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गुरुजी का आशीर्वाद - Antarvasna Sex Stories

दोस्तों, मेरा नाम नेहा है। मैं एक 38 साल की शादीशुदा औरत हूँ, मेरी हाइट 5 फीट 4 इंच है, मेरा रंग गोरा है और मेरा फिगर 36-30-38 है, जो मुझे एक आकर्षक और सेक्सी लुक देता है। मेरी फैमिली में मेरे पति, जिनका नाम रमेश है, और उनकी उम्र 42 साल है, वो एक मध्यम कद-काठी के इंसान हैं, और हमारी दो बेटियाँ हैं। बड़ी बेटी टीना, 19 साल की, कॉलेज में पढ़ती है, और छोटी बेटी मीना, 18 साल की, जो अभी 12वीं में है। हमारी फैमिली एक मिडिल क्लास फैमिली है, जो हमेशा सुख-चैन की तलाश में रहती है।


पहले मेरे पति रमेश एक बड़ी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर काम करते थे, लेकिन बदकिस्मती से वो कंपनी बंद हो गई। इसके बाद हम दिल्ली से यूपी के एक छोटे से शहर में शिफ्ट हो गए। यहाँ आने के बाद रमेश ने कई कंपनियों और फैक्ट्रियों में इंटरव्यू दिए, लेकिन कहीं भी बात नहीं बनी। धीरे-धीरे हमारे पास जो थोड़ा-बहुत पैसा बचा था, वो भी खत्म हो गया। घर में अब रोजाना पैसे को लेकर झगड़े होने लगे। मैं और रमेश इस बुरे वक्त से इतने परेशान हो चुके थे कि रात को नींद भी नहीं आती थी। हम दोनों बस यही सोचते थे कि आखिर कब तक ये मुसीबतें हमारा पीछा करेंगी।


आखिरकार रमेश को एक छोटे से ऑफिस में जॉब मिली, लेकिन वहाँ सैलरी इतनी कम थी कि बस गुजारा हो रहा था। वो जॉब सिर्फ टाइमपास थी, कोई बड़ी राहत नहीं दे रही थी। मैं भी घर की हालत देखकर तनाव में रहने लगी थी। एक दिन मैं मार्केट से कुछ सामान लेकर घर लौट रही थी, तभी मेरी नजर एक दीवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी। उस पोस्टर पर एक मशहूर बाबा, जिन्हें बाबा चिंता मुक्त के नाम से जाना जाता था, की फोटो थी। उनके बारे में लिखा था कि वो पल भर में सारी चिंताएँ और टेंशन दूर कर देते हैं। पोस्टर देखकर मेरे मन में एक उम्मीद की किरण जागी। उस वक्त मेरे घर की हालत इतनी खराब थी कि मैं कुछ भी करने को तैयार थी, बस अपने परिवार को इस मुसीबत से निकालना चाहती थी। मैंने मन ही मन फैसला कर लिया कि मैं बाबा जी के पास जाऊँगी।


घर पहुँचते ही मैंने रमेश से इस बारे में बात की। मुझे पता था कि वो बाबाओं और ऐसी चीजों पर जरा भी यकीन नहीं करते। फिर भी मैंने हिम्मत करके उनसे कहा। रमेश ने थोड़ा नाराजगी भरे लहजे में जवाब दिया, “देखो नेहा, तुम्हें तो पता है कि मुझे इन बाबाओं पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि इससे कुछ फायदा होगा, तो जाओ। मैं तुम्हें मना नहीं करूँगा। जो तुम्हें ठीक लगे, वो करो।”


उनकी इजाजत मिलते ही मैंने अगले दिन बाबा जी के आश्रम जाने की तैयारी कर ली। अगले दिन मैं सुबह उठी, नहा-धोकर एक साड़ी पहनी और अच्छे से तैयार होकर आश्रम पहुँच गई। वहाँ सत्संग चल रहा था। ढेर सारे लोग बाबा जी की बातें सुन रहे थे। बाबा जी के पास दो लड़कियाँ खड़ी थीं, दोनों ने सफेद साड़ियाँ पहनी थीं, और वो बड़ी भक्ति-भाव से बाबा जी की सेवा कर रही थीं। जब मेरी बारी बाबा जी से मिलने की आई, तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा, “बेटी, तुम्हारे माथे की लकीरें साफ बता रही हैं कि तुम बहुत बड़ी मुसीबत में हो। तुम बाद में मुझसे अकेले में मिलो।”


