यह हॉट फॅमिली चुदाई स्टोरी तब की है जब मैं किसी काम से गोवा जा रहा था.बारिश का मौसम था और झमाझम पानी बरस रहा था.
मैं अपनी कार चला रहा था.अचानक से मेरी कार बीच रास्ते में झटके खाकर बंद हो गयी.
मैं परेशान हो गया कि ये क्या हुआ.रात का समय था, अनजानी सड़क थी; कोई गाड़ी भी नहीं दिख रही थी.मैं गाड़ी से उतरा और बाहर आया.
गाड़ी का मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं था.फिर भी मैंने बोनट खोल कर चैक किया, सब बराबर लग रहा था.
मैं फिर से गाड़ी में बैठ कर उसको स्टार्ट करने की कोशिश करने लगा.पर कोई फायदा नहीं हुआ.
फिर मैं परेशान सा गाड़ी से बाहर आया और सड़क के किनारे खड़े होकर किसी से मदद की उम्मीद लगाए देखने लगा.
एक दो कारें वहां से गुजरी भी, मैंने उन्हें रोकने की कोशिश भी की पर कोई कार नहीं रुकी.
मैं अब और परेशान हो गया था कि क्या करूं.फिलहाल मेरे सामने यही एक बड़ा सवाल था.
मैंने आस पास नजर दौड़ा कर देखा तो दूर कहीं हल्की सी रोशनी मुझे दिखी.तो मैंने सोचा कि चलो देखते हैं, रास्ते पर रुक कर क्या करूँगा, उधर जाकर ही देखता हूँ. हो सकता है कि वहां से कोई मदद करने वाला मिल जाए.
मैं कार बंद करके वहां से उस रोशनी की तरफ चल दिया.वहां पहुंच कर देखा तो एक पुराना सा लेकिन बड़ा मकान था.उसका दरवाजा बंद था.मैंने दस्तक दी.
अन्दर से मर्दाना आवाज आयी- कौन है?मैंने जवाब दिया- जी, मैं मुसाफिर हूँ. मेरी कार बंद हो गयी है.
फिर दरवाजा खुला और एक बुजुर्ग इन्सान बाहर आए.
वह बोले- कौन हो और नाम क्या है तुम्हारा?मैं बोला- जी, मेरा नाम विशू है. मेरी कार खराब हो गयी है. आपका घर दिखा तो मदद मांगने के लिए चला आया.
वे बुजुर्ग बोले- मैं तुम्हरी क्या मदद कर सकता हूँ?मैं बोला- जी ज्यादा कुछ नहीं, बस आपसे मदद ऐसी चाहता हूँ कि आज रात मैं यहां गुजार लूँ, कल चला जाऊंगा. रात को मैकेनिक कहां मिलेगा? वैसे क्या आप बता सकते हैं कि यहां आसपास कोई मैकेनिक है?
वह बुजुर्गवार बोले- हां, एक कोस की दूरी पर है. लेकिन वह भी अभी नहीं मिलेंगे … दुकान बंद करके अपने घर चले गए होंगे.
मैं बोला- तो क्या मैं यहां रुक सकता हूँ, अगर आप अनुमति हो तो?वे बोले- हां रुक जाओ.
तब तक गिलास में पानी लेकर एक कमसिन लड़की आयी.वह मुझे पानी लेने के लिए बोली.
मैंने भी पानी का गिलास ले लिया.वह वहीं खड़ी रही, जब तक मैंने पानी पी नहीं लिया.
मैंने गौर किया कि वह मुझे, मेरे शरीर को घूर रही थी.
मैंने गिलास वापस पकड़ाते हुए थैंक्स कहा.वह भी जवाबी वेलकम बोलकर चली गयी.
उसके बाद एक औरत आयी और मुझसे बोली- चलिए, खाना खा लीजिए.मैं बोला- जी शुक्रिया, आप तकल्लुफ ना करें!
मगर वह बुजुर्ग बोले- बेटा खाने को ना नहीं कहते.मैंने कहा- अच्छा चलिए.
जैसे ही मैंने ये बोला … और उस औरत की तरफ देखा तो पाया कि वह भी मेरे शरीर को घूर रही थी.
