माँ को नौकर से चुदवा दिया - Hindi Sex Stories
- Kamvasna
- Oct 29
- 8 min read
मेरा नाम रंजन कुमार है। मैं अब 20 साल का हूँ, लेकिन ये कहानी उस वक्त की है जब मैं 18 साल का था। मेरे घर में मैं, मेरे पापा, मेरी सौतेली माँ विभा और हमारा नौकर राजनाथ रहते थे। मेरी असली माँ को मैंने बचपन में ही खो दिया था। उस दुख से उबरने के लिए पापा ने दूसरी शादी की थी, ताकि मेरी परवरिश में कोई कमी न रहे। मेरी सौतेली माँ विभा बेहद खूबसूरत थीं। उनकी उम्र करीब 34-35 साल थी, और उनका फिगर 36-32-34 का था। उनकी गोरी चमड़ी, भरी-पूरी देह, और लंबी काली जुल्फें किसी को भी दीवाना बना सकती थीं। उनके होंठ गुलाबी, आँखें गहरी, और चाल में एक अजीब सी लचक थी। वो मुझे बहुत प्यार करती थीं और मुझे कभी सौतेले बेटे जैसा नहीं समझा। मेरी पढ़ाई-लिखाई पर उनका पूरा ध्यान रहता था। अगर मैं दोस्तों के साथ खेलने की जिद करता, तो उनकी इजाजत पाना आसान नहीं होता था।
शुरुआत में माँ और पापा के बीच सब कुछ ठीक था। वो दोनों एक-दूसरे के साथ हँसते-बोलते, लेकिन कुछ सालों बाद उनके रिश्ते में दरार पड़ने लगी। पहले तो मुझे समझ नहीं आया कि बात क्या है। मैं बस इतना देखता था कि पापा अब माँ से पहले की तरह प्यार से बात नहीं करते। धीरे-धीरे उनकी लड़ाई इतनी बढ़ गई कि पापा माँ को गुस्से में हाथ उठाने लगे। मुझे ये देखकर बहुत गुस्सा आता था, लेकिन मैं छोटा था, कुछ कर नहीं पाता था। बाद में मुझे पता चला कि पापा माँ की शारीरिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, और यही उनकी लड़ाई की असली वजह थी। माँ की उदासी और पापा की बेरुखी ने घर का माहौल तनावपूर्ण कर दिया था।
हमारे घर में उस वक्त राजनाथ नाम का नौकर था। वो 32 साल का हट्टा-कट्टा मर्द था। उसका कद लंबा, छाती चौड़ी, और बाहें मजबूत थीं। वो गाँव से आया था और हमारे घर का हर काम करता था—सफाई, बर्तन, कपड़े धोना, और बाकी छोटे-मोटे काम। उसका चेहरा साधारण था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, खासकर जब वो माँ के आसपास होता। वो शांत स्वभाव का था, लेकिन माँ से बात करते वक्त उसकी आवाज में एक अलग सी गर्मी आ जाती थी।
एक दिन मैं स्कूल से जल्दी घर आ गया। उस दिन हमारे स्कूल के एक टीचर की मृत्यु हो गई थी, तो स्कूल जल्दी बंद हो गया। मैंने सोचा कि ये मौका अच्छा है। चुपके से घर के पिछले रास्ते से जाऊँगा, कपड़े बदलकर अपने दोस्त के घर वीडियो गेम खेलने निकल जाऊँगा। मैं चुपके से घर में घुसा, ताकि माँ को खबर न लगे। लेकिन जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुआ, मुझे कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई दीं। पहले तो लगा कि शायद माँ रेडियो सुन रही हैं, लेकिन वो आवाजें उनके कमरे की तरफ से आ रही थीं। मैं धीरे-धीरे कमरे के पास गया। दरवाजा हल्का सा खुला था। मैंने जैसे ही झाँका, मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।
