दिवाली का शोर और मेरी चुदाई - Hindi Sex stories
- Kamvasna
- 4 days ago
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मेरा नाम मीरा है. उम्र पच्चीस, पेशे से कॉपीराइटर. दिन भर शब्दों से खेलते-खेलते थक जाती हूँ, इसलिए शाम को बस खामोशी चाहती हूँ.
मेरा परिवार दिल्ली में है - पापा ऑफिस में, माँ स्कूल में अध्यापिका हैं. मैं सबसे बड़ी हूँ, इसलिए हर जिम्मेदारी ने मुझे थोड़ा संजीदा और थोड़ा अकेला बना दिया.
गेहुँआ रंग, पतली काया, लंबे बाल - लोग कहते हैं कि मैं सोच में डूबी रहती हूँ. शायद सच है. पर उन खामोशियों के नीचे, एक बेचैनी भी पलती है - कभी अपने लिए, कभी किसी के स्पर्श की प्रतीक्षा में.
गुड़गांव के इस नए अपार्टमेंट में सबकुछ नया था, पर अकेलापन पुराना. तीसरी रात थी जब मैंने उसे देखा - आरव. सामने की बालकनी में, झुका हुआ, नोटबुक में कुछ बनाता हुआ. चेहरे पर कोमलता और आँखों में एक अनकही कहानी.
शुरुआत में सिर्फ नज़रें मिलीं. फिर हल्के से मुस्कुराना, और एक दिन उसने कहा - "आप रोज़ देर तक जागती हैं. क्या काम इतना ज्यादा है या नींद नहीं आती?" मैं हँसी, "दोनों थोड़ा-थोड़ा." वह बोला, "तो कभी कॉफी पर बात कर लेते हैं, शायद नींद लौट आए."
उस रात बिजली चली गई तो उसने बालकनी पार से पुकारा, "मीरा, पास चलोगी? यहाँ हवा थोड़ी कम है." मैं बोली, "और रोशनी भी." वह मुस्कुराया, "तो बाँट लेते हैं - तुम कॉफी बनाओ, मैं बातों से रोशनी कर दूँ."
उस शाम का माहौल अलग था. खिड़की के बाहर बारिश थी, और भीतर हमारे बीच सुकून. "तुम्हें बारिश पसंद है?"
मैंने पूछा. "तुम्हारे बालों में जब अटकी होती है, तब हाँ," उसने धीरे से कहा. वह वाक्य जैसे कमरे में ठहर गया. मैं हँसी, पर अंदर कहीं कुछ पिघल गया.
दिन गुज़रते गए. अब बातें देर रात तक चलतीं - ज़िंदगी, सपने, अधूरी कहानियाँ. वह कहता, "तुम्हारे शब्दों में कोई राग है, मीरा."
मैं जवाब देती, "तुम उन्हें सुनते हो, इसलिए लगता है." धीरे-धीरे वह दूरी जो हमारी बालकनियों के बीच थी, मिटने लगी. अब वह मेरे कमरे में किताबें छोड़ जाता, मैं उसके ड्रॉइंग्स लेकर लौटती. स्पर्श, अब आकस्मिक नहीं, बल्कि स्वाभाविक लगने लगा.
दीवाली की रात उसने दरवाज़ा खटखटाया. हाथ में दीया था. "तुम्हारे कमरे में अंधेरा है," उसने कहा.
मैं मुस्कुराई, "शायद तुम्हें आने का इंतज़ार था." वह पास आया, धीरे-धीरे और मेरे करीब आया. उसकी उंगलियाँ मेरी बालों में उलझी आकृति को सहलाने लगीं. मेरी आँखें बंद थीं और उसके स्पर्श में एक गहराई थी, कहीं दूर तक सुनाई देती धड़कनों जैसी, धीमे-धीमे, पर सच्ची और उस पल, हमारे बीच बचा सब कुछ कुछ नहीं, बस सन्नाटा था - नरम, गहरा, और सच्चा.