तभी उनकी एक सेविका, जो शायद 40-45 साल की थी, मेरे पास आई और बोली, “बेटी, तुम बिल्कुल सही जगह आई हो। बाबा जी तुम्हारी सारी परेशानियाँ और मुसीबतें पल में दूर कर देंगे।” उनकी बात सुनकर मेरा हौसला और बढ़ गया। मैं साइड में खड़ी हो गई और बाबा जी के बुलावे का इंतजार करने लगी। कुछ देर बाद सारे लोग चले गए। फिर एक लड़की मुझे बुलाने आई। मैं अंदर गई तो देखा कि बाबा जी एक छोटे से कमरे में पूजा कर रहे थे। उनके सामने अगरबत्ती जल रही थी, और हल्का-हल्का धुंआ कमरे में फैल रहा था।


उनके एक सेवक ने मुझे इशारा किया कि मैं बाबा जी के सामने बैठ जाऊँ। मैंने सिर पर चुन्नी डाली, दोनों हाथ जोड़े और चुपचाप उनके सामने बैठ गई। बाबा जी ने अपनी आँखें बंद की थीं और तेज-तेज होठ हिलाकर कुछ मंत्र पढ़ रहे थे। मैं बस चुपचाप बैठी उनकी हरकतों को देख रही थी। करीब 5 मिनट बाद अचानक उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और जोर से बोले, “बेटी, तुम तो सचमुच बहुत बड़ी मुसीबत में हो। मैं तुम्हारी जन्म कुंडली में एक बहुत बड़ा दोष देख रहा हूँ। इसी दोष की वजह से तुम्हारे घर में इतनी अशांति फैली है। तुम्हारे घर से खुशियाँ बहुत दूर चली गई हैं।”


उनकी बात सुनकर मैं डर गई। मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। मैं घबराते हुए बोली, “बाबा जी, फिर आप ही कुछ कीजिए। मुझे क्या करना होगा? मैं किसी भी भगवान की दिन-रात पूजा करने को तैयार हूँ। बस आप मुझे कोई उपाय बता दीजिए।”


बाबा जी ने शांत स्वर में कहा, “बेटी, फिकर मत करो। अब तुम यहाँ तक आ ही गई हो, तो डरने की कोई जरूरत नहीं। मैं सब ठीक कर दूँगा।”


मैं गिड़गिड़ाते हुए बोली, “बाबा जी, फिर जल्दी बताइए ना, क्या करना होगा?”


वो बोले, “बेटी, ध्यान से सुनो। कल ठीक 12:30 बजे यहाँ आना। नहाकर, नए कपड़े पहनकर, बिना मंगलसूत्र और बिना सिंदूर के आना। मैं कल से ही तुम्हारी पूजा शुरू करूँगा। और हाँ, इस पूजा के बारे में तुमने किसी को कुछ नहीं बताना। वरना इसका कोई फायदा नहीं होगा।”


उनकी बात सुनकर मैं घर लौट आई। सारा दिन और पूरी रात मैं यही सोचती रही कि मेरी कुंडली में इतना बड़ा दोष है, और मुझे अब जाकर पता चला। मेरी वजह से ही मेरे पति और बच्चों को इतनी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं। मैंने ठान लिया कि कल मैं बाबा जी के पास जाकर अपनी कुंडली का दोष जरूर ठीक करवाऊँगी।


अगले दिन मैं सुबह जल्दी उठी। रमेश को नाश्ता करवाया, उन्हें जॉब के लिए विदा किया, और फिर बच्चों को स्कूल छोड़कर घर वापस आई। मैंने जल्दी से बाथरूम में जाकर अच्छे से नहाया और एक गुलाबी रंग की साड़ी पहन ली। जैसा बाबा जी ने कहा था, मैंने ना मंगलसूत्र पहना और ना ही माँग में सिंदूर लगाया। फिर मैं सीधे आश्रम पहुँच गई।


वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि आज आश्रम में कोई नहीं था। शायद बाबा जी ने पहले ही सबको बता दिया था कि आज एक खास पूजा है, इसलिए वो किसी से नहीं मिलेंगे। मैं आश्रम के अंदर गई। उनकी सेविकाओं ने मुझे अंदर का रास्ता दिखाया। अंदर एक छोटा सा कमरा था, जहाँ बाबा जी फर्श पर बैठे थे। पास में एक छोटा सा बेड भी रखा था। मैंने सोचा कि शायद ये बाबा जी का बेडरूम है, और वो रात को यहाँ पूजा करने के बाद यहीं सो जाते होंगे। मैं उनके सामने बैठ गई।


तभी उनकी एक सेविका बोली, “बहन, तुम एकदम सही जगह आई हो। बाबा जी के पास इतनी शक्तियाँ हैं कि वो तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकते हैं।”


मैं चुपचाप बाबा जी के सामने बैठी रही। वो अग्नि में घी डालकर मंत्र पढ़ रहे थे। तभी उनकी एक सेविका बाहर से एक गिलास दूध लेकर आई और बाबा जी को दे दिया। बाबा जी ने थोड़ा सा दूध अग्नि में डाला, फिर कुछ मंत्र बोले और पूरा गिलास मुझे दे दिया। वो बोले, “लो बेटी, इसे पूरा पी लो। इससे तुम्हारी आत्मा और मन दोनों शुद्ध हो जाएँगे।”


