोक ने कहा- कोई बात नहीं, एक बार फिर कोशिश करते हैं।


उसने लिंगराज के सुपारे पर थोड़ी और जेली लगाई और एक-दो-तीन कह कर फिर से कोशिश की। इस बार लिंगराज करीब आधा इंच अन्दर चला गया। कामिनी के मुँह से एक हलकी सी आवाज़ निकली। अशोक ने एकदम लिंगराज को बाहर निकाल कर कामिनी से पूछा कि कैसा लगा? दर्द बहुत हुआ क्या?


कामिनी ने पलट कर उसके होटों पर एक ज़ोरदार चुम्मी की और कहा- तुम मेरा इतना ध्यान रख रहे हो तो मुझे दर्द कैसे हो सकता है !! अब मेरे बारे में सोचना बंद करो और लिंगराज जी को अन्दर डालो।


यह सुनकर अशोक का डर थोड़ा कम हुआ और उसने कहा- ठीक है, चलो इस बार देखते हैं तुम में कितना दम है !!


एक बार फिर जेली गांड और लिंगराज पर लगा कर उसने एक-दो-तीन कह कर थोड़ा ज्यादा ज़ोर लगाया। इस बार लिंगराज अचानक करीब डेढ़ इंच अन्दर चला गया और कामिनी ने कोई आवाज़ नहीं निकाली। बस एक लम्बी सांस लेकर छोड़ दी।


अशोक ने लिंगराज को अन्दर ही रहने दिया और कामिनी की पीठ सहलाने लगा। उसने कामिनी को शाबाशी दी और कहा वह बहुत बहादुर है। थोड़ी देर बाद अशोक ने कामिनी को बताया कि अब वह लिंगराज को बाहर निकालेगा। और फिर धीरे धीरे लिंगराज को बाहर खींच लिया।


उसने कामिनी से पूछा उसे अब तक कैसा लगा तो कामिनी ने कहा कि उसे दर्द नहीं हुआ और थोड़ा मज़ा भी आया। अशोक ने कामिनी को आगाह किया कि इस बार वह लिंगराज को और अन्दर करेगा और अगर कामिनी को तकलीफ नहीं हुई तो लिंगराज से उसकी गांड को चोदने की कोशिश करेगा। कामिनी ने कहा वह तैयार है।


पर अशोक ने एक बार फिर सब जगह जेली का लेप किया और तीन की गिनती पर लिंगराज को घुमाते हुए उसकी गांड के अन्दर बढ़ा दिया। कामिनी थोड़ा कसमसाई क्योंकि लिंगराजजी इस बार करीब चार इंच अन्दर चले गए थे।


अशोक ने कामिनी को और शाबाशी दी और कहा कि अब वह तीन की गिनती नहीं करेगा बल्कि कामिनी को खुद अपनी गांड उस समय ढीली करनी होगी जब उसे लगता है कि लिंगराज अन्दर जा रहा है। यह कह कर उसने लिंगराज को धीरे धीरे अन्दर बाहर करना शुरू किया।


हर बार जब लिंगराज को वह अन्दर करता तो थोड़ा और ज़ोर लगाता जिससे लिंगराज धीरे धीरे अब करीब ६ इंच तक अन्दर पहुँच गया था। कामिनी को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। यह उसके हाव भाव से पता चल रहा था।


अशोक ने कामिनी की परीक्षा लेने के लिए अचानक लिंगराज को पूरा बाहर निकाल लिया और फिर से अन्दर डालने की कोशिश की। कामिनी चौकन्नी थी और उसने ठीक समय पर अपनी गांड को ढील दे कर लिंगराज को अपने अन्दर ले लिया।


अशोक कामिनी की इस बात से बहुत खुश हुआ और उसने कामिनी की जाँघों को प्यार से पुच्ची कर दी। अब वह लिंगराज से उसकी गांड चोद रहा था और अपनी उँगलियों से उसकी चूत के मटर को सहला रहा था जिससे कामिनी उत्तेजित हो रही थी और अपने बदन को ऊपर नीचे कर रही थी।


कुछ देर बाद अशोक ने लिंगराज को धीरे से बाहर निकाला और कामिनी को पलटने को कहा। उसने कामिनी के पेट और मम्मों को पुच्चियाँ करते हुआ कहा कि उसके हिसाब से वह गांड मरवाने के लिए तैयार है।