आरव ने एक पल के लिए मेरी आँखों में देखा. सौम्य मुस्कान के साथ उसके चेहरे पर हल्की-सी झिझक थी, लेकिन उसकी उंगलियाँ मेरी गाल पर बहुत नरमी से रुकीं. मेरे भीतर जैसे कुछ पिघल रहा था. बिना शब्दों के, बस उसी ख़ामोशी में उसने मेरे होंठों पर एक प्यारा, धीमा चुंबन रख दिया.उस उसका चुंबन बहुत संकोच भरा भी था और बहुत ईमानदार भी.
मेरी साँसें हल्की हो गईं, दिल की धड़कन तेज़ थी. मैंने उसकी हथेली पकड़ी और उसके करीब आ गई. कमरे की सारी रोशनी और शोर जैसे पीछे छूट गई थी. सिर्फ उसकी ढाढ़स और मेरा आत्मविश्वास एक धागे में बँधे हुए.
"तुम्हें डर नहीं लगता?" उसने धीमे से पूछा, होंठों से मेरे कान के पास.
मैं मुस्कराई, "अगर डर में इतना सुकून हो, तो क्यों न हो." फिर एक बार और, उसने मुझे चूम लिया –
इस बार, थोड़ा लंबा, थोड़ा गहरा. जब आरव ने मुझे चूमा, तो जैसे हमारे बीच कुछ टूट गया था — वह दूरी, वह संकोच. उस जादुई चुंबन के बाद, हमारे दिलों की सारी तलाश जैसे एक ही लय में चलने लगी थी.
उसी धमकती रोशनी और सिगरेट की हल्की महक के बीच, मेरे होंठ और उसके होंठ फिर पास आ गए. इस बार हम दोनों ने संकोच पीछे छोड़ दिया. उसने मेरी कमर थाम ली, मैं उसकी बाहों में समा गई. बाँहों का बढ़ना, साँसों की तेज़ी, उसके होठों का मेरे होंठों पर उतरना — सबकुछ बेकाबू था, जैसे वर्षों की चाहत एक ही लम्हे में बह रही हो.
मेरी उँगलियाँ उसकी गर्दन पर फिसल रही थीं, उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे. मैंने पहली बार महसूस किया कि चाहत शब्दों की बंदिश से बहुत आगे जा सकती है. हर चुंबन गहरा और लंबा था; हर लम्हा हमें और पास ले जाता था.
आरव बीच-बीच में मुस्कराता, "तुम्हें पता है, इस दीवाली की सबसे बड़ी रौशनी तुम्हारी आँखों में है."
मैंने उसकी शर्ट के बटन खोले, "आज मैं सबकुछ भूलकर सिर्फ तुम्हारे पास रहना चाहती हूँ.”
उसने अपनी उँगलियाँ मेरे कंधे पर घुमाईं, और मैं बिना हिचक उसकी शर्ट की बटन खोलने लगी. उसने मेरी साड़ी का पल्लू हल्के से हटाया, और मेरी कमर अपने हाथों में ले ली. कपड़े एक-एक कर हमारे बदन से धीरे-धीरे उतरते गए, हर छुवन और हर स्पर्श पहले से ज़्यादा संवेदनशील था. जैसे ही आरव ने धीरे-धीरे मेरी साड़ी हटा दी, कमरे में दीयों की रौशनी गहराने लगी.
उसकी आँखों में हल्का-सा आश्चर्य और मुस्कान थी, जब उसने मुझे पहली बार मेरी लाल रंग की मैचिंग ब्रा और पैंटी में देखा — एक नरम लेस वाली, बिल्कुल उत्सव के रंगों जैसी. उस पल हवा में एक अलौकिक सिहरन थी.
उसने बेहद इत्मीनान से मेरी ओर देखा, फिर मेरी हथेली पकड़ी और बोला, "मीरा, तुम आज रात बिल्कुल दीवाली सी लग रही हो — चमकती, रहस्यमयी, सुंदर."