मुझे बहुत डर लग रहा था, लेकिन मैंने हिम्मत की और एक ही बार में पूरा दूध पी लिया। दूध पीते ही मुझे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। मेरी आँखों के सामने धुंध छाने लगी, और मैं फर्श पर गिर पड़ी। मुझे कुछ लोग उठाकर बेड पर ले गए। मैं सब कुछ देख तो रही थी, लेकिन कुछ कर नहीं पा रही थी। मेरा शरीर जैसे सुन्न हो गया था।


तभी बाबा जी उठे और अपनी सारी सेविकाओं को बाहर जाने को कहा। फिर उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद किया और अंदर से लॉक कर लिया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ आखिर हो क्या रहा है। बाबा जी मेरे पास आए और मेरी साड़ी को खींचकर मेरे बदन से अलग कर दिया। फिर उन्होंने मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरे बूब्स पर हाथ रखा और कुछ मंत्र पढ़ने लगे। उनके हाथ मेरे बूब्स पर फेरते हुए मेरे पेट तक गए। उनके स्पर्श से मेरे शरीर में एक अजीब सी सनसनी होने लगी। मेरी आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं।


फिर बाबा जी मेरे ऊपर झुके और मेरे ब्लाउज के हुक खोल दिए। उन्होंने मेरी कमर के नीचे से हाथ डालकर मेरी ब्रा के हुक भी खोल दिए और दोनों को एक साथ खींचकर साइड में फेंक दिया। अब मैं कमर तक पूरी नंगी थी। शर्म से मेरा बुरा हाल था, लेकिन मैं कुछ कर नहीं पा रही थी। बाबा जी ने एक तेल की शीशी ली और मेरे बूब्स पर तेल डालकर उनकी मालिश करने लगे। उनके हाथ मेरे बूब्स पर फिसल रहे थे, और मेरी साँसें तेज होने लगीं। मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी। तेल की खुशबू कमरे में फैल रही थी, और उसकी महक से मेरा मन और भी बेकाबू हो रहा था।


बाबा जी मेरे पास बैठ गए और मेरे निप्पल्स को अपनी उंगलियों से सहलाने लगे। मेरे निप्पल्स सख्त हो गए, और मेरा शरीर उनके हर स्पर्श पर काँपने लगा। फिर उन्होंने मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में लिया और चूसने लगे। उनका दूसरा हाथ मेरे पेट पर फिसल रहा था। उनके चूसने का अहसास इतना सुखद था कि मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी। “आह्ह… उह्ह…” मेरे मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगीं।


मुझे याद आया कि रमेश ने तो कभी मेरे बूब्स को इस तरह प्यार नहीं किया। वो हमेशा जल्दबाजी में सेक्स करते थे, और पिछले कुछ समय से तो घर की परेशानियों की वजह से उन्होंने मुझे छुआ तक नहीं था। लेकिन आज बाबा जी के हाथों और मुँह का स्पर्श मुझे जन्नत का अहसास करा रहा था। मेरे मन में एक अजीब सी उत्तेजना थी, और मैं चाहकर भी खुद को रोक नहीं पा रही थी।


बाबा जी ने कहा, “बेटी, घबराओ मत। शांत रहो और इस पूजा में मेरा साथ दो। मैं तुम्हारी सारी परेशानियाँ दूर कर दूँगा।”


उनकी बात सुनकर मैं और निश्चिंत हो गई। फिर वो मेरे ऊपर आए और मेरी गर्दन को चूमने लगे। उनकी गर्म साँसें मेरी त्वचा पर महसूस हो रही थीं। वो मेरे बूब्स को प्यार से दबाते हुए मेरी गर्दन को चाटने लगे। “आह्ह… बाबा जी…” मेरे मुँह से अनायास निकल गया। कमरे में जल रहा दीया और उसकी हल्की रोशनी एक अलग ही माहौल बना रही थी। मेरे मन में डर था, लेकिन साथ ही एक अजीब सी मस्ती भी थी।


बाबा जी ने मेरे गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में घुसी, और वो मेरे होंठों को अपनी जीभ से चाटने लगे। “उम्म… आह्ह…” मेरी सिसकारियाँ और तेज हो गईं। उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर तक जा रही थी, और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे मुँह को चोद रहे हों। फिर वो मेरे चेहरे को देखने लगे, शायद ये देखने के लिए कि मुझे कोई तकलीफ तो नहीं। लेकिन मेरे चेहरे पर शायद वही मस्ती दिख रही थी, जो मैं महसूस कर रही थी।


वो बोले, “बेटी, तुम्हें कैसा लग रहा है? अगर कोई बात है, तो बता दो। अब मैं तुम्हारे दिल पर मंत्र मारूँगा।”