राजनाथ माँ के कमरे के बाहर खड़ा था। वो दरवाजे की झिरी से अंदर झाँक रहा था और अपनी पैंट से अपना मोटा, लंबा लंड निकालकर जोर-जोर से हिला रहा था। उसकी साँसें तेज थीं, और आँखें उत्तेजना से चमक रही थीं। मैंने अंदर देखा, तो माँ नहाकर कपड़े बदल रही थीं। उनकी साड़ी खुल चुकी थी, और वो सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थीं। उनका गीला बदन, भरे हुए स्तन, और पेटीकोट में उभरी उनकी गोल, भारी गांड देखकर मैं भी एक पल को ठिठक गया। लेकिन राजनाथ की इस हरकत पर मुझे गुस्सा आ गया। मैंने जोर से दरवाजा खटखटाया।
राजनाथ ने मुझे देखते ही अपना लंड पैंट में छिपाने की कोशिश की। उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया। “रंजन बाबू, प्लीज किसी को मत बताना,” वो गिड़गिड़ाने लगा। “ये क्या हरकत है?” मैंने गुस्से में डाँटा। “अभी माँ को सब बता दूँगा।” वो मेरे पैरों में गिर गया और बोला, “बाबू, मेरी नौकरी चली जाएगी। तुम्हारे माँ-पापा मुझे निकाल देंगे।” “तू ऐसी गंदी हरकत करेगा, तो निकालना ही चाहिए,” मैंने कहा।
तभी उसने कुछ ऐसा कहा, जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। “रंजन बाबू, मैं तुम्हारी माँ से सच्चा प्यार करता हूँ। मैं उनकी हर तकलीफ दूर करना चाहता हूँ।” मैंने हैरानी से पूछा, “क्या बकवास कर रहा है?” वो बोला, “तुम्हारे पापा तुम्हारी माँ की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं करते। वो उन्हें मारते हैं क्योंकि वो खुद को मर्द साबित नहीं कर पाते। मैंने देखा है कि विभा जी अपनी चूत में उँगलियाँ डालकर खुद को तसल्ली देती हैं। मैं उनकी तकलीफ नहीं देख सकता।”
उसकी बात सुनकर मुझे माँ पर दया आई। मैंने सोचा कि माँ कितने सालों से इस दर्द को सह रही हैं। पापा की बेरुखी और मारपीट ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया था। राजनाथ ने आगे बताया कि उसने एक बार माँ से अपनी बात कहने की कोशिश की थी, लेकिन माँ ने उसे साफ मना कर दिया था। फिर भी वो माँ से प्यार करने लगा था और उनकी हर जरूरत पूरी करना चाहता था।
मैंने उससे पूछा, “तू चाहता क्या है?” वो बोला, “मैं विभा जी को खुश देखना चाहता हूँ। मैं उनकी हर इच्छा पूरी करना चाहता हूँ।” मैंने सोचा कि अगर माँ को राजनाथ के साथ सुख मिल सकता है, तो इसमें गलत क्या है। मैंने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी मदद करूँगा। लेकिन अगर तूने माँ का दिल दुखाया, तो मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।” राजनाथ की आँखें खुशी से चमक उठीं। “बाबू, मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा,” उसने वादा किया।
अगले दिन मैंने माँ से अकेले में बात की। मैंने पूछा, “माँ, पापा की हरकतों से आप परेशान नहीं होतीं?” वो उदास होकर बोलीं, “हाँ बेटा, बहुत परेशान हूँ। लेकिन मैं क्या करूँ?” “आप पापा को छोड़ क्यों नहीं देतीं? आपको भी तो अपनी जिंदगी जीने का हक है,” मैंने कहा। वो बोलीं, “मैं ये सब तुम्हारे लिए सह रही हूँ। तुम मेरी जिंदगी हो।” “माँ, अगर आप खुश नहीं होंगी, तो मैं भी खुश नहीं रह पाऊँगा,” मैंने कहा। वो चुप हो गईं। फिर मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “माँ, अभी भी बहुत लोग हैं जो आपसे प्यार करते हैं।” “कौन?” माँ ने हैरानी से पूछा। मैंने धीरे से कहा, “जैसे राजनाथ।”