मैं उसकी बाँहों में थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी पीठ को सहला रही थीं. हर स्पर्श नज़दीकी को और बड़ा बना रहा था, और उसकी गहरी सांसें इस माहौल को और भी रेखांकित कर रही थीं. कमरा उजाले और चाहत से भर चुका था. हमने एक-दूसरे को फिर से गले लगाकर, उस रात को पूरी तरह जी जाना चाहा — धीरे-धीरे, पूरी आत्मीयता और सच्चाई के साथ.
उस रात, मेरी लाल लॉन्जरी और उसकी मोहब्बत दोनों, मिलकर मेरे दिल के सबसे गहरे कोनों तक उतर गए. आरव ने मुझे लाल रंग की लॉन्जरी में देख कर खुद पर काबू खो दिया। उसके हाथ नरमी से मेरी काया पर कदम रख रहे थे, हर मोड़, हर वक्र को पितली की चोटियों की तरह धीरे-धीरे छू कर, उसे प्यार और चाहत दोनों से लपेटते हुए।
वह मेरी कमर से लेकर पीठ तक, मेरी छाती के आसपास आसपास हर जगह को इस तरह संवेदना से सहला रहा था मानो मेरा शरीर उसकी कविता हो। मैं उस रंगीनी में खो गई, सही और गलत की सोच कहीं दूर चली गई। उसका स्पर्श मेरे अंदर की हर हिचक को छीन कर मेरे दिल पर बिखर गया। मैं सिर्फ उसी क्षण में जी रही थी, उसकी बाँहों में आत्मसमर्पित होकर, बिना किसी शर्त या झिझक के। हमारी साँसें तेज़ हो गईं, हृदय की धड़कनों ने एक अलग ही धुन छेड़ी।
वह मेरे हर स्पर्श की तारीफ़ कर रहा था, और मैं उसके हर स्पर्श को महसूस करते हुए खुद को उसके हवाले कर रही थी। उस रात, न मेरा दिल और न मेरा दिमाग किसी सीमा में था। सिर्फ एक दूसरे की नज़दीकी और प्यार की गहराई थी, जो हर हल्की-हल्की छुवन के साथ बढ़ती ही जा रही थी। आरव ने मेरी लाल लॉन्जरी के दोनों स्तनों को महसूस करते हुए एक स्तन को अपने होठों से खेलने लगा, उसकी गरमाहट और सांसों की नर्म सहेलने के बीच, उसने धीरे-धीरे दूसरे स्तन को अपने हाथों में लिया।
मैंने उसके सिर को अपने स्तनों पर धीरे-धीरे दबाना शुरू किया, उस पल, हम दोनों की सांसें और दिल की धड़कनें एक हो गईं, एक-दूसरे की चाहत और समर्पण में पूरी तरह खो गए थे। आरव धीरे-धीरे मेरे शरीर के नीचे की ओर बढ़ा, उसकी जीभ की नर्म छुअन ने मेरी त्वचा को झनझनाहट से भर दिया। मैं उसकी मीठी मुस्कुराहट के बीच हँसती रही, मेरा शरीर उसकी इस सदबुुधि पर संयम खो रहा था।
मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर टिक गया था, तो दूसरा हाथ उसके बालों में उलझा, उसे अपने स्तनों पर खींच रही थी, कभी उसे धीरे से धकेल रही थी। आरव इस खेल से विचलित नहीं हुआ। वह मेरी पैंटी की ओर बढ़ता रहा, उसकी उंगलियां मेरे अंदर की गर्माहट को महसूस कर रही थीं। आरव का चेहरा मेरे पेट के पास था, उसकी जीभ धीरे-धीरे मेरे नाभि के चारों ओर प्यार से और चिढ़ाते हुए घुम रही थी। एक हाथ उसने मेरे स्तन को नर्म-नरम सहला रखा था, जबकि दूसरा हाथ पैंटी की ओर धीरे-धीरे सरक रहा था, कपड़ों के नीचे की गर्माहट महसूस करते हुए।