दिखने में तो वह भी लाजवाब थी.पतली कमर उभरे हुए उरोज और एकदम नुकीले निप्पल. मेरी नजर बार बार उसके स्तनों पर जा रही थी.
‘आइए …’ बोल कर वह मुझे देख कर मुस्कुरा दी और आगे आगे चलने लगी.मैं भी उसके पीछे पीछे चलने लगा.
अन्दर घुसते ही एक और औरत मेरे सामने आ गयी.ये एकदम करारे बदन की मालकिन थी.उसका एकदम गदराया और भरा भरा सा शरीर … स्तन भी एकदम भरे हुए, साला मेरा तो उसके चूचे दबाने का दिल करने लगा.
उसने मेरी नजर भांप ली और धीमे से बोली- पहले खाना खा लीजिए, ये भी मिलेगा.
मैंने उसके पास देखते हुए कहा- जी क्या कहा आपने?वह बोली- जी, हाथ धो लीजिए.पर मुझे पता था कि उसने कुछ और भी बोला था.
मैं हाथ धोकर खाना खाने बैठ गया.
फिर पतली औरत ने मुझे खाना परोसा और बोली- शुरू कीजिए!मैं भी ‘जी …’ बोल कर खाना खाने लगा.
खाते खाते उनसे बातें की और उनका नाम पूछा.वह लड़की बोली- जी, मैं अंजलि हूँ. ये मेरी मम्मी हैं रत्नावली … और ये मेरी चाची हैं सरिता. वह हमारे बाबूजी रघुराव जी हैं.
मैं बोला- और कोई नहीं … जैसे कि घर के मर्द!वह बोली- जी, मेरे पापा और चाचा शहर में रहते हैं.मैंने भी अच्छा कहा और खाना खाने लगा.
सबकी नजर मुझ पर थी; यहां तक किउस लड़की की भी.वह भी जवान हो चुकी थी.
मैंने हंसी मजाक में रत्नावली से कह दिया कि आपको देख कर लगता नहीं कि आपको इतनी बड़ी लड़की होगी. अभी तो आप एकदम जवान लगती हैं.वह शर्मा गयी.
फिर मैंने सरिता से पूछा- आपकी शादी कब हुयी?वह बोली- एक साल हो गया.
मैं मन में बोला- क्या पागल इन्सान है. अपनी नयी नवेली दुल्हन को अकेला छोड़ कर शहर चला गया है.दिल तो किया कि आज की रात ये मिल जाए, तो इसको जमकर ऐसा चोदूंगा कि एक बार में ही पेट से हो जाएगी.
खाना खत्म करके मैं उठा और हाथ धोने बाथरूम गया.
रत्नावली मेरे पीछे आयी और मेरे हाथों पर पानी डालने लगी.
मैंने हाथ धोये, तो उसने अपना पल्लू आगे कर दिया.मुझे हाथ पौंछने के लिए.
मैंने यहां वहां देखा और हाथ पौंछ कर उसक पल्लू खींच दिया.वह अचानक से ऐसा होने से मेरी बांहों में आ गयी.
मैंने उस किस किया और उसके स्तन दबा दिए.सच में बड़े सख्त आम थे.
मैं अगले ही पल उसकी गर्दन पर किस करने लगा.वह भी साथ देने लगी.
तभी उसकी लड़की आयी और बोली- हो गया, आपका हाथ धोना?मैंने झट से रत्नावली को छोड़ दिया.
मैं डर गया था पर रत्नावली शर्माकर भाग गयी.अंजलि मुझे देख कर हंसने लगी.
मैंने उससे कहा- गलती से हाथ लग गया था!वह बोली- आपको जो चाहिये, वह आप बिंदास ले सकते हैं.
मैं बोला- ये भी?ये कह कर मैंने अंजलि के कंधे पर हाथ रख दिया.वह हंस दी और बोली- ये भी चाहिये क्या?मैं बोला- ये तो पहले चाहिये … मिलेगी कि नहीं?
उसने उचक कर मेरे गाल पर चुम्मी दे दी … मैं संभलता कि उसने मेरे होंठों पर होंठ जमाए और किस कर दी.