माँ का चेहरा एकदम लाल हो गया। वो हक्की-बक्की रह गईं। मैंने तुरंत राजनाथ को बुलाया और सारी बात बताई। “माँ, राजनाथ आपसे सच्चा प्यार करता है। वो आपको वो सुख दे सकता है, जो पापा आपको नहीं दे पाए।” राजनाथ ने भी कहा, “विभा जी, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं आपको हर खुशी दूँगा।” माँ कुछ देर चुप रहीं। उनकी आँखों में डर, शर्म, और शायद एक हल्की सी चाहत थी।
मैंने कहा, “माँ, मैं बाहर जा रहा हूँ। देर से आऊँगा।” माँ ने सिर्फ सिर हिलाया। मैं बाहर निकल गया, लेकिन मुझे ये देखना था कि आगे क्या होता है। मैं चुपके से पिछले रास्ते से घर में घुसा और माँ के कमरे के पास छिप गया।
माँ और राजनाथ कमरे में अकेले थे। राजनाथ ने धीरे से माँ का हाथ पकड़ा और बोला, “विभा जी, मैं आपको कभी दुख नहीं दूँगा।” माँ की साँसें तेज थीं, लेकिन वो चुप रहीं। राजनाथ ने धीरे से माँ को अपनी बाहों में खींच लिया। माँ ने पहले हल्का सा विरोध किया, “राजनाथ, ये ठीक नहीं है…” लेकिन उनकी आवाज में वो दृढ़ता नहीं थी। राजनाथ ने उनके गालों को चूमा, फिर उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। माँ की साँसें और तेज हो गईं। वो धीरे-धीरे उसकी चूमाचाटी का जवाब देने लगीं।
राजनाथ ने माँ की साड़ी का पल्लू धीरे से खींचा। साड़ी फर्श पर गिर गई। माँ अब सिर्फ गुलाबी ब्लाउज और पेटीकोट में थीं। उनके भरे हुए स्तन ब्लाउज में तने हुए थे, और पेटीकोट उनकी गोल गांड को उभार रहा था। राजनाथ की आँखें लालच से चमक रही थीं। उसने अपनी शर्ट उतारी। उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाहें देखकर माँ की साँसें और तेज हो गईं।
राजनाथ ने माँ को बेड पर बिठाया और उनके ऊपर झुक गया। वो उनके गले, कंधों, और फिर ब्लाउज के ऊपर से उनके स्तनों को चूमने लगा। “आह्ह… राजनाथ… ये क्या कर रहे हो…” माँ की सिसकारी निकली। राजनाथ ने माँ का ब्लाउज खोल दिया। उनके गोरे, भरे हुए स्तन बाहर आ गए। उनके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। राजनाथ ने एक निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। “उह्ह… आह्ह… धीरे…” माँ की सिसकारियाँ तेज हो गईं। वो अपने हाथों से राजनाथ के बालों को सहला रही थीं।
राजनाथ ने माँ का पेटीकोट भी खींच दिया। अब माँ सिर्फ काली पैंटी में थीं। उनकी चिकनी जाँघें और चूत का उभार साफ दिख रहा था। राजनाथ ने अपनी पैंट उतारी, और उसका 8 इंच का मोटा, सख्त लंड बाहर आ गया। माँ की आँखें उस पर टिक गईं। वो शायद डर और उत्तेजना दोनों महसूस कर रही थीं। “इतना बड़ा…” माँ ने धीरे से कहा। राजनाथ ने उनकी पैंटी उतार दी। माँ की चूत गीली थी, और उसकी खुशबू कमरे में फैल रही थी।
राजनाथ ने माँ को बेड पर लिटाया और उनकी चूत को चूमना शुरू किया। उसकी जीभ माँ की चूत के दाने को सहला रही थी। “आह्ह… उफ्फ… राजनाथ… ये क्या… आह्ह…” माँ की सिसकारियाँ चीखों में बदल गईं। वो अपनी गांड उछाल रही थीं, और राजनाथ की जीभ उनकी चूत में गहरे तक जा रही थी। “बस… आह्ह… मैं… मैं झड़ने वाली हूँ…” माँ ने सिसकारी भरी, और कुछ ही पलों में वो झड़ गईं। उनकी चूत से रस टपक रहा था, और राजनाथ ने उसे चाट लिया।
लेकिन राजनाथ रुका नहीं। उसने माँ को पलटा और उनकी गांड को सहलाने लगा। “विभा जी, तुम्हारी गांड तो किसी रानी जैसी है,” उसने गंदी बात की। माँ शर्मा गईं, लेकिन उनकी साँसें तेज थीं। राजनाथ ने माँ को घोड़ी बनाया और अपना लंड उनकी चूत पर रगड़ने लगा। “उह्ह… राजनाथ… डाल दो… प्लीज…” माँ ने आखिरकार अपनी चाहत जाहिर की।