मेरी शर्मिंदगी अचानक बढ़ गई, और मैंने स्वाभाविक रूप से अपनी जांघें क्रॉस कर लीं. आरव की उंगलियाँ मेरे जाँघों पर धीरे-धीरे रगड़ने लगीं, और मैं उसकी छुअन में खुद को रोक नहीं पा रही थी। मेरी मुलायम आहट के साथ, मेरा शरीर कंट्रोल खोने लगा। मेरी सिसकियाँ बाहर आने लगीं, मेरी धीमी-धीमी सांसें और आवाज़ों में एक नई नर्माहट थी। अब आरव धीरे-धीरे नीचे की ओर मुड़ा और उसका चेहरा मेरी जांघों के बीच आ गया। उसकी गर्म सांसें मेरी जांघों और सबसे निजी हिस्सों पर महसूस होने लगीं, जो मेरी देह में एक घबराहट और उत्साह भर रही थीं। मैं उसकी इस कोमल नजदीकी से खुद को रोक नहीं पा रही थी, मेरी आहटें धीरे-धीरे फिज़ा में गूंजने लगीं। आरव ने धीरे-धीरे मेरी पैंटी उतारी। अपनी जीभ मेरी जाँघों के बीच रख दी।
उसकी गर्म सांसें मेरे जाँघों और सबसे निजी हिस्सों पर महसूस हो रही थीं, उस पल का एहसास किसी बिजली की तरह मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया। उसका स्पर्श मुझे पूरी तरह से खो देने वाला था, और मैं बेधड़क अपनी हँसी के साथ उस पल को जी रही थी। मैंने आरव के बालों को मजबूती से पकड़ा और धीरे-धीरे उसके सिर को अपनी जाँघों के बीच दबाने लगी।
उसकी जीभ धीरे-धीरे मेरी जाँघों के बीच की हर कोने को नापने लगी। उसकी नरम और मेरी हँसी को धीमे-धीमे कुछ बड़े और ऊँचा सिसकारियाँ में बदल दिया। एक लंबी सिसकी के साथ मेरा सारा शरीर अकड़ गया और मैं अपनी पूरी ताकत से ऊंची हुई। भीतर एक बाढ़ सी उमड़ी, जो मेरे हर हिस्से को झकझोर रही थी। । मेरा सारा शरीर एक मीठे सुकून के साथ बह निकला और आरव के होंठों पर गिरा। उसने उसे धीरे-धीरे चाटते हुए अपने होठों से साफ कर दिया, अब मैं गहरी सांसें ले रही थी, आरव ऊपर आ गया और मुझे चूमने लगा। मैं भी निडर होकर उसे चूमने लगी।
उसके कपड़ों के नीचे का उभार मेरी जाँघों के पास महसूस हो रहा था, जो मेरे दिल की धड़कनें तेज कर रहा था। मैंने अपने हाथ धीरे-धीरे उसके अंडरवियर के नीचे डाल दिए और प्यार से उसे सहलाने लगी। मैंने धीरे-धीरे उसका अंडरवियर उतारा और मैं घुटनों के बल उसके सामने बैठ गयी और मैंने उसके अंडरवियर को जैसे ही नीचे किया, उसका लंड बाहर आकर आज़ाद हो गया।
उसने भी अपनी प्राइवेट पार्ट के बाल साफ कर रखे थे, मतलब वो भी मुझे चोदने का पूरा मूड बना चुका था। मैंने उसके लंड को अपने हाथ लिया और उसके लंड का टोपा अपने मुंह में लेकर चूसने लगी. फिर उसकी दोनों गोलियों को मैंने बारी बारी से चूसा। मैंने दोबारा लंड को मुँह में लिया और सिर्फ टोपा ही चूस रही थी क्योंकि आज से पहले मैंने कभी लंड नहीं चूसा था।
तभी आरव ने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ा और धक्का लगाकर मेरे मुंह में अपना आधा लंड डाल दिया मेंमेरे मुख से गु गु की आवाज आ रही थी। उसने एक और धक्का मारा और अपना सारा लंड मेरे मुंह में डाल दिया. अब तो मुझे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। मैं उससे छूटने कोशिश की लेकिन उसने मेरे मुंह को और ज़ोर से पकड़ा और अपनी गति बढ़ाकर मेरे मुंह को चोदने लगा। अब मुझे लगा कि मुझसे अब और सहा नहीं जाएगा इसलिये मैंने आरव की गोलियों को अपने हाथों से दबा दिया। इससे उसे भी दर्द हुआ और उसने अपने लंड को मेरे मुंह से निकाला और आह आह ऊ आह करने लगा।
अब मैं आरव के पास गई- आरव मुझे माफ़ कर दो। मुझे सांस नहीं आ रही थी इसलिए मैंने ऐसा किया है.