कामिनी ने कहा- हाँ, मैं तैयार हूँ पर अशोक के लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह जनाब तो तैयार नहीं हैं, लाओ इन्हें मैं तैयार करूँ।


शाम के सात बज रहे थे। अभी एक घंटा और बचा था। कामिनी की उत्सुकता देख कर उसका मन भी गांड मारने के लिए डोल उठा। उसके लंड पर कामिनी की जीभ घूम रही थी और उसके हाथ अशोक के अण्डों को टटोल रहे थे। साथ ही साथ गोली का असर भी हो रहा था।


थोड़ी ही देर में अशोक का लंड ज़ंग के लिए तैयार हो गया। पहली बार गांड में घुसने की उम्मीद में वह कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया था। कामिनी ने उसके सुपारे को चुम्बन दिया और अशोक के इशारे पर पहले की तरह उलटी लेट गई। अशोक ने उसके कूल्हे थोड़े और ऊपर की ओर उठाये और टांगें और खोल दी।


कामिनी का सिर उसने तकिये पर रखने को कहा और छाती को बिस्तर पर सटा दिया। अब उसने कामिनी की गांड की अन्दर बाहर जेली लगा दी और अपने लंड पर भी उसका लेप कर दिया। अशोक ने पीछे से आ कर अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर टिकाया और कामिनी को पूछा कि क्या वह तैयार है ।


कामिनी तो तैयार ही थी। अशोक ने धीरे धीरे लंड को अन्दर डालने के लिए ज़ोर लगाया पर कुछ नहीं हुआ। एक बार फिर सुपारे को छेद की सीध में रखते हुए ज़ोर लगाया तो लंड झक से फिसल गया और चूत की तरफ चला गया।


अशोक ने एक बार कोशिश की पर जब लंड फिर भी नहीं घुसा तो उसने फिर से लिंगराज का सहारा लिया। लिंगराज को जेली लगा कर फिर से कोशिश की तो लिंगराज आराम से अन्दर चला गया। लिंगराज से उसकी गांड को ढीला करने के बाद एक और बार अशोक ने अपने लंड से कोशिश की।


पर उसका लंड लिंगराज से थोड़ा बड़ा था और वह कामिनी को दर्द नहीं पहुँचाना चाहता था शायद इसीलिए वह ठीक से ज़ोर नहीं लगा रहा था। कामिनी ने मुड़ कर अशोक की तरफ देखा और कहा- मेरी चिंता मत करो। मुझे अभी तक दर्द नहीं हुआ है। तुम थोड़ा और ज़ोर लगाओ और मैं भी मदद करूंगी।


अशोक को और हिम्मत मिली और इस बार उसने थोड़ा और ज़ोर लगाया। उधर कामिनी ने भी अपनी गांड को ढीला करते हुए पीछे की तरफ ज़ोर लगाया। अचानक अशोक का लंड करीब एक इंच अन्दर चला गया। पर इस बार कामिनी की चीख निकल गई। इतनी तैयारी करने के बाद भी अशोक के लंड के प्रवेश ने कामिनी को हिला दिया।


अशोक को चिंता हुई तो कामिनी ने कहा- अब मत रुकना।


अशोक ने लंड का जो हिस्सा बाहर था उस पर और जेली लगाई और लंड को थोड़ा सा बाहर खींच कर एक और ज़ोर लगाया। कामिनी ने भी पीछे के तरफ ज़ोर लगाया और अशोक का लंड लगभग पूरी तरह अन्दर चला गया। कामिनी थोड़ा सा हिली पर फिर संभल गई। अशोक से ज़्यादा कामिनी के कारण उन्हें यह सफलता मिली थी।


अब अशोक को अचानक अपनी सफलता का अहसास हुआ। उसका लंड इतनी टाइट सुरंग में होगा उसको अंदाजा नहीं था। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। ख़ुशी के कारण उसका लंड शायद और भी फूल रहा था जिस से उसकी टाइट गांड और भी टाइट लग रही थी।


थोड़ी देर इस तरह रुकने के बाद उसने अपने लंड को हरकत देनी शुरू की। उसका लंड तो चूत का आदि था जिसमें अन्दर बाहर करना आसान होता है। गांड की और बात है। इस टाइट गुफा में जब उसने लंड बाहर करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो कामिनी की गांड लंड को अपने से बाहर जाने ही नहीं देना चाहती।


फिर भी अशोक ने थोड़ा लंड बाहर निकाला और जितना बाहर निकला उस हिस्से पर जेली और लगा ली। अब धीरे धीरे उसने अन्दर बाहर करना शुरू किया। बाहर करते वक़्त थोड़ा तेज़ और अन्दर करते वक़्त धीरे-धीरे की रफ्तार रखने लगा।


उसने कामिनी से पूछा- कैसा लग रहा है?