राजनाथ ने अपना मोटा लंड माँ की चूत में धीरे-धीरे डाला। माँ की चूत इतने सालों बाद इतने बड़े लंड को ले रही थी। “आह्ह… उफ्फ… कितना मोटा है… धीरे… आह्ह…” माँ चीख पड़ीं। राजनाथ ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। “थप… थप… थप…” कमरे में चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं। माँ की सिसकारियाँ और तेज हो गईं, “आह्ह… उह्ह… और जोर से… राजनाथ… चोदो मुझे…”
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राजनाथ ने रफ्तार बढ़ा दी। वो माँ की चूत में गहरे तक धक्के मार रहा था। माँ की गांड हर धक्के के साथ हिल रही थी। “विभा जी, तुम्हारी चूत कितनी गर्म है… आह्ह… मजा आ रहा है,” राजनाथ ने कहा। माँ भी जवाब देने लगीं, “हाँ… राजनाथ… चोदो मुझे… मेरी चूत को फाड़ दो… आह्ह…”
करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद राजनाथ ने माँ को पलटा और उनकी टाँगें अपने कंधों पर रखीं। अब वो उन्हें मिशनरी स्टाइल में चोद रहा था। माँ की चूत पूरी तरह गीली थी, और हर धक्के के साथ “छप… छप…” की आवाजें आ रही थीं। माँ बार-बार झड़ रही थीं, “आह्ह… उफ्फ… राजनाथ… मैं फिर झड़ रही हूँ…”
राजनाथ ने माँ को फिर पलटा और अब साइड से चोदने लगा। उसका लंड माँ की चूत में अलग कोण से जा रहा था। “आह्ह… राजनाथ… तुम तो मेरी जान ले लोगे… उह्ह…” माँ की आवाज में मस्ती थी।
लगभग 40 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद राजनाथ ने कहा, “विभा जी, मैं झड़ने वाला हूँ…” माँ ने कहा, “अंदर मत झड़ना… मेरे मुँह में डाल दो…” राजनाथ ने अपना लंड माँ की चूत से निकाला और उनके मुँह में डाल दिया। माँ ने उसे लॉलीपॉप की तरह चूसा, और राजनाथ ने उनके मुँह में अपना गर्म रस छोड़ दिया। माँ ने उसे पूरा पी लिया।
इसके बाद दोनों थककर बेड पर लेट गए। माँ के चेहरे पर एक अजीब सी तृप्ति थी। मैंने चुपके से ये सब देखा और बाहर निकल गया।
शाम को जब मैं लौटा, तो राजनाथ ने बताया कि उसने माँ को तीन बार चोदा था। माँ के चेहरे पर एक अलग सी रौनक थी। वो सचमुच खुश थीं। मैंने माँ से पूछा, “माँ, क्या मैं राजनाथ को पापा बोल सकता हूँ?” माँ शर्मा गईं, लेकिन उनकी आँखों में हामी थी। राजनाथ ने कहा, “हाँ बेटा, बुला लो।” मैंने माँ को गले लगाया और समझ गया कि माँ को उनका असली मर्द मिल गया था।
इसके बाद माँ और राजनाथ का रिश्ता और गहरा हो गया। वो रोज रात को चुदाई करते। घर में जब भी मौका मिलता, वो पति-पत्नी की तरह रहते। एक दिन राजनाथ ने माँ से कहा, “विभा जी, अपने पति से तलाक ले लो और मुझसे शादी कर लो।” मैंने भी कहा, “माँ, राजनाथ को मेरा ऑफिशियल पापा बना दो।”
माँ ने आखिरकार पापा से तलाक ले लिया। फिर उन्होंने राजनाथ से शादी कर ली और अपना नाम बदल लिया। उनकी सुहागरात की सेज को मैंने खुद सजाया। उस रात राजनाथ ने माँ को फिर से चोदा, और मैंने बाहर से उनकी सिसकारियाँ सुनीं।
आज माँ और राजनाथ के दो बच्चे हैं। वो दोनों बहुत खुश हैं, और मुझे भी अपनी माँ की खुशी देखकर सुकून मिलता है।
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