ये कहते ही वो जोर-जोर से मंत्र पढ़ने लगे। बाहर बैठे उनके सेवक भी उनके साथ मंत्रोच्चार करने लगे। मुझे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। मेरे मन में डर भी था कि कहीं ये सब मेरे साथ गलत न हो जाए, लेकिन नशे की हालत में मैं कुछ कर नहीं पा रही थी। मुझे अब ये भी अहसास हो गया था कि बाबा जी मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेंगे। और कहीं न कहीं मेरे मन में भी अब ये इच्छा जाग रही थी।


मैंने सोचा कि मैंने तो किसी को नहीं बताया कि मैं यहाँ आई हूँ। अगर कुछ गलत हुआ, तो मैं क्या करूँगी? लेकिन नशे की वजह से मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं था। मैं चुपचाप लेटी रही और जो हो रहा था, उसका मजा लेने लगी।


बाबा जी बोले, “बेटी, मैंने तुम्हारा मुँह तो शुद्ध कर दिया। अब तुम्हारे बाकी शरीर को शुद्ध करना बाकी है। इसमें तुम मेरा साथ दोगी, तो तुम अपनी सारी समस्याओं से मुक्ति पा लोगी।”


मैं नशे में थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी। बाबा जी ने फिर से तेल लिया और मेरे पूरे शरीर पर मालिश करने लगे। वो मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे बूब्स पर आए और फिर से मेरे निप्पल्स को चूसने लगे। “आह्ह… ओह्ह…” मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। फिर उन्होंने पास से एक कटोरी में शहद लिया और मेरी नाभि में डाला। वो अपनी जीभ से मेरी नाभि को चाटने लगे, और शहद को चूस-चूसकर पीने लगे।


फिर बाबा जी ने अपना मोटा लंड निकाला, जो करीब 7 इंच का था और काफी मोटा भी। उन्होंने इसे मेरी नाभि पर रगड़ना शुरू किया। उनके लंड का स्पर्श मेरे शरीर में आग लगा रहा था। मेरी चूत में हलचल होने लगी, और मेरी गांड अपने आप ऊपर-नीचे होने लगी। “आह्ह… बाबा जी… उह्ह…” मैं सिसकार रही थी। मेरी आँखें मस्ती में बंद हो गई थीं।


बाबा जी बोले, “वाह बेटी, ऐसे ही पूजा में मेरा साथ दो। तुम्हारा कल्याण पक्का है।”


फिर वो मेरी नाभि को चाटते हुए मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोलने लगे। उन्होंने मेरा पेटीकोट और गुलाबी पैंटी एक साथ खींचकर उतार दी और कमरे में कहीं फेंक दी। अब मैं उनके सामने पूरी नंगी थी। उनकी नजर मेरी चूत पर थी, जो पहले से ही गीली हो चुकी थी। वो मेरी चूत को देखकर और जोर-जोर से मंत्र पढ़ने लगे।


फिर वो बोले, “बेटी, अब समय आ गया है कि मैं तुम्हारे शरीर की सारी गंदगी साफ कर दूँ और तुम्हें तुम्हारी परेशानियों से मुक्त कर दूँ। अपनी टाँगें खोलो।”


मैंने धीरे-धीरे अपनी टाँगें खोल दीं। बाबा जी ने तेल लिया और मेरी चूत की मालिश शुरू कर दी। उनके हाथ मेरी चूत के होंठों पर फिसल रहे थे, और मेरी चूत जैसे जाग उठी थी। “आह्ह… उह्ह…” मेरी सिसकारियाँ और तेज हो गईं। फिर उन्होंने मेरी चूत में अपनी एक उंगली डाली और मेरी चूत के दाने को सहलाने लगे। इसके बाद उन्होंने मेरी चूत पर शहद डाला और तेल के साथ मिलाकर उसे रगड़ने लगे।


फिर बाबा जी ने मेरी चूत को चूमना शुरू किया। उनकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक गई, और वो उसे चाटने लगे। “आह्ह… बाबा जी… ओह्ह…” मैं सिसकारी ले रही थी। उनकी जीभ मेरी चूत को चोद रही थी। कुछ ही देर में मेरी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया। शहद और मेरे चूत के पानी का मिश्रण एक अनोखा रस बन गया था, जिसे बाबा जी ने बड़े प्यार से चाट-चाटकर पी लिया।


वो मेरी चूत को चाटते हुए बोले, “क्या बात है बेटी, तुम्हारी चूत का पानी तो बहुत ही कमाल का है। मन कर रहा है कि इसे पीता ही रहूँ। लेकिन पहले मुझे तुम्हारी मुसीबतें ठीक करनी हैं।”