तो कामिनी ने बहुत ख़ुशी ज़ाहिर की। उसे वाकई बहुत मज़ा आ रहा था। उसने अशोक को और ज़ोर से चोदने के लिए कहा। अशोक ने अपनी गति बढ़ा दी और उसका लंड लगभग पूरा अन्दर बाहर होने लगा। अशोक की तेज़ गति के कारण एक बार उसका लंड पूरा ही बाहर आ गया।


अब वह इतनी आसानी से अन्दर नहीं जा रहा था जितना चूत में चला जाता है। उसने फिर से गांड में और लंड पर जेली लगाई और फिर पूरी सावधानी से लंड को अन्दर डाला। एक बार फिर कामिनी की आह निकली पर लंड अन्दर जा चुका था। अशोक ने फिर से चोदना शुरू किया।


उसके लंड को गांड की कसावट बहुत अच्छी लग रही थी और उसे कामिनी के पिछले शरीर का नज़ारा भी बहुत अच्छा लग रहा था। अब उसने कामिनी को आगे की ओर धक्का देते हुए बिस्तर पर सपाट लिटा दिया। वह भी उसके ऊपर सपाट लेट गया।


कामिनी पूरी बिस्तर पर फैली हुई थी। उसकी टांगें और बाजू खुले हुए थे और उसके चूतड़ नीचे रखे तकिये के कारण ऊपर को उठे हुए थे। अशोक का पूरा शरीर उसके पूरे शरीर को छू रहा था। सिर्फ चोदने के लिए वह अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करता था और उस वक़्त उनके इन हिस्सों का संपर्क टूटता था।


अशोक ने अपने हाथ सरका कर कामिनी के बदन के नीचे करते हुए दोनों तरफ से उसके मम्मे पकड़ लिए। अशोक का पूरा बदन कामाग्नि में लिप्त था और उसने इतना ज्यादा सुख कभी नहीं भोगा था। उधर कामिनी ने भी इतना आनंद कभी नहीं उठाया था।


उसके नितम्ब रह-रह कर अशोक के निचले प्रहार को मिलने के लिए ऊपर उठ जाते थे जिससे लंड का समावेश पूरी तरह उसकी गांड में हो रहा था। दोनों सातवें आसमान पर पहुँच गए थे। अब अशोक चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाला था। उसके मुंह से मादक आवाजें निकलने लगी थी।


कामिनी भी अजीब आवाजें निकल रही थी। अशोक ने गति तेज़ करते हुए एक बार लंड लगभग पूरा बाहर निकाल कर एक ही वार में पूरा अन्दर घुसेड़ दिया, कामिनी की ख़ुशी की चीख के साथ अशोक की दहाड़ निकली और अशोक का वीर्य फूट फूट कर उसकी गांड में निकल पड़ा। कामिनी ने अपनी गांड ऊपर की तरफ दबा कर उसके लंड को जितनी देर अन्दर रख सकती थी रखा। थोड़ी देर में अशोक का लंड स्वतः बाहर निकल गया और कामिनी की पीठ पर निढाल पड़ गया।


दोनों की साँसें तेज़ चल रही थी और दोनों पूर्ण तृप्त थे। अशोक ने कामिनी को उठा कर अपने सीने से लगा लिया। उसके पूरे चेहरे पर चुम्बन की वर्षा कर दी और कृतज्ञ आँखों से उसे निहारने लगा। कामिनी ने भी घुटनों के बल बैठ कर अशोक के लिंग को पुचकारा और और धन्यवाद के रूप में उसको अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। उसकी आँखों में भी कृतज्ञता के आँसू थे। दोनों एक बार फिर आलिंगनबद्ध होते हुए बाथरूम की तरफ चले गए।


आपको ये कहानी कैसी लगी ये कमेंट करे।

 
 
 

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