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जवान लौंडे के लंड से मस्त गांड चुदाई - Gay Sex Stories

इस बार की Gay Sex Stories हमारे बड़े भाई जैसे दोस्त की है, जो उन्होंने आपकी साइट के लिए मुझसे साझा की है.

पहले मेरा दोस्त जिनको में भैया कहता हूँ वो टॉप रोल मेँ रहते थे, फिर उनको मरवाने में मजा भी आने लगा.

भैया ने मुझसे कहा कि, शाम का वक्त है तो चलो थोड़ा टहल कर आते हैं.


हम दोनों के कदम अनायास ही स्विमिंग पूल की तरफ बढ़ गए. उधर देखा तो खूब सारे बच्चे, किशोर व युवा वर्ग के लड़के तैर रहे थे.


तभी आवाज आई- रंजीत, जरा उस लड़के को बैक स्ट्रोक बता दो.

‘यस सर!’ कह कर एक युवा ने लड़के को बैक स्ट्रोक के गुर सिखाने प्रारंभ कर दिए.


हां, उसका नाम रंजीत था. वह गबरू जवान स्विमिंग पूल से जब बाहर निकला तो अपनी काम लोलुपतावश मैंने उससे कहा- हैलो!

वह बोला- हाय अंकल.


मैंने पूछा- तुम्हारा नाम रंजीत है?

वह बोला- हां, आपको कैसे पता?


मैंने कहा- कोच तुम्हें पुकार रहे थे, तब सुना था.

‘थैंक्स अंकल!’


अब मेरी तीक्ष्ण दृष्टि उसके शरीर के अंग प्रत्यंग को स्कैन कर रही थी.

वाह क्या कद काठी थी बंदे की और कम कपड़ों में उसके जिस्म के हर उभार बिल्कुल उभर कर साफ साफ झलक रहे थे. निश्चित था कि कद काठी की तरह ही इस गबरू जवान का हथियार भी काफी हष्ट-पुष्ट ही होगा.


मेरा प्री-कम टपकने वाला था. मैं मन ही मन उसे पाने के लिए थोड़ा लालायित हुआ. पर उससे कैसे बात बढ़ाई जाए, ये सोचने लगा.

मैंने पूछा- कहां रहते हो?


उसने कहा- पिछली वाली गली में.

‘ओके मुझे पहचानते हो!’


वह बोला- हां, मैं आपको जानता हूँ अंकल, आप विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं.

‘अरे वाह, वेरी गुड और क्या क्या जानते हो मेरे बारे में?’


‘यही कि आप काम से काम रखते हैं, लोगों से कम बोलते हैं और थोड़ा रिज़र्व रहते हैं.’

मैं धीरे से मुस्काया और वह भी.


मैंने कहा- पर, तुमसे तो बातचीत की पहल मैंने ही की ना!

रंजीत फिर से मुस्करा दिया.


मैंने कहा- आओ चलते हैं, चाय पीते हैं कहीं.

‘ओके अंकल.’


अब तक वह तैराकी परिधान से सामान्य वेश भूषा में आ चुका था. फिर भी अंगों की जो रौनक तैराकी पोशाक में थी, वह बरकरार थी. वही ललचाने वाले उभार, मुझे देखने को लालायित कर रहे थे.

पास के ही एक रेस्टोरेंट में दो चाय ऑर्डर करके बातचीत का सिलसिला शुरू किया.


औपचरिकता के साथ मैंने पूछा- बेटा, क्या काम करते हो?

‘सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ मैं!’


‘घर में कौन कौन हैं?’

उत्तर था- माँ, पिताजी और एक छोटी बहन.


उसने अपने बारे में खुल कर बताना शुरू कर दिया था.

‘पिताजी राज्य सरकार के दफ्तर में थे, अब रिटायर हो गए हैं और मां गृहणी हैं. बहन इंटर में पढ़ रही है.’


‘मैंने दो साल पहले इलेक्ट्रॉनिक्स में डिग्री की थी और लगभग एक साल पहले यहां आया हूँ.’

‘तुम्हारी उम्र कितनी होगी?