मेरा मन भी यही चाह रहा था कि वो मेरी चूत को ऐसे ही चूसते और चाटते रहें। फिर उन्होंने अपनी एक उंगली तेल में डुबोई और एकदम से मेरी गांड में डाल दी। मुझे बहुत दर्द हुआ, और मेरा पूरा शरीर काँप उठा। “आह्ह… बाबा जी… धीरे…” मैं चीख पड़ी। वो एक साथ मेरी चूत चाट रहे थे और मेरी गांड में उंगली ऊपर-नीचे कर रहे थे। मेरी चूत दोहरा आनंद सहन नहीं कर पाई और फिर से पानी छोड़ने लगी।


मैं उन्हें रोकना चाहती थी, लेकिन नशे की वजह से मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं था। मैंने अपनी आँखें बंद कीं और मजे लेने लगी। अचानक मेरा पूरा शरीर अकड़ गया, और मेरी चूत ने जोर से पानी छोड़ दिया, जो सीधे बाबा जी के मुँह पर गिरा। उन्होंने मेरा सारा पानी चाट-चाटकर पी लिया। फिर वो मेरे ऊपर आए, और मैं खुद उनके होंठ चूसने लगी। उनके होंठों से मुझे अपनी चूत के पानी का स्वाद मिल रहा था।


बाबा जी बोले, “बेटी, तेरी चूत का पानी तो सचमुच बहुत मीठा है। तेरा पति तो बहुत किस्मतवाला है, जो रोज इसे पीता होगा।”


उन्हें क्या पता था कि रमेश को चूत चूसना बिल्कुल पसंद नहीं। वो चूत को गंदा मानते हैं। आज तक उन्होंने मेरी चूत को चूमा तक नहीं। लेकिन आज बाबा जी ने मुझे जन्नत का रास्ता दिखा दिया। मुझे सचमुच बहुत मजा आ रहा था।


फिर बाबा जी ने अपना लंड अपने हाथ में लिया और मेरी चूत पर सेट किया। उन्होंने एक जोरदार धक्का मारा, और उनका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। “आह्ह… उह्ह… बाबा जी… धीरे…” मैं सिसकारी ले रही थी। वो फिर से मंत्र पढ़ने लगे और मेरे बूब्स को दबाने लगे। मैंने अपनी गांड उठाकर उन्हें इशारा किया, तो वो मेरी चूत को अपने लंड से मारने लगे। “थप… थप… थप…” उनके धक्कों की आवाज कमरे में गूँज रही थी। वो मेरे बूब्स दबाते हुए मेरे होंठों को भी चूस रहे थे।


मुझे इतना मजा आ रहा था कि मेरी आँखें नशे में बंद हो रही थीं। बाबा जी जोर-जोर से मेरी चूत को चोद रहे थे। करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद मेरी चूत अकड़ने लगी। मैं चीख पड़ी, “आह्ह… बाबा जी… मैं मर गई… ओह्ह…”


लेकिन बाबा जी का लंड अभी भी खड़ा था। उन्होंने मेरी चूत को और जोर से मारा और अपना सारा पानी मेरी चूत में ही छोड़ दिया। उनका गर्म पानी मेरी चूत में बहुत अच्छा लग रहा था। फिर वो उठकर बाथरूम चले गए। मुझे बाथरूम से पानी की आवाज आई। वो बाहर आए, कपड़े पहने और मुझे कमरे में अकेला छोड़कर चले गए।


मैं नशे की हालत में बेड पर लेटी रही। पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। जब मेरी आँख खुली, तो मुझे थोड़ा होंश आया। मेरा सिर अभी भी भारी था, लेकिन मेरे हाथ-पैर अब हिल रहे थे। मेरा पूरा शरीर दर्द से टूट रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई मेरे शरीर की मालिश कर दे। लेकिन वहाँ कोई नहीं था।


मुझे ये भी होश नहीं था कि मैं पूरी नंगी थी। जब मेरा हाथ मेरी चूत पर गया, तो मुझे बाबा जी का पानी महसूस हुआ। मेरी चूत दर्द से तड़प रही थी, और वो पूरी फूल चुकी थी। मैंने अपनी चूत में उंगली डालनी शुरू की। बाबा जी का पानी अभी तक सूखा नहीं था। मेरी चूत के दर्द से पता चल रहा था कि उनका लंड कितना मोटा था। मैं अपनी चूत में उंगली ऊपर-नीचे करने लगी और खुद ही चुदाई का मजा लेने लगी। मेरी चूत दर्द कर रही थी, लेकिन मजा भी आ रहा था। मैं लगातार उंगली कर रही थी, तभी मुझे कुछ आवाज सुनाई दी। मैं डर गई, लेकिन उंगली नहीं रोकी।