मैंने भी उसे पकड़ा और किस करने लगा.वह भी साथ दे रही थी.मैं समझ गया कि हॉट फॅमिली चुदाई का पूरा मजा मिलने वाला है.
तभी मुझे किसी के चलने की आहट सुनायी दी.मैंने उस अलग किया और बाहर आया.
सामने से उसकी चाची सरिता आ रही थी.वह मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी.
मैं बाहर जा कर रघुराव जी से बात करने बैठ गया.
उधर सरिता आयी और बोली- चलो सोने आ जाइए.रघुराव जी बोले- हां चलो.
मैं अन्दर आया और देखा अन्दर सभी हॉल में सोते हैं. सबका बिछौना लगा दिया गया था.बूढ़े चाचा का एक कोने में था.
मेरा एक कोने में और महिलाओं का एक कोने में.हम सब सोने लगे.
करीब एक घंटा हुआ होगा कि मेरे बदन पर किसी का हाथ घूमने लगा, मैं डर गया.
मैंने आंख खोली तो देखा कि सरिता मेरे बगल में थी.
मैंने सर उठाकर देखा, सब सो रहे थे.
मैं उसके कान में फुसफुसाया- कोई जाग जाएगा!वह बोली- उसकी फिक्र तुम मत करो. मैं सब संभाल लूँगी.
बस फिर क्या था, मुझे मौका मिल गया.अब मैंने गौर किया तो सरिता सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी.
मैंने भी उसको दबोच लिया और किस करने लगा, उसके बदन की गर्मी मुझे महसूस हो रही थी.
मैंने किस करना शुरू किया, वह भी साथ देने लगी.
किस करते करते मैंने उसकी ब्रा उतार दी और नर्म मुलायम चूचों को आजाद कर दिया.उसके होंठ चूसना अब भी जारी था.
मैं अपना एक हाथ उसके चूचों पर ले गया और एक को दबाने लगा.वह किसी जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी.
मैंने अपना दूसरा हाथ उसकी पैंटी में डाल दिया और उसकी रसीली चूत की फांकों को सहलाने लगा.उधर मेरा होंठ चूसना अब भी जारी था.
चूचे दबाते हुए ही मैंने चूत को सहलाया और अपने उसी हाथ की बीच की उंगली सरिता की चूत में सरका दी.सरिता उछल पड़ी.वह ऊँह आह करके रह गयी क्योंकि उसके होंठों को मैंने अपने होंठों के ढक्कन से बंद करके रखा था.
सरिता की चूत अन्दर से काफी गर्म थी और गीली भी थी.उंगली को मैंने रुकने नहीं दिया, अन्दर बाहर करता रहा.
कुछ ही पलों में सरिता की स्थिति बहुत ही ज्यादा कामुक हो गयी थी.उसके होंठ मेरे होंठों में दबे हुए निरंतर रस छोड़ रहे थे.ये रस उसकी लार का था जो मुझे लगातार मजा दे रहा था.
मैं उसके दोनों चूचों को बारी बारी से दबाता जा रहा था … चूत में मेरी उंगली नाच नाच कर सारी नसों को रस झराने पर मजबूर कर रही थी.
उसका चेहरा ऐसा कामुक हो चला था जैसे मोम पिघल रहा हो.तभी उसका सब्र का बांध टूटा और छटपटाती हुई सरिता झड़ने लगी.
मैंने उसे थोड़ा वक्त दिया और होंठों को खोल दिया … चूचे भी छोड़ दिए; उसकी चूत से भी अपनी उंगली निकाल ली.
उसकी धड़कन जोर जोर से धड़क रही थी, चूचे तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे.
फिर 4-5 मिनट बाद मैंने फिर से उसे अपने कब्जे में ले लिया.
इस बार चूत की बारी थी.मैंने उसके पैरों को अलग किया.
उसको लगा कि अब चूत चोदन होगा.उसके चेहरे पर कातिल मुस्कान आ गयी.
पर मैंने पैर अलग करके ऊपर कर दिए.अब उसके जिस्म का आकार इंग्लिश के लेटे हुए यू के जैसे हो गया था.