‘अभी लगभग बाइस साल, वैसे दो महीने में पूरा बाइस का होने वाला हूँ.’

‘वाह .. कैसा लग रहा है तुम्हें यहां?’


‘अच्छा है, मैं भी ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता. थोड़ी भाषा का भी मसला है, यहां लोकल लोग कन्नड़ बोलते हैं. हालांकि हिन्दी के प्रति काफी रुचि है. शाम को थोड़ी स्विमिंग करता हूँ, छुट्टी के दिन मूवी वगैरह चला जाता हूँ और सब ऐसे ही अच्छा चल रहा है.’

‘इलेक्ट्रॉनिक्स के अलावा और कुछ पढ़ते हो क्या?’


‘हां, थोड़ा बहुत इधर उधर का, पेपर मैग़ज़ीन, बाकी समय मोबाइल और लैपटाप पर बीत जाता है. ऑफिस का काम और नेट सर्फिंग.’

‘बाकी और कोई शौक हैं तुम्हारे?’

‘कुछ खास नहीं अंकल. सब नॉर्मल ही है.’


अब मैं उसको घुमा कर असली पॉइंट पर लाना चाहता था.

सो मैंने पूछा- अरे लड़कियों के बारे में भी कुछ बताओ, उनको लेकर क्या राय है रंजीत .. और कैसी रुचि है तुम्हारी?’


यह प्रश्न सुनकर वह बेचारा झेंप गया और बोला- हां अंकल, नहीं. वो, मेरा मतलब था .. कुछ खास नहीं!

उसको असहज से सामान्य अवस्था में लाने के लिए मैंने कहा- मैं समझ गया बेटा.


अब मेरी बारी थी एक निशाने पर इमोशनल कार्ड फेंकने की.


‘मुझे अपना ही समझो बेटा, कभी कोई जरूरत पड़े या बोरियत महसूस हो रही हो, तो मेरे घर आ सकते हो, तुम्हारा स्वागत है.’

‘ठीक है अंकल. थैंक्स ए लाट!’


‘थोड़ी देर और बातें करें या बोर हो गए!’

‘कोई बात नहीं अंकल, मैं तो स्विमिंग के बाद डिनर तक खाली ही रहता हूँ. अगर आपको कोई काम न हो तो बैठते हैं अंकल!’


मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा, मैं तो अपना अपेक्षित काम जो कर रहा था.

मौके की अहमियत ताड़ते हुए अब मैं जल्द फोकस पर आना चाहता था.


सो मैंने पूछा- अगर बुरा न मानो तो एक बात पूछूँ?

वह चहकते हुए बोला- पूछिये न अंकल!


‘सेक्स के बारे में तुम नवजवानों की क्या राय है .. आज कल सेम सेक्स, मैरेज के बारे में बड़ी चर्चा है!’

इस अनपेक्षित प्रश्न पर लड़का बुरी तरह झेंप गया, पर सहज होकर बोला- जीवन के लिए जरूरी है और अपनी अपनी पसंद है.


क्या डिप्लोमेटिक उत्तर था, उसके इस आधे पॉजिटिव वक्तव्य पर मेरा मन गदगद हो गया.

मैंने कहा- गुड, तो तुम क्या पसंद करते हो, अभी तक कुछ किया है? कैसे हैंडल करते हो अपनी इस चढ़ती जवानी को?


वह इस सीधे प्रश्न पर काफी शर्मा रहा था बेचारा .. लेकिन अब थोड़ा खुल चुका था.

वह बोला- कुछ खास नहीं.


अब मैंने सीधा प्रहार किया- सड़का तो मारते ही होगे?

एक के बाद एक इन सवालों पर वह बुरी तरह शर्मा गया, पर उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी.


अपनी नज़रें नीचे करके वह कुछ देर चुप रहा.

मैंने पूछा- क्या हुआ, शर्म आ रही है क्या?


यह कहते हुए मैंने उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.


अब अपना सर हिलाते हुए वह बोला- जी अंकल!’