मैं अपनी चूत को जोर-जोर से उंगली से चोद रही थी, सिसकारियाँ ले रही थी, “आह्ह… उह्ह…” और जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो देखा कि गुरु जी का एक शिष्य, दरवाजे पर खड़ा होकर मुझे घूर रहा था। मैं अपनी चुदाई के नशे में इतनी डूबी थी कि अब मैं बस उसे देख-देखकर अपनी चूत में उंगली ऊपर-नीचे कर रही थी। मेरी टाँगें पूरी खुली थीं, और मेरी गीली चूत की चमक शायद उसे साफ दिख रही थी। मैंने जानबूझकर अपनी चूत को और खोलकर उसे दिखाया, जैसे उसे ललकार रही हो।


उस शिष्य का नाम विजय था, उम्र करीब 28 साल, लंबा-चौड़ा, गोरा, और आकर्षक चेहरा। वो बस दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी उत्तेजना थी। मैंने भी अपनी चूत को और खोलकर, टाँगें चौड़ी करके, उंगली की रफ्तार बढ़ा दी। आज पहली बार दिन के उजाले में गुरु जी ने मुझे चोदा था, और पहली बार किसी पराए मर्द ने मुझे इस तरह नंगी होकर चूत में उंगली करते देखा था। मेरे मन में एक अजीब सी मस्ती थी, शायद गुरु जी के दिए उस दूध का नशा अभी भी मेरे दिमाग पर छाया था।


मैं लगातार अपनी चूत को रगड़ रही थी, मेरी साँसें तेज थीं, और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह्ह… ओह्ह…”। विजय का चेहरा देखकर लग रहा था कि वो भी उत्तेजित हो रहा था। उसने अचानक कहा, “नेहा जी, आप हमारे गुरु जी की इतनी प्यारी भक्त हैं। आपको ये सब नहीं करना चाहिए। वैसे भी गुरु जी बाहर आपका इंतजार कर रहे हैं।”


मैंने अपनी चूत में उंगली चलाते हुए, नशीली आवाज में जवाब दिया, “देखो विजय, भले ही गुरु जी बाहर मेरा इंतजार कर रहे हों, लेकिन मेरी चूत अभी भी प्यासी है। तुम वहाँ खड़े-खड़े क्या देख रहे हो? पास आकर देखो ना, कितना मजा आ रहा है।”


मेरी बात सुनकर विजय थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन फिर धीरे-धीरे मेरे पास आया और बेड पर मेरे बगल में बैठ गया। उसकी आँखें मेरी चूत पर टिकी थीं, जो अब पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने अपनी उंगली और तेज की, और अचानक मेरी चूत ने इशारा किया। मेरा शरीर अकड़ गया, और मेरे मुँह से एक जोरदार चीख निकली, “आह्ह… ओह्ह… मैं मर गई… उह्ह…” मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया, और मैं सिसकारियों के साथ ढीली पड़ गई।


जब मैंने विजय की तरफ देखा, तो उसका हाथ अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड को पकड़े हुए था। उसका लंड पजामे के अंदर से साफ दिख रहा था, एकदम कड़क और खड़ा। मैं बेड पर उसके पास सरक गई। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसका लंड पकड़ लूँ, लेकिन हम दोनों इतने करीब होने के बावजूद हिचक रहे थे। आखिरकार मैंने ही हिम्मत की और अपना चेहरा उसके चेहरे के पास ले गई, जैसे उसे इशारा दे रही हो। विजय ने मेरा इशारा समझ लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया। वो मेरे होंठों को चूसने लगा, और मैं भी उसके होंठों को चूसने लगी।


विजय ने मेरी जीभ को अपने मुँह में खींच लिया और उसे चूसने लगा। मैं भी उसका साथ दे रही थी। “उम्म… आह्ह…” मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं आया था। रमेश ने तो कभी मेरे साथ ऐसा नहीं किया। वो हमेशा जल्दबाजी में सेक्स करते थे, और जीभ से चूसने का तो सवाल ही नहीं उठता था। लेकिन विजय के होंठों और जीभ का स्पर्श मुझे पागल कर रहा था।


विजय का हाथ अब मेरे बूब्स पर चला गया। वो मेरे बूब्स को जोर-जोर से दबाने लगा। उसके दबाने से मेरे शरीर में करंट सा दौड़ रहा था। “आह्ह… विजय… और दबाओ…” मैं सिसकारी ले रही थी। मेरी साँसें गर्म हो रही थीं, और मैं फिर से उत्तेजित होने लगी थी। विजय मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे बूब्स को दबा रहा था। फिर उसने मेरे निप्पल्स को अपनी उंगलियों में लिया और उन्हें मसलने लगा। मेरे पूरे शरीर में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई। “आह्ह… उह्ह… विजय… कितना मजा आ रहा है…” मैं सिसकार रही थी।


फिर विजय ने अपने होंठ मेरे होंठों से हटाए और मेरे निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। वो मेरे निप्पल को चूसने लगा, जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो। “आह्ह… ओह्ह… विजय… और चूसो…” मैं मस्ती में डूब रही थी। उसका चूसना इतना सुखद था कि मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी और ही दुनिया में हूँ। मैं अपने बूब्स को और आगे बढ़ा रही थी, ताकि वो और गहराई से चूस सके।