वह अचंभे में थी कि क्या हो रहा है.कुछ सोच पाती वो … तब तक मैंने उसके चूत की फांकों को खोल कर अपनी जुबान उसकी चूत में घुसा दी.वह उछल पड़ी.
मैंने उसकी टांगों को पकड़ कर रखा था सो वह कुछ न कर सकी.मैं अपनी जुबान को अन्दर तक चला रहा था.
इस सुख से शायद वह अब तक अनजान थी.कुछ ही पलों में वह मजा लेने लगी.
मैंने करीब 5 मिनट तक उसकी चूत चाटी.उसकी चूत के दाने को जुबान से सहलाया.
वह एकदम से सहन न कर पाई और भलभला कर झड़ने लगी.मैंने उसकी चूत के रस को चाट लिया और चूत को चाट चाट कर फिर से खौला दिया.
अब वह मेरे लौड़े को पकड़ने लगी थी.मैंने अपने लंड को चड्डी में से आजाद कर दिया और उसका हाथ ले जाकर मेरे लंड पर रख दिया.
वह लंड को हाथ में लेते ही डर गयी और दबी आवाज में बोली- उई मां, इतना बड़ा … मेरी तो फट ही जाएगी.मैं बोला- कुछ नहीं होगा रानी … मैं आराम आराम से करूंगा.
मैंने तुरंत पोजीशन ली और उसके यू आकार पर मैं चढ़ गया.अपने लंड को उसकी चूत पर सैट किया और एक करारा धक्का दे मारा.
मेरा लंड सरसराता हुआ उसकी चूत को फाड़ता हुआ अन्दर तक जा घुसा.उसकी सांस अटक गयी, आंखें बड़ी हो गईं.
पर वह आवाज निकाले बिना सब सह गयी.तब भी इस चक्कर में उसकी आंख से आंसू भी टपक गए.
मैं बिना रुके ताबड़तोड़ धक्के मारता जा रहा था.कुछ देर बाद उसे भी मजा आने लगा, वह भी उछल उछल कर साथ देने लगी.
फिर एकदम से उसने मुझे ऐसे पकड़ लिया मानो उसमें न जाने कहां से ताकत आ गयी हो.वह अपने नाखून मेरी पीठ में गाड़ने लगी.
अगले कुछ ही मिनट में वह झड़ने लगी.उसके पानी से मेरे लिए आसान हो गया था. चूत के अन्दर काफी चिकनाई हो गयी थी.
मेरा लंड अब और अन्दर तक घुसने लगा था, वह चोट पर चोट लगाने लगा.मैंने उसे किस करना भी जारी रखा, उसके होंठ लाल हो गए थे.
मैं उसके होंठ चूसता हुआ चूचे भी दबा दबा कर मजा ले रहा था.
अब मैंने उसकी एक टांग छोड़ दी और एक वैसे ही रखी.इस तरह से आसन बदल गया था … पर मैं रुका नहीं.
मैं उसको इसी आसन में पेलने लगा. उसकी चूत मेरे लंड की रगड़ से लाल हो गयी थी.अब वह भी मेरा साथ देने लगी थी.
कुछ ही देर बाद मेरा बांध छूटा, तब वह भी मुझे चिपक कर झड़ने लगी.उसकी चूत मेरे रस से भर गयी.
हम दोनों थक गए, दोनों हांफने लगे.मैंने उसका दूसरा पैर भी छोड़ दिया.
वह सीधी हो गयी.मैं उस पर लेट गया.वह मेरे नीचे दबी थी.
तभी वह मेरे कान में फुसफुसाती हुई बोली- मेरी तो फट गयी … क्या धमाकेदार चुदी मैं आज … आह सुहागरात में भी मैं इतनी नहीं चुदी थी. मजा आ गया … मेरी सारी नसें खुल गईं.मैं बोला- थैंक्स यार … मुझे भी मजा आ गया. अब मैं सुकून से सो सकूंगा.
वह हंस कर बोली- आज की रात हम लोग तुम्हें सोने नहीं देंगे.यह कह कर वह वहां से उठ गयी.
