ट्रेन में पुलिसवाले ने मेरी गांड की सीलतोड़ चुदाई की - Gay Sex Stories
- Kamvasna
- 6 days ago
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मेरा नाम रजत वर्मा है, मैं उ.प्र. के झांसी शहर से हूं.
मैं लखनऊ के सरकारी पालीटेक्निक कालेज से डिप्लोमा इंजीनियर कर रहा था.
मैं वहां एडमिशन लेकर हॉस्टल में रहने लगा था.
यह एक सच्ची घटना है जिसे मैं पहली बार किसी Gay Sex Stories के रूप में शेयर कर रहा हूं.
चूंकि मैं दिखने में गोरा-चिट्टा और खूबसूरत हूं तथा स्वभाव से भी शर्मीला हूं, तो गांड मारने के शौकीन मर्द मेरी गांड को झट से परख लेते हैं कि यह उनके लंड के मतलब की गांड है.
जिस दिन मैं एडमिशन लेने अपने बड़े भाई के साथ गया तो तमाम सीनियर लड़के मुझे गौर से देखकर भद्दे इशारे करते हुए आ जा रहे थे, किंतु साथ में भाई के होते किसी ने कहा कुछ नहीं.
फिर जरा सी देर का मौका मिलते ही एक सीनियर ने आकर मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए कहा- और चिकने … नया है क्या. किस ट्रेड में एडमिशन ले रहा है?
मैंने झिझकते हुए कहा कि सिविल में.
वह हंसते हुए बोला- तब तो मौज देगा तू.
मैंने सुना भी था कि कालेज में नए लड़कों की सीनियर्स रैगिंग लेते हैं, इसलिए मैंने कुछ आगे ना सोचा.
मेरा एडमिशन और हॉस्टल में रूम दिलाकर भाई लौट गए.
मेरे रूम पार्टनर संजय भैया थे, वे मेरे सीनियर थे.
उन्होंने मुझे कालेज एवं रैगिंग सबके बारे में बताते हुए कहा कि डरने की जरूरत नहीं है, कोई भी सीनियर मिले तो नमस्ते करते हुए बता देना कि संजय का छोटा भाई हूं.
यह युक्ति काम कर गई.
अब मुझे वहां किसी ने परेशान नहीं किया, हां सबकी ललचाई हुई निगाहें जरूर मेरे ऊपर रहती थीं.
यह बात और यह घटना दिसंबर 2018 की है, जब मेरी एक हफ्ते की छुट्टी हो गई.
तो घर से भाई ने फोन करते हुए कहा कि रिश्तेदारी में शादी है, तुम भी घर आ जाओ!
मैंने अपने एक दो जोड़ी कपड़े बैग में रखे.
और चूंकि कड़ाके की सर्दी थी, तो जैकेट और कैंप पहनकर चारबाग पहुंच गया.
वहां से रात दस बजे झांसी के लिए ट्रेन थी.
मैने टिकट लेकर पता किया तो बताया कि चार नंबर प्लेटफार्म से ट्रेन बनकर जाएगी.
वहां पहुंचा तो ट्रेन खड़ी थी.
एक डिब्बे के अन्दर गया तो पूरा डिब्बा खाली था.
मैंने सोचा आराम से सोते हुए चला जाऊंगा.
मैं एक बर्थ पर जाकर बैठ गया.
थोड़ी देर में जब ट्रेन चलने को हुई तो एक पुलिस की ड्रेस में गर्म कंबल ओढ़े एक पुलिस वाला आकर सामने वाली सीट पर बैठ गया.
वह मुझे देख कर बोला- पूरा डिब्बा ही खाली है, आज काफी सर्दी है!
मैं कुछ बोला तो नहीं, बस उसकी हां में हां मिलाकर चुपचाप बैठा रहा.
इस बीच ट्रेन चल दी तो वह बोला- कहां जाओगे?
मैंने कहा- झांसी!
उसने कहा- तब तो तुम्हारा सफर काफी दूर वाला है. मैं तो बस कानपुर तक जाऊंगा.
हमारी ट्रेन अब स्टेशन छोड़ चुकी थी किन्तु एक भी सवारी डिब्बे में नहीं थी.
उसने वहीं से बैठे बैठे कहा- कंबल नहीं है क्या, सर्दी काफी है!
मैंने कहा- कंबल नहीं है, पर मैं गर्म कपड़े पहने हूं.
वह बोला- सर्दी तो फिर भी लगेगी. मेरा कंबल काफी बड़ा है, लो तुम भी ओढ़ लो.
मेरे कुछ कहने के पहले ही वह सामने की सीट से उठकर मेरी सीट पर आ गया और अपना आधा कंबल मेरे ऊपर डाल दिया.