‘शर्माओ नहीं, सभी करते हैं .. यह तो सामान्य प्रक्रिया है! मैंने भी खूब लगाया है और अभी भी करता हूँ!’


वह बोला- जी अंकल, मैं भी मारता हूँ!

अब लौंडा थोड़ी राहत महसूस कर रहा था.


मैंने पूछा- लगभग कितने दिन के गैप पर?

वह बोला- दो तीन दिन में एकाध बार .. या जब टेंशन ज्यादा हो तब!


मैंने पूछा- कहां का टेंशन, दिमाग का या …!

वह बोला- दोनों का.


उसके इस जवाब से मुझे बड़ा सुकून मिला कि अब गाड़ी पटरी पर आ रही है.

‘मजा आता है?’

‘जी अंकल!’


अब शायद माहौल थोड़ा सामान्य हुआ था.

रात होने को आई थी.


मैंने कहा- चला जाए बेटा?

पर शायद लड़का अब मगन हो रहा था. वह और भी बातें करना चाहता था. किंतु मेरी ओर से प्रस्ताव था, तो बोला- ठीक है अंकल.


पर अभी बात पूरी कहां हुई थी, इसलिए मैंने पूछा- फिर कब मिल सकते हो?

तो उसके जवाब से मेरी बांछें खिल गयीं.


वह बोला- जब आप कहें?

मैंने पूछा- कल?


वह बोला- हां ठीक है.

मैंने कहा- मैं पूल पर आ जाऊंगा, वहां से घर चलेंगे!


वह आश्चर्य से बोला- घर पर अंकल?

मैंने कहा- हां!


वह बोला- ठीक है अंकल.

अगले दिन मैं पूल पर गया तो रंजीत नहीं आया था.


मैंने कोच से पूछा तो बोला कि सर, वह तो आज आया नहीं.

ज्यादा व्यग्रता दिखाए बिना मैं मन मार कर वापस घर आ गया.


मैं सोच रहा था कि कहीं ज्यादा बातें तो नहीं कर दीं कि लड़का बिदक गया.

अगले दिन इस उहापोह में था कि पूल पर जाऊं या न जाऊं!


मैं घर पर ही रहा.

पर मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ही न रहा, जब लगभग शाम 6.30 घंटी बजी.


मैंने देखा तो दरवाजे पर रंजीत खड़ा था.

‘सॉरी अंकल, कल कुछ काम ज्यादा था तो देर हो गयी थी, कल स्विमिंग के लिए भी नहीं गया.’


मेरे हर्ष की सीमा न रही, मैं तो उसका इंतजार ही कर रहा था.

‘कोई बात नहीं बेटा.’


उसके कंधे पर हाथ रखकर दबाते हुए मैं उसे अपने कमरे में ले गया. औपचरिकतावश मैंने उससे पूछा कि तुम कहां से हो रंजीत?

उसने बताया कि मैं राजस्थान से हूँ.


मैंने उसे बैठाया और पूछा कि दरवाजा बंद कर लें?

वह थोड़ा हतप्रभ पर काफी कुछ सहज भाव से बोला- क्यों अंकल?


मैंने कहा कि आज कुछ ज्यादा पर्सनल बात करनी है, जिसके लिए तुम्हें बुलाया है.

‘ज्यादा पर्सनल?’


अब शायद वह मेरा आशय कुछ कुछ समझ गया था.

वह शरारत भरी मुस्कान के साथ बोला- ठीक है अंकल, जैसा आप कहें.


उसने उठ कर दरवाजा बंद कर दिया और कुंडी को भी लगा दिया.

अपने कौतूहलवश उसने पूछा- आंटी कहां हैं!


मैंने कहा- वह पड़ोस में एक पूजा है, उसमें गयी हैं.

शायद इस दिव्य ज्ञान से उसके चेहरे पर काफी संतोष था और यह देखकर उन्मादवश मैंने उसको खींचकर चूम लिया.


मेरी इस पहल से रंजीत थोड़ा हतप्रभ हुआ और थोड़ा असहज भी.

शायद आज वह स्विमिंग पूल से रेस्टोरेंट तक के वाकिये के बाद ज्यादा उन्मुक्त था.