कुछ देर चूसने के बाद विजय खड़ा हुआ और उसने अपना पजामा उतार दिया। फिर उसने अपनी अंडरवियर उतारी, और उसका लंड बाहर आ गया। उसका लंड करीब 8 इंच लंबा और बहुत मोटा था, एकदम कड़क और लाल। मैं उसे देखकर दंग रह गई। मेरा मन कर रहा था कि मैं अभी इसे अपनी चूत में ले लूँ।


विजय ने कहा, “लो, इसे मुँह में लेकर चूसो। बड़े मजे से चूसो।”


मैंने उसका लंड देखा, तो मेरे मन में खुशी थी, लेकिन मैंने पहले कभी लंड मुँह में नहीं लिया था। मुझे ये सब गंदा लगता था। मैंने हिचकते हुए कहा, “विजय, मैं इसे मुँह में नहीं लूँगी। ये तो गंदा होता है।”


विजय ने हँसते हुए कहा, “एक बार लेकर तो देख, फिर देख कैसे मजा आएगा।”


मैंने उसकी बात मान ली और अनमने मन से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। जैसे ही मैंने चूसना शुरू किया, विजय के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह्ह… आह्ह… नेहा… और चूसो…” मुझे भी अब मजा आने लगा था। ये मेरा पहला मौका था, जब मैं किसी का लंड मुँह में लेकर चूस रही थी। मैं धीरे-धीरे उसके लंड को अपने मुँह में ऊपर-नीचे कर रही थी। मेरी चूत से पानी टपक रहा था, ये सोचकर कि मैं ऐसा कुछ कर रही हूँ, जो मैंने पहले कभी नहीं किया।


अचानक विजय ने मेरा सिर पीछे से पकड़ लिया और मेरे मुँह में अपने लंड को जोर-जोर से धक्के देने लगा। उसका लंड मेरे गले तक जा रहा था, और मेरे मुँह की चिकनाहट से वो और चिकना हो गया था। “आह्ह… उह्ह…” मैं सिसकार रही थी, और मुझे भी अब मजा आने लगा था। विजय और जोर से मेरे मुँह को चोदने लगा। अचानक मुझे उसके लंड की गर्मी महसूस हुई, और मैंने उसे मुँह से निकालना चाहा, लेकिन उसने मेरा सिर इतनी जोर से पकड़ रखा था कि मैं कुछ कर नहीं पाई। तभी उसके लंड ने मेरे मुँह में पिचकारी छोड़ दी। उसका गर्म पानी मेरे मुँह में भर गया।


मुझे उसका स्वाद ठीक लगा, तो मैंने सारा पानी पी लिया और फिर से उसके लंड को चूसने लगी। मेरा मन अभी और चूसने को कर रहा था। मुझे हैरानी हो रही थी कि गुरु जी ने मुझे एक ही दिन में इतना बदल दिया था। मैं, जो कभी सती-सावित्री थी, अब एकदम मस्त और बिंदास हो गई थी। शायद ये उस दूध का असर था, जो गुरु जी ने मुझे पिलाया था।


विजय ने कहा, “अब तुम लेट जाओ। मैं तुम्हारी चूत चूसूँगा। इतनी मस्त चूत हर किसी को नसीब नहीं होती।”


मैं बेड पर लेट गई। विजय ने मेरी चूत पर अपना मुँह रखा और अपनी जीभ से उसे चाटने लगा। “आह्ह… ओह्ह… विजय… और चाटो…” मैं सिसकारी ले रही थी। वो अपनी जीभ से मेरे चूत के दाने को चाट रहा था, कभी उसे चूस रहा था। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला था। मैं पूरी मस्ती में थी और अपनी चूत को और आगे बढ़ा रही थी, ताकि वो और गहराई से चाट सके।


विजय ने अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डाल दी और उसे चोदने लगा। मैं मजे में चिल्ला रही थी, “आह्ह… विजय… और चाटो… कितना मजा आ रहा है… आज तक मुझे ऐसा कोई नहीं चाट पाया… और करो…” मेरी बातें सुनकर वो और जोश में आ गया। वो मेरी चूत को जोर-जोर से चाटने लगा और साथ ही मेरे बूब्स को दबाने लगा। मेरी चूत ने फिर से इशारा किया, मेरा शरीर अकड़ गया, और एक जोरदार चीख के साथ मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। “आह्ह… उह्ह… मैं गई…” विजय ने मेरे चूत का सारा पानी चाट-चाटकर पी लिया।