मैं उसकी बात सुनकर अवाक था और खुश भी था.
सरिता की चुदाई करके मैं उस पर ही लेट गया था.वह मेरे नीचे दबी थी.
फिर वह उठ कर जाते समय मेरे कान में फुसफुसा कर बोली कि आज की रात हम लोग तुम्हें सोने नहीं देंगी.
अब आगे न्यू चुत की कहानी:
मैंने चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश कर ही रहा था, तभी मेरे करीब कोई आया.
यह आहट बड़ी धीमी थी.मैंने देखा तो ये रत्नावली थी.
वह जमीन पर लुढ़कती हुई मेरे पास आई थी.उसके पैरों में पायलों की छम छम की आवाज से सबको पता चल गया होगा कि रत्नावली वहां से यहां मेरे करीब आई होगी.
खैर … मैं चुप था.
तभी उसने अपना हाथ मेरे बदन पर रख दिया.मैं फिर भी सोने का नाटक करने लगा.
उसने उसके हाथों को हरकत दी और उसका हाथ सीधे मेरे लंड पर आ गया.बस … उसका हाथ लगते ही लंड खड़खड़ा कर जाग गया और सलामी देने लगा.
तभी वह मेरे कान में बोली- मुझे ठंडा नहीं करेंगे क्या?मैं बोला- जी, कोई देख लेगा!
तब वह बोली- सबने देख लिया है कि आप सरिता को ठोक रहे थे. वह भी कलमुंही सबसे पहले नंबर लगा बैठी.मैं डर गया.
मैं बोला- कौन कौन देख रहा था?तो वह बोली- मैं, ससुर जी, अंजलि सबने देखा और मजा लिया.
‘अभी भी देख रहे हैं क्या?’ मैं दबी आवाज में बोला.उस पर वह बोली- हां, मगर डरने की जरूरत नहीं है. सब मस्ती कर रहे हैं.तभी मैंने सब पर नजर घुमाई, तो सरिता इस तरफ ही देख रही थी.
फिर मैंने रघुराव जी के पास नजर घुमाई, तो मुझे कुछ अजीब सा लगा.रघुराव जी कामुक सांसें ले ऱहे थे.
मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ा.फिर शक हुआ कि वह गर्म हो गए होंगे और अपना लंड हिला रहे होंगे.
मैंने नजर नीचे की तो मुझे झटका लगा.नीचे अंजलि अपने दादा का मुरझाया लंड मुँह में लिए चूस रही है और दादा जी अपनी एक उंगली पोती की चूत में घुसेड़ कर मजा ले रहे हैं.
अब मैं भी बिंदास हो गया और रत्नावली को किस करने लगा.
किस करते करते मैंने उसके सारे कपड़े उतार दिए.वह एकदम नंगी हो गयी थी.मैं भी उसी हालत में था, जिस हालत में सरिता मुझे छोड़ गयी थी … नंगा.
किस करते करते मैं उसके चूचे दबाने लगा.उसके दोनों चूचे एकदम कड़क हो गए थे.मैंने जोर जोर से उन्हें दबाया.
फिर थोड़ा ऊपर होकर मैंने उसके मुँह में अपना लंड ठूंस दिया.
पहले उसने आनाकानी की, फिर मुँह खोल कर लंड को अन्दर ले लिया और चूसने लगी.कुछ ही देर में पूरा लंड मुँह में भरकर चूसने लगी.
मेरे लंड का टोपा फूलने लगा.कुछ मिनट तक बिना रुके वह चूसती रही थी.
अब मेरा पानी निकलने को हुआ, मैंने उसके मुँह से अपना लंड निकाल लिया और मैंने उसके पैरों को अलग कर दिया.
उसकी गांड के नीचे तकिया घुसा दिया ताकि उसकी चूत खुल कर मेरे सामने आ सके.
अब मैं उसकी चूत पर टूट पड़ा, अपनी जुबान को नुकीली करके मैं उसकी फांकों को चाटने लगा, अपने होंठों में पकड़ कर खींचने लगा, उसके दाने को जुबान से सहलाने लगा, दाने को होंठों में पकड़ कर चूसने लगा.