मैं संकोच के चलते चुप रहा.
इस बीच वह तमाम बातें करते हुए मेरे बारे में पूछता रहा और मैं संक्षिप्त ज़वाब देता रहा.
इसी बीच उसका एक हाथ सरकता हुआ मेरी जांघों पर आ गया और धीरे धीरे मेरे पैंट की ज़िप तक पहुंच गया.
किंतु मैं संकोच के चलते चुप रहा.
उसने मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरा लंड सहलाना शुरू कर दिया.
मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. बस चुप बैठा रहा.
उसने धीरे से कंबल के अन्दर से ही मेरी चैन खींचकर चड्डी के अन्दर हाथ डालते हुए लंड को सहलाना शुरू कर दिया.
मुझे भी मजा आने लगा था तो मैंने आंखें बंद कर लीं और मजा लेने लगा.
धीरे धीरे उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पैंट की ज़िप पर ले गया.
उधर उसने अपनी ज़िप खोलकर अपना लंड पहले ही निकाल रखा था.
उसने मेरा हाथ अपने लंड पर रखा.
मेरे मुलायम हाथ का स्पर्श पाते ही उसका लंड आकार में आ गया था.
मैंने भी उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया.
उसके लंड को मैंने हाथ से ही महसूस कर लिया कि वह काफी लंबा और मोटा था.
मेरे नर्म हाथों के संपर्क में आने पर वह काफी तन गया और लोहे की लंबी राड की तरह मजबूत हो गया था.
अब उसने कंबल को हटा दिया और सीट से उठ कर मेरे ठीक सामने खड़ा हो गया और पैंट को नीचे खिसका कर अपना लंड मेरे सामने कर दिया.
बल्ब की मद्धिम रोशनी में भी उसका लंड काफी बड़ा लग रहा था.
उसने अपने लंड को मेरे चेहरे पर रगड़ना शुरू कर दिया.
मैं चुपचाप उसके लंड की गर्मी अपने गालों, होंठों पर महसूस कर रहा था.
उसने लंड को मेरे होंठों पर रखते हुए रगड़ना शुरू कर दिया.
जिससे मैंने अपना मुँह खोल दिया.
इसी बीच उसने लंड को मुँह में डाल दिया, मैं कुछ नहीं बोला.
वह बोला- इसे चूसो!
पहले तो मैं चुप रहा किन्तु धीरे धीरे उसके लंड पर होंठ और जीभ फेरने लगा.
पता नहीं क्यों, इसमें मुझे भी मजा आने लगा और मैंने अपना पूरा मुँह खोल दिया.
अब मैं पूरे मन से लौड़े को चूसने लगा था.
उसे भी मजा आने लगा था तो वह भी मेरे सर पर हाथ रख कर मन लगा कर लंड चुसवाने लगा था.
‘आह आह मस्त चूस रहा है लौंडे … मेरे पोते भी सहला दे भोसड़ी के आह.’
मैंने भी उसके मजे में इजाफा कर दिया और उसके आँड भी सहलाने लगा.
इस तरह से करीब 5 मिनट की सतत चुसाई में उसका लंड एक लोहे की लंबी रॉड जैसा बन गया था.
वह भी काफी मस्त हो चुका था.
उसने अपने लंड को मेरे मुँह से निकाला और मुझे उठा कर चूमना शुरू कर दिया.
मैं एक कमसिन लौंडिया सा उसके बलिष्ठ सीने से लटक कर अपने जिस्म को अपने गालों को उससे चुसवा और चटवा रहा था.
वह मेरे दोनों गालों को, होंठों को चूसते चूसते काटने लगा था.
उसकी इस हरकत से मुझे दर्द तो हो रहा था किन्तु मैं चुपचाप किसी कामातुर लड़की की तरह उससे लिपटा रहा.
उसने एक हाथ से मेरी पैंट की बैल्ट खोल दी और उसे मय चड्डी के नीचे सरका दिया.
मैं नंगा हो गया था तो उसने मेरे लंड को सहलाना शुरू कर दिया.
मुझे बहुत ही मजा आने लगा और मैं मस्ती से इस सबका मजा लेता रहा.
इसी बीच उसने मुझे घुमा दिया और सीट की तरफ मुँह करके झुका दिया.
मैं समझ गया कि अब गांड मरवाने की बेला आ गई है.
मैं पहले भी गांड मरवाने की कगार तक जा चुका था तो मन में लग रहा था कि मरवा ही ली जाए.
शायद इसी वजह से कोई डर नहीं लग रहा था.
मैं चुपचाप उसके अनुसार सब करता रहा.