अब उसकी बारी थी, परिणाम स्वरूप वह सीधा मेरे होंठों को चूमने लगा.

उसकी इस अनुकूल प्रक्रिया पर अब मेरी हतप्रभ होने की बारी थी, पर चीजें मेरी योजनानुरूप बढ़ रही थीं.


मैंने पूछा- डियर, मजा आया क्या? क्या थोड़ा और चूसोगे?

वह बोला- हां!


उसने मुझे कस कर दबाया और जोर से चूसना शुरू कर दिया.

शायद अब तक वह उत्तेजित हो चुका था. क्योंकि मैं उसकी टांगों के बीच में भी लौड़े का कड़ापन महसूस कर रहा था और सुकून महसूस कर रहा था.


लगभग 2 मिनट बाद उसने मुझे चूस कर छोड़ दिया.

मैंने पूछा- मजा आया?


उसने शर्मा कर हां में सर हिलाया.

‘पहले भी कभी चूमा है किसी को?


वह बोला- नहीं अंकल.

अब मैंने उसको अपने पास बैठाया और कमर पर हाथ डाल कर पूछा- बेटा, कभी किसी की गांड मारी है या चूत चोदी है?


लड़का सकपका गया और बोला- नहीं अंकल, अभी तक तो नहीं.

‘ओके, कभी किसी को गांड मारते या चोदते देखा है?’


‘हां अंकल, एक बार पड़ोस में एक औरत को चुदते देखा था!’

मैंने पूछा- देख कर फिर तुमने क्या किया?


वह बोला- अंकल, करता क्या .. बाथरूम में जाकर सड़का मार कर अपने आप को ठंडा करके आ गया.

यह कहते कहते वह बेचारा शर्मा गया.


‘फिर क्या हुआ?’

वह धीरे से बोला कि अंकल, फिर याद आ गयी तो रात में दुबारा से बाथरूम में जाकर फिर से सड़का मारा.


अब मैंने उसको कस कर भींच लिया और अपना हाथ उसके औजार पर रख कर दबाया.

क्या मस्त टन्नाया हुआ लौड़ा था. जैसे चट्टान की तरह कड़ा और मोटा भी, शायद यही था जो स्विमिंग ड्रेस में से झाँकता बहुत अच्छा लग रहा था.


निर्विरोध सहलाने से वह और भी मस्त हो गया था.

मैंने पूछा- मेरी लोगे क्या?


वह बोला- नहीं अंकल आप बहुत बड़े हैं!

मैंने कहा- उससे क्या, मैं कह रहा हूँ, तुम भी मजा लो और मैं भी.


एक पल बाद मैंने फिर से कहा- खोलो और दिखाओ जरा अपना लौड़ा!

‘अरे नहीं अंकल!’


वह शर्मा रहा था, हिचकिचा रहा था, पर अन्दर से पूरी तरह स्वीकृति थी.

‘अरे दिखा दे न बच्चे!’


ये कह कर मैंने चेन खोलने के लिए हाथ लगाया तो बेमन से वह मेरा हाथ रोकने लगा.

वास्तव में वह रोकना चाहता ही नहीं था, आज शायद वह मजा ही करना चाहता था.


अंधा क्या चाहे दो आंखें .. और उसकी हार्दिक इच्छा भी थी खोल कर बाहर निकलवाने की.

आखिरकार मैंने पहले उसकी पैंट को उतार कर नीचे फेंका और उसके बाद चड्डी को अलग कर दिया.


मैंने इन बंधनों से उसके शैतान को मुक्त कर दिया.

आप विश्वास मानिये क्या विशालकाय गेहुआं लंड था रंजीत का .. जो उस वक्त मेरे हाथ में आ गया था.


गजब का कड़ापन और खड़ापन था लौड़े में!

अब रंजीत मुझे थोड़ा झिझक कर देख रहा था और मैं उसके औज़ार को सहलाने में मगन था.


मैंने चूसने के लिए मुँह में लिया, तो यम्मी स्वाद के साथ साथ लग रहा था कि खंबा मुँह में है.