रत्नावली पागल होने लगी छटपटाने लगी, सर पटकने लगी और पैर हिलाने लगी.
उसकी पायल की आवाज पूरे घर में गूंज रही थी.उसने मेरे सर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा दिया.
मेरी जीभ अब अन्दर तक मतलब चूत के अन्दर उसकी गर्भाशय तक चलने लगी.वह थरथराई और उसने मेरे सर पर दबाव और बढ़ा दिया.बस उसी पल वह सरसराती हुई झड़ने लगी.उसने अपनी चूत का सारा रस मेरे मुँह पर छोड़ दिया.मैं भी चाट कर पी गया.
अब वह शिथिल पड़ गयी.
मैंने उसे औंधा करके घुटनों के बल लिटा दिया.ये सब खुले आम हो रहा था.
मैंने एक नजर अंजलि पर मारी तो वह अब अपने दादा पर उलटी लेटी थी.मतलब दादा उसकी चूत चाट रहा था और अंजलि दादा का मुरझाया हुआ लंड मुँह में लिए चूस रही थी.
इधर सरिता हम दोनों को देख रही थी.
मैंने रत्नावली को घुटनों पर करके झुकाया और मैं पीछे से आ गया.
अपनी हथेलियों में मैंने बहुत सारा थूक ले लिया और उसे रत्नावली की गांड पर मल दिया.फिर उंगली से थोड़ा सा थूक अन्दर भी सरका दिया और अपने लंड पर भी लगा दिया.उसके बाद मैंने लंड को उसकी गांड पर सैट किया और दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ कर जोर देकर लंड उसकी गांड में पेलने लगा.
वह आगे को सरकने लगी.
पर मैंने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली, उसको दर्द होने लगा.
मेरा दबाव बढ़ने लगा.लंड का टोपा अन्दर घुस चुका था पर अटक गया था क्योंकि रत्नावली ने गांड का छेद कसके जकड़ा हुआ था.
वह रोने लगी और मुझसे छूटने का प्रयास करने लगी पर न भाग पायी.
तब वह मुझसे बोली- निकालो, मेरी गांड फट गयी. मैं आपके पांव पड़ती हूँ. पर मुझे छोड़ दो … बहुत दर्द हो रहा है. मुझे जाने दो.
पर मैंने उसको कसके पकड़ा और सोचा धीरे करने से पीड़ा ज्यादा होगी; एक ही झटके में उतार दो लंड.बस मैंने जोर का धक्का मारा, पूरा लंड गांड की हर दरवाजे को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया.
रत्नावली की आंखें बड़ी हो गईं.अब वह रोने लगी, छटपटाने लगी … आगे को सरकने को होने लगी और उठने को हुई.पर मेरी पकड़ के आगे सब बेकार साबित हुआ.
मैंने अपना झंडा उसकी गांड में घुसेड़ कर लहरा दिया.पांच मिनट तक ना मैं हिला … ना उसको हिलने दिया.
उसके बाद जैसे ही उसका दर्द थोड़ा कम हुआ, मैंने धक्के देने चालू किए.
उसका दर्द अभी भी था, हर धक्के पर चिल्ला रही थी पर मैं ठोके जा रहा था.
ठप ठप की आवाज घर में गूंज रही थी.मैं सोच रहा था कि बुड्डे की बहू की गांड चुद रही थी.
उसके पति ने नहीं गांड नहीं मारी थी पर आज एक अजनबी गांड में लौड़ा घुसेड़ कर चोदे जा ऱहा था, गांड बजाए जा रहा था.
ठोक ठोक कर उसकी गांड लाल हो गयी थी, पर मुझे रहम न आया.अब मैंने आसन बदला, लंड अन्दर ही अटका कर उसे सीधा किया.मैंने लंड बाहर आने ही नहीं दिया.
अब उसकी चूत मेरे सामने थी, पर लंड गांड में अटका पड़ा था.
मैंने फिर से लंड गांड में चलाना शुरू किया.उसकी टांगों को अपने हाथों में थामा और धाड़ धाड़ पेलने लगा.