मुझे कुछ भी पता नहीं था कि गांड मरवाने में क्या होता है, पर मजा बहुत आ रहा था.
शायद इसीलिए मैंने उसकी किसी भी हरकत का विरोध नहीं किया और वह जैसा करता रहा, मैं वैसा ही उसे करता रहा.
जब मैंने अपनी गांड के छेद पर कुछ दबास सा महसूस किया, तब मुझे हल्का सा दर्द का अहसास हुआ.
मैं थोड़ा चिहुंका, किंतु चुप रहा.
इस बीच उसने काफी मात्रा में थूक मेरी गांड के छेद पर रखकर एक उंगली भी अन्दर घुसेड़ दी और उंगली को अन्दर बाहर करने लगा.
वासना में थूक से चिकनी हुई गांड में उंगली करवाना बड़ा ही सुखद लग रहा था, तो मैं उंह ऊँह करता रहा.
मेरी मीठी उंह ऊँह से वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उसने अपना मोटा लंड मेरी गांड के मुहाने पर सटा दिया.
लंड की कठोरता और उसकी गर्माहट मैं महसूस कर रहा था जो कि मुझे अच्छी लग रही थी.
मैं चुपचाप आगे होने वाली कार्रवाई के बारे में सोच रहा था.
यहां मैं एक बात और बता दूं कि मैंने आज तक ना तो सेक्स किया था और ना ही कराया था.
हां, दोस्तों से जरूर सुनता रहता था और कभी कभी वीडियो भी देखें थे.
मेरी चुप्पी और विरोध ना करने को उसने शायद सहमति समझी हो और वह मुझे चोदने के लिए तैयार हो चुका था.
उसने मेरी अनचुदी गांड पर अपना मोटा लंड डालने का दबाव डालना शुरू किया किन्तु लंड लेशमात्र भी अन्दर नहीं गया.
अब उसने बहुत सारा थूक निकाल कर अपने लंड और मेरी गांड में चुपड़ा और लंड का जोरदार दबाव झटके के साथ डाला.
तो मेरी भयंकर चीख निकली, “अरे मां … मर गया … आह बचाओ!”
मैं चीखता हुआ आगे को हुआ और सीट पर गिर गया.
उसने मुझे कमर में हाथ डालकर उठाया और मुझे लिए हुए ही खुद सीट पर बैठ गया.
वह मुझे अपने लंड पर बैठाने लगा.
अब मैंने पहली बार उससे कहा- अंकल नहीं, मुझे बहुत दर्द हो रहा है. मैं नहीं कर पाऊंगा!
वह बोला- अब कुछ भी नहीं होगा, तुम बहुत ही आराम से लौड़े पर बैठो … अगर दर्द हो तो मत बैठना.
मैं डरते डरते लंड के ऊपर गांड रखकर बैठ गया.
थोड़ी देर बैठने के बाद काफी अच्छा लगा तो उसने मेरे दोनों कंधे कसके पकड़ लिए और एक जोरदार धक्का दे मारा.
उसके लंड का सुपाड़ा अन्दर हो गया.
मुझे ऐसा लगा कि किसी ने गर्म लोहे की मोटी रॉड घुसेड़ दी हो.
मैंने चीखने की कोशिश की, किंतु तब तक उसकी मजबूत हथेली मेरे मुँह पर चिपक चुकी थी.
मैंने रोने की कोशिश की, पर आवाज ही नहीं निकल सकी.
मैं भीषण दर्द से छटपटाने लगा, पर उसने लंड को ना अन्दर किया और ना बाहर.
वह बोला- कुछ मत करो, जरा देर में सब ठीक हो जाएगा.
उसका अनुभव सही था.
वास्तव में थोड़ी ही देर में दर्द हल्का हो गया.
वह बोला कि अब ठीक हो?
तो मैंने कहा कि हां अब आराम है!
यह सुनते ही उसने फिर से एक जोरदार धक्का मारा और उसकी मोटी सब्बल टाइप की रॉड मेरी आंतों से जा टकराई.
मैं पुनः दर्द से कराहा और अचेत सा हो कर सीट पर तड़पने लगा.
उसने बहुत ही मजबूती से मुझे दबोच रखा था, जिससे लंड बाहर ना निकल सके.
वह जानता था कि अगर लंड बाहर निकल गया तो ये दुबारा अन्दर नहीं करने देगा.
मैं बेसुध सा पेट के बल दोनों सीटों के बीच लेट गया और वह मेरी गांड में लंड डाले मेरे ही ऊपर चढ़ बैठा.
अब मेरा दर्द बहुत ही असहनीय हो रहा था किंतु मैं कुछ कर भी नहीं पा रहा था.
ट्रेन अपनी गति से दौड़ी चली जा रही थी.