फिर विजय ने मुझे नीचे किया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं और अपने लंड को मेरी चूत पर सेट किया। मेरी चूत पहले से ही गीली और चिकनी थी, लेकिन उसका लंड इतना बड़ा था कि पहली बार में अंदर नहीं गया। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। “आह्ह… विजय… धीरे… दर्द हो रहा है…” मैं चीख पड़ी। उसने मेरी चीख को दबाने के लिए अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और मुझे चूमने लगा।


मुझे बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन साथ ही मजा भी आ रहा था। विजय ने मेरी टाँगें अपने कंधों से नीचे कीं और मेरे साइड में रख दीं। फिर वो मेरी चूत को अपने लंड से चोदने लगा। “थप… थप… थप…” उसके धक्कों की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मैं दर्द और मजे के बीच झूल रही थी। “आह्ह… विजय… धीरे… ओह्ह… कितना मजा आ रहा है…” मैं सिसकारी ले रही थी।


मैंने उससे कहा, “विजय… धीरे चोदो… आह्ह… बहुत मजा आ रहा है, लेकिन दर्द भी हो रहा है… प्लीज, मुझे घर भी जाना है… मेरे पति मुझे इस हालत में देख लेंगे, तो क्या सोचेंगे… आह्ह… धीरे…” लेकिन मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। वो लगातार मेरी चूत को अपने लंड से चोदता रहा। मेरी चूत इतनी टाइट लग रही थी, जैसे किसी कुंवारी लड़की की चूत हो, और उसमें एक गर्म लोहे का रॉड घुस रहा हो।


मैं अब कुछ नहीं कर पाई और उसकी चुदाई का मजा लेने लगी। करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद मेरी चूत फिर से अकड़ने लगी। मैंने चीख मारकर कहा, “आह्ह… विजय… मैं गई… उह्ह…” मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया। लेकिन विजय अभी भी रुका नहीं। वो और जोर-जोर से मेरी चूत को चोदता रहा। करीब 10 मिनट और चुदाई के बाद हम दोनों का एक साथ निकल गया। जब उसका पानी मेरी चूत में गया, तो मुझे उसकी हर बूंद का अहसास हुआ। “आह्ह… विजय… कितना गर्म है तेरा पानी…” मैंने उसे जोर से जकड़ लिया।


विजय ने करीब 10 मिनट तक अपना सारा पानी मेरी चूत में छोड़ा। फिर वो थककर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब वो उठा, तो उसने देखा कि मेरी चूत से खून निकल रहा था। उसने मेरी चूत को इतना जोर से चोदा था कि वो फट गई थी। वो कपड़े पहनकर बाहर चला गया।


मैं पूरी तरह थक चुकी थी। मेरी आँख फिर से लग गई। करीब 2 घंटे बाद जब मैं उठी, तो मेरी चूत में बहुत दर्द हो रहा था। मैं उठकर वॉशरूम जाने की कोशिश की, लेकिन मेरे से चला नहीं जा रहा था। मैंने दीवार का सहारा लिया और किसी तरह वॉशरूम तक पहुँची। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे इस हालत में देखे।


वॉशरूम में मैं शावर के नीचे खड़ी हो गई। मेरी चूत का दर्द इतना था कि मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे। मैंने खुद को अच्छे से धोया और बाहर आकर कपड़े पहने। फिर मैं कमरे से बाहर निकली। बाहर गुरु जी अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। मुझे देखते ही वो मेरे पास आए और बोले, “बेटी, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो गए हैं। अब तुम रो मत। घर जाकर कल हनुमान जी के मंदिर में लड्डू बाँट देना।”


उन्होंने मुझे कुछ मिठाइयाँ दीं और कहा, “इसे घर जाकर खाना और सबको खिलाना।” मैं वहाँ से घर के लिए निकल गई। रास्ते भर मैं यही सोचती रही कि ये सब अपने पति को बताऊँ या नहीं। शाम को जब रमेश घर आए, तो उन्होंने खुशी-खुशी बताया कि उन्हें मैनेजर की जॉब मिल गई है, और अब उनकी सैलरी 50,000 रुपये महीना होगी। ये सुनकर मुझे गुरु जी पर यकीन हो गया।


अगले दिन मैंने ये बात गुरु जी को बताई। उन्होंने फिर से मुझे अपनी बातों में फँसा लिया और कहा कि घर की और शांति के लिए मुझे हफ्ते में 4 बार हवन के लिए आना होगा। मैं भी घर की खुशी को देखकर गुरु जी के पास जाने लगी। उनके साथ झूठी पूजा-पाठ करके मैं खूब चुदवाती और मजा लेती। अब तो मेरे पति भी अपने काम में व्यस्त हो गए थे, इसलिए मैं कभी गुरु जी से चुदवाती, तो कभी विजय से। ये सिलसिला अब हमेशा के लिए चल पड़ा था।


दोस्तों, मेरी Antarvasna Sex Stories कैसी लगी? कृपया अपने विचार कमेंट में जरूर बताएँ।

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