पूरे बीस मिनट तक उसकी टांगें ऊपर करके उसकी गांड के छेद को ठोक ठोक के ढीला कर दिया, तब जाकर मेरा पानी निकला.आह … क्या कड़क गांड थी साली की … चोद कर मजा आ गया.
मैं झड़ कर उसके ऊपर ही लेट गया.
उसने आहिस्ता आहिस्ता अपनी टांगें नीचे की.उसकी गांड में मेरा सारा रस भर गया था, टांगें नीची होते ही वह सरस अब बहने लगा था.
इन दो लुगाइयों को चोद कर मैं काफी थक चुका था.
कुछ देर तक यूं ही रत्नावली के ऊपर लेटा रहने के बाद मैं उठ कर बाथरूम चला गया.
लौड़े की साफ सफाई करके वापस आया.मुझे आया देख कर रत्नावली उठ खड़ी हुई. पर सीधी खड़ी होने में उसे तकलीफ हो रही थी, वह कमरतोड़ चुदी थी. वह चलना तो जैसे भूल ही गयी थी … लंगड़ाने लगी थी.
लंगड़ाती हुई वह बाथरूम में चली गयी.
मैंने फिर से एक बार सबको देखा.सरिता हंस रही थी लेकिन अंजलि अभी भी लगी पड़ी थी.
दोनों दादा पोती 69 की पोजीशन में लगे थे, दोनों एक दूसरे की चाट रहे थे.
मैं अंजलि के पीछे आया मतलब रघुराव जी के सर के पास बैठ गया.उसकी नाइटी पीछे से थोड़ी उठी थी पर नीचे से खुली थी.तभी तो वह बुढ़ऊ चूत चाट रहा था.
मैंने उसकी नाइटी निकाल फेंकी.अब वह नंगी थी.
मैं उस पर अपना हाथ फेरने लगा.कमसिन लौंडिया के चिकने बदन पर हाथ फेरते ही मेरा लंड फिर से सलामी देने लगा.
देता भी क्यों नहीं भोसड़ी वाला … एक कमसिन बदन की गर्मी जो महसूस हो रही थी.
मैं भी तो नंगा ही था. मैंने अपना लंड ले जाकर उससे अंजलि की चूत को कुरदने लगा.मेरी इस हरकत से मेरा लंड बूढ़े के होंठों पर छूने लगा.
मैं और जोर से अंजलि की चूत पर अपना लंड घिसने लगा.अब बुड्ढा अपनी जुबान से मेरे लंड को भी चाटने लगा.
अब हो ये रहा था कि अंजलि बूढ़े का लंड चूस रही थी. बुड्डा अंजलि की चूत चाट रहा था.मेरा लंड अंजलि की चूत पर और बूढ़े के होंठों के बीच में रगड़ खा रहा था.
दो अलग अलग किस्म की गर्मी मेरे लंड पर महसूस हो रही थीं.
कुछ ही देर में मैं तीसरी चुदायी करने के लिए तैयार हो चुका था.
इस बार एक भी जवान जिस्म मेरे लौड़े को हासिल होने वाला था.
मेरी तो मानो लॉटरी लग गयी थी.एक रात में दो जिस्म मैं भोग चुका था तीसरा भोगने जा रहा था, न्यू चुत की चुदाई होनी थी.
बूढ़े की जुबान से मेरा लंड गीला हो चुका था.
मैंने अंजलि को थोड़ा सा उठाया और अपने आपको सैट किया.लंड को उसकी नमकीन चूत पर लगाया और उसी के ऊपर औंधा हो गया.
अब मैंने उसके ऊपर अपनी पकड़ बना ली थी. पोजीशन सैट होते ही मैंने कमर को एक जोरदार झटके से हिलाया ही था कि मेरा आधे से ज्यादा लंड अंजलि की न्यू चूत में जा फंसा.
वह चिल्लाई- उई मां मर गयी … फट गयी हरामजादे … मार डाला निकाल अपना मूसल आह दर्द हो रहा है मर गयी … भोसड़ी वाला चोद रहा है कि चूत का खून कर रहा है.
ऐसा बोलती हुई अंजलि छटपटाने लगी.वह मेरी पकड़ से भागने का जुगाड़ देखने लगी.