कुछ देर बाद उसने अपने लंड को हरकत देना शुरू किया तो मुझे कुछ आराम सा हुआ, पर दर्द अभी भी बहुत था.
उसने धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करना शुरू किया, तो दर्द में कुछ कमी आई.
मैं सामान्य होने लगा तो वह बोला कि अब दर्द तो नहीं है!
मेरे ना कहने पर उसने मेरी गांड की चुदाई करना शुरू कर दिया.
अब न केवल मेरा दर्द गायब था बल्कि कुछ मज़ा भी आने लगा था.
मैं अब अपना दर्द भूलकर मस्ती में गोते लगाने लगा.
मेरे मुँह से अब मस्ती भरी आह निकलने लगी थी, जिससे वह भी उत्तेजित हो उठा और उसने ढंग से चुदाई शुरू कर दी.
अब तक मुझे भी बहुत मजा आने लगा था.
इसी बीच उसने एक हाथ से मेरा लंड सहलाना शुरू कर दिया और मैं आहह ऊऊहह और जोर से आह जैसे शब्द निकालने लगा.
उसने भी ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी.
वह बोला- बहुत ही मस्त गांड है तेरी! बहुत चिकना है साला भोसड़ी वाला!
ऐसी गांड आज तक देखी भी नहीं और चोदी भी नहीं.
मैं भी काफ़ी उत्तेजित हो उठा और गे बॉय गांड उठा उठा कर लंड को अन्दर तक लेने लगा.
आधा घंटा की मस्त चुदाई के बाद जब उसने अपना माल छोड़ा तो गांड पूरी तरह से तर हो चुकी थी.
उसने लंड को बाहर निकाला और मुझे खड़ा किया तो हम दोनों ने देखा कि सीट लाल रंग से तरबतर थी.
वह बोला कि आज तुम्हारी गांड की सील टूटी है, जिस वजह से ये खू/न आ गया है. अब तुम हमेशा याद रखना कि सील किसने तोड़ी थी.
वह हँसता हुआ नंगा ही टायलेट में चला गया.
थोड़ी देर यूं ही नंगा आकर सामने की सीट पर बैठ गया और एक बीड़ी सुलगा कर मेरी तरफ देखने लगा.
मैं भी टायलेट में जाकर अच्छे से गांड को साफ करके अपनी सीट पर आ गया.
उसने मुझे अपनी बांहों में भरकर गाल चूमते हुए कहा- सच में यार आज बहुत ही मजा आया, तुम्हारी कोरी गांड मारकर जिंदगी में यादगार पल जीने को मिला! मेरे लायक कभी भी कोई भी सेवा हो तो बेझिझक कहना.
यह कहते हुए उसने मुझे अपना नंबर दे दिया.
मैं चुपचाप बैठा रहा, इस बीच शायद कानपुर आने वाला था, तो उसने फिर मुझे चूमते हुए कहा कि आज मेरी यहां ड्यूटी है, नहीं तो झांसी तक चलता.
वह मेरे गाल, होंठ बहुत ही प्यार से चूमने लगा.
मुझे भी अब बहुत अच्छा लग रहा था, पर मैं फिर भी चुप रहा.
उसने धीरे से 100-100 के दो नोट निकाल कर मुझे देना चाहे, जिसे मैंने मना कर दिया.
किन्तु उसने मुझे मेरी मां की कसम देते हुए कहा कि कहीं कुछ खा पी लेना.
मैंने रूपये रख लिए.
थोड़ी देर में कानपुर सेंट्रल पर ट्रेन रुकी, तो वह उतर गया और जरा देर में गर्म चाय और बिस्कुट का पैकेट लेकर डिब्बे में आया.
वह मुझे देते हुए बोला कि अगर ठीक समझना तो फोन जरूर करना.
थोड़ी देर में ट्रेन चल दी और वह वहीं उतर गया.
मैं अपने साथ बीते पलों को सोचता हुआ सो गया और झांसी आने पर ही सुबह मेरी नींद खुली.
इस बीच उसका चार पाँच बार फोन भी आया.
उसके बाद हम लोग लखनऊ में होटल में मिले भी और सेक्स भी किया.
उसने मुझे काफी घुमाया, गिफ्ट आदि भी दी. उस पुलिस वाले की गांड चुदाई के बाद मैंने कुछ सीनियर्स से भी अपनी गांड मरवाई थी, पर पहली बार का अनुभव हमेशा याद आता है.
अब वह पुलिस वाला काफी दूर है, पर उसके साथ बिताए पल अभी भी बहुत याद आते हैं.
ये Gay Sex Stories आपको कैसी लगी, बताना ना भूलें.
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