पहले वह थोड़ा शर्माया, फिर थोड़ा आगे पीछे किया तो लग रहा था कि गले के नीचे जैसे कोई डंडा जा रहा है.


पूरा मुँह भर गया था तो उबकाई जैसी आ रही थी.

थोड़ी देर बाद गांड मरवाने की बारी आयी तो उसके विशालकाय लौड़े को देखकर मैं सोच रहा था कि आज तेल का प्रयोग बहुत आवश्यक है, वर्ना घुसेगा नहीं!


चूंकि घर की बात थी तो तुरंत ले आया.

वह बोला- ये क्या है अंकल?

मैंने कहा- तेल!


रंजीत बोला- किसलिए?

मैंने कहा- तेरे लौड़े और अपने सम्मान पर लगाऊंगा!


‘ठीक है, लाइए!’

उसने अपने सुपाड़े और लौड़े की साफ्ट पर तेल लगाया.


इसके बाद अब निर्वस्त्र होने की मेरी बारी थी. धीरे धीरे कपड़े उतार कर मैंने अपनी गांड में खूब सारा तेल लगाया और उंगली से थोड़ा फैलाया, तो दो उंगलियां सटासट जाने लगी थीं.

फिर मैंने कहा- आ जाओ बचुवा. चोदना शुरू करो, अब नहीं रहा जाता.


खूब तेल लगा था फिर भी थोड़ा भय लग रहा था.

लौंडा आया और लौड़े को हाथ से पकड़ कर मेरी हसीन गांड (मेरी गांड मेरा सम्मान) पर टिकाया, तो लगा कि गर्म सरिया रख दिया हो.


अब लौंडा बोला- रेडी, डालूँ अंकल?

अब तक उसकी उद्वेलिता और उत्तेजना बहुत ज्यादा हो गयी थी.

मैंने कहा- ठीक है डालो.


मेरे दोनों कंधे पकड़ कर जब उसने थोड़ा सा दबाया तो विश्वास मानिए कि दो तिहाई सुपाड़ा घुसते ही मेरा कलेजा मुँह को आने वाला था.

फलस्वरूप मेरी मंद चीख पर लौंडा घबरा गया और लौड़ा खींच कर बोला- क्या हुआ अंकल?


मैंने कहा- दर्द हुआ थोड़ा सा, लौड़े पर तेल और लगा लो.

‘ओके अंकल.’


उसने तेल चुपड़ कर फिर से लौड़ा लगाया. इस बार थोड़े और दबाव से वह एक चौथाई अन्दर हो गया फलस्वरूप और दर्द हुआ .. पर अकल्पनीय आनन्द भी भी आया!

अब बाकी बचा सरिया घुसेड़ने की बारी थी.


वह बोला- घुसेड़ूँ अंकल या निकाल लूँ?

मैंने कहा- नहीं बेटा, तू आज घुसेड़ ही दे पूरा!


जैसे कहने की ही देर थी कि उस शैतान ने तेज झटके के साथ सटाक से पूरा लौड़ा अन्दर कर दिया.

दर्द तो हो रहा था, पर दर्द और आनन्द की जो सरिता आंख से बह रही थी, वह अवर्णनीय है.


अब लौंडा एक दो बार धीरे-धीरे लंड घुसेड़ निकाल कर, मैराथन गति से खचाखच मेरी गांड मारने में लग गया था.

साला लगभग 3 मिनट तक मुझे बुरी तरह से झकझोरता रहा. मेरी स्थिति सांप छछून्दर वाली थी. दर्द खूब हो रहा था पर अपार आनन्द, जो काफी दिनों बाद मिला था, उसे मैं किसी भी हाल में पूरा लेना चाहता था.


अंततः दस मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद वह पल आया, जिसका हर चोदने वाले को इंतजार होता है.

आह फचाक .. फचाक .. लावा जैसा गर्म मसाला .. गजब की सुरसुराहट और मीठी आह के साथ उसके झटके लगते गए.


अपने उन्हीं बेरहम झटकों के साथ वह मेरे अन्दर खल्लास हो गया.