मैंने उसको दबोच रखा था.उसका छटपटाना जारी था पर मैंने उसको एक इंच भी हिलने नहीं दिया.यदि वह हिल जाती तो मेरा लंड निकल जाता.
कुछ मिनट तक मैं उसी स्थिति में उसको दबोचे पड़ा रहा और उसे किस करता रहा.
अब बारी उसकी झिल्ली फटने की थी. वह भी अब शांत हो रही थी.
मैंने फिर से एक पहलवानी धक्का मारा, तो पूरा का पूरा लंड सरसराता हुआ सारी दीवारों को चीरता फाड़ता हुआ आखिरी छोर तक जा पहुंचा.अंजलि रोने लगी, उसकी सील टूट चुकी थी.खून उसके दादा के मुँह पर गिर रहा था.
उसकी आंखें बाहर निकल आई थीं, जैसे चूत में लंड ना हो कोई छुरा घुसा दिया हो.वह छटपटाने लगी थी, पर कोई फायदा नहीं हुआ.
मैं भी बिना रुके उस चोदने लगा, धक्के मारने लगा.वह लगातार रो रही थी, पर मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.
तभी रत्नावली भी लंगड़ाती हुई बाहर आई.उसने मुझे देखा, वह एकदम से शॉक हो गयी.
उसकी बेटी दादा के मुँह पर चुद रही थी. ठप ठप की आवाज आ रही थी.साथ में वह गाली भी बक रही थी पर चुद रही थी.
कुछ देर बाद वह रोना बंद कर चुदने का मजा लेने लगी थी.तभी उसने अपने दादा का लंड जोर से पकड़ा.दादा चिल्लाया और साथ में ये भी चिल्लाती हुई झड़ने लगी.बूढ़ा मरते मरते बचा.
झड़ने के बाद उसको अहसास हुआ कि उसने क्या दबाया था.अब मुझे भी चोदने में आसानी हो रही थी.
उसका रस निकलने के कारण मेरा लंड ऊपर नीचे आसानी से हो रहा था.मैं लय में उसको चोद रहा था.
तभी वह फिर से एक बार कड़क हो गयी.
अब मेरा भी पानी निकलने को था.हम दोनों एक साथ बहने लगे.
थोड़ा पानी गिर गया पर मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में फंसा था.
मैंने उसे वैसे ही अपने बदन पर कसके पकड़ा और उठ गया.मैं अंजलि वैसे ही उठाये हुए बाथरूम में चला गया.
उसे बाथरूम उतारा और उतरते ही मेरा लंड बाहर निकल आया.उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था पर मैंने सहारा देकर उसको खड़ा किया.
हम दोनों का रस उसकी चूत से निकल कर बहने लगा.मैंने ही उसे साफ किया, खुद को भी साफ किया और दोनों बाहर आ गए.
मैं उसे दोनों हाथों में उठा कर लाया था. उसकी मां और चाची दोनों हमें देख कर हंसने लगी थीं.
हमारे आते ही बुड्डा बाथरूम में गया. मैंने अंजलि को अपने बगल में ही लिटा लिया और उन दोनों को इशारा करके नजदीक सोने को बोल दिया.
दोनों आईं.
हम सब साथ में सो रहे थे.तभी बुड्ढा भी बाहर आया.उसने भी देखा कि हम सब साथ में सो रहे हैं. पर वह कुछ बोला नहीं; चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर सो गया.
सुबह फिर से एक बार मैंने सरिता को चोदा.फिर नहा धोकर बाहर निकला तो जाते वक्त मैंने तीनों को 500-500 रूपए दिए.तीनों खुश थीं.
मैं घर से निकला और बूढ़े को बोला- अच्छा चाचा जी, मैं चलता हूँ.
ये बोल कर मैं चल दिया. पहले मैकेनिक को बुलाने गया, फिर कार सही करवा कर आगे निकल गया.
दोस्तो, आपको मेरी न्यू चुत की कहानी कैसी लगी, मेल और कमेंट्स से बताएं.धन्यवाद. vishuraje010@gmail.com
Comments