इतनी देर बाद किसी तरह से मेरी जान में जान आई.


मैं इंतजार कर रहा था कि अब निकाले, पर उत्तेजना शांत होने के आनन्दवश साला दो मिनट तक अन्दर ही डाले रहा.

मैंने कहा- अब निकाल भी ले बेटा.

‘ठीक है अंकल!’


मेरा कहना मानकर जब उसने लौड़ा खींचा तब मेरा छेद और मल मार्ग बुरी तरह छरछरा रहा था.

घूम कर देखा तो उसके लौड़े के सुपाड़े पर थोड़ा सा रक्त भी लगा था.


मेरे अंदाज से झड़ने के बाद भी उसका औजार 12×2.5 सेंटी मीटर का रहा होगा.

आप समझ सकते हैं मेरी दशा कि इतना हैवी लंड लेने के बाद क्या रही होगी.


अपना औजार निकाल कर लौंडा बोला- अंकल दर्द तो नहीं हुआ?

मैंने कहा- नहीं कुछ खास नहीं.


पर असलियत तो मेरी आत्मा जानती थी.

एक पल बाद मैंने उससे पूछा- तुम्हें कैसा लगा?


वह बोला- बहुत मजा आया अंकल.

अब साला मुझे जोर जोर से चूम रहा था.


खैर लौडा धो धाकर स्थिर होकर मैंने लौंडे से पूछा- कुछ खाओगे?

वह बोला- ओके अंकल.


मैं उसे पास के भोजनालय लेकर गया और डिनर कराया.

बाद में मैं उसे उसके घर छोड़ कर आने लगा.


‘गुड नाइट!’ करके वह बोला- अंकल दुबारा कब मिल सकते हैं?

शायद एक बार गांड मार कर लौंडा अति आनंदित था.


मैंने बोला- बताऊंगा.

पर जिस तरह से उसने मेरी मारी, उससे लगा कि उसका 18×4 सेंटीमीटर से कम नहीं था साले ने फाड़ कर रख दी थी मेरी.


रंजीत शाम को मिला, तो कौतूहल वश मैंने पूछा- कभी अपने औज़ार का साइज नापा है?

वह बोला- नहीं अंकल, पर क्योँ?


मैंने कहा- तुम्हारा काफी बड़ा है, इसलिए पूछा!

उसने मुस्कुरा कर पूछा- क्या बहुत दर्द हुआ था अंकल?


‘हां बेटा, पर इसमें तुम कुछ नहीं कर सकते!’

सॉरी बोलकर वह बेचारा फिर से शर्मा गया.


वह बोला- लौड़े को कैसे नापते हैं?

मैंने तरीका बताया, तो बोला- कल बताता हूँ.


फिर उसने जब नाप तौल बताई तो मजा आ गया.

उसके लौड़े की लम्बाई लगभग 17.6 सेंटी मीटर, परिधि 12 सेंटी मीटर और व्यास 3.8 सेंटी मीटर.


मैंने कहा- काफी बड़ा और मोटा है तुम्हारा!

ये कहकर मैंने उसका लंड सहला दिया और उसने मुझे पकड़ कर कर चूम लिया.


इतना होने के बाद भी मैं अगली बार पुनः अपनी मरवाने का इंतजार कर रहा हूँ.

वह है कि कह दूँ तो कल ही आकर मार दे, पर शायद ये संभव नहीं.


भैया की कहानी सुनकर मुझे भी बड़ा मजा आया.

फिर उन्होंने अपनी चिरपरिचित मेरी हसीन गांड को कोरोना काल के बाद अनुग्रहित किया.


पर भ्राताश्री के इस नए चोदू लौंडे से मेरी भी मिलने की बड़ी इच्छा है.

मेरी इस Gay Sex Stories पर अपनी प्रक्रिया अवश्य भेजें, इससे भ्राताश्री का मनोबल बढ़ेगा.


आप सभी को धन्यवाद और तने लंडों, मचलती गांड वाले सभी गुणवान पाठकों को यथोचित प्रणाम और आशीर्वाद.

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