आरव- कोई बात नहीं चाची, आपकी गलती नहीं है. मैं ज्यादा ही हवसी हो गया था.
अब मैंने उसके होठों से होंठ लगाए और पीछे जाती हुई बेड पर गिरी और मैंने आरव को भी अपने ऊपर गिरा लिया।
मैंने आरव के कान में कहा- आरव, प्लीज अब देर ना करो, मैं तड़प रही हूँ. आरव यह सुनते ही खड़ा हुआ, उसने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और मेरी चूत पर रख कर धीरे से धक्का लगाया. उसका टोप्पा अगले ही पल मेरी चूत में प्रवेश कर गया। उसने ज़ोर से 2 धक्के मारे और मेरी चीख के साथ उसका पूरा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर चला गया. अब वो थोड़ी देर रुका और धक्के देने शुरू कर दिए।
मैं- आह आ आह और जोर ज़ोर से करो!
आरव- ओके डार्लिंग ! उसने अपने धक्कों की गति बढा दी। मेरे दूध बहुत हिल रहे थे इसलिए मैंने उसे अपने हाथों में थामा। तभी आरव ने मेरे हाथ साइड किये और अपने हाथ से मेरे दूध को कस कर पकड़ लिया.
आरव- मीरा डॉगी स्टाइल में करते हैं, मजा आएगा। मैं खड़ी हुई और बेड पर डोगी स्टाइल में आ गयी। उसने अपनी एक टाँग बेड पर रखी और मेरी गांड पर ज़ोर ज़ोर से 3-4 थप्पड़ मारे और मुझे कमर से पकड़ा।
वो अपना लंड मेरी चूत में डालकर चोदने लगा। मैं भी उसका साथ देने लगी और अपनी गांड को हिलाने लगी। आरव का स्टेमना काफी अच्छा था।
मैं- तुम लेट जाओ और मैं तुम्हारे ऊपर आ जाती हूँ. आरव लेट गया. मैं आरव के लंड के ऊपर बैठी और लंड चूत में डाल कर सेट किया और अपने हाथ आरव के निप्पल पर रख कर अपनी कमर हिलाने लगी। थोड़ी देर बाद आरव ने भी अपनी कमर उठा कर मेरा साथ देना शुरू कर दिया. मैं तीसरी बार झड़ गयीं लेकिन आरव अभी भी नहीं झड़ा था.
मैंने उसका लंड मुख में लिया औऱ चूसने लगी क्योंकि अब मैं भी थक चुकी थी और आरव पागल हो रहा था। उसने मेरा मुंह कस कर पकड़ा और मुखचोदन करने लगा। मैं चीखें मार रही थे लेकिन आरव ने एक चीख ना सुनी। उसका पानी अभी तक नहीं निकला था।
मैं-आरव, मैं लेट जाती हूँ और तुम मेरे ऊपर चढ़ जाओ! मेरे लेटते ही आरव ने चूत में लंड डाला और मेरे ऊपर लेट गया। मैंने अपनी टाँगों को आरव के उपर लपेट लिया औऱ आरव के धक्का लगाने पर मैं भी अपनी टांगों का ज़ोर लगाती ताकि आरव को ज्यादा जोर ना लगाना पड़े।
5 मिनट की भयानक चुदाई के बाद आरव बोला- मीरा , मेरा निकलने वाला है!
मैं- चूत में ही छोड़ दो, मेरा भी निकलने वाला है. आरव- आह आह … आ ह … मी,,, मीरा, मेरा निकल गया! यह कह कर मेरे ऊपर गिर गया। मैं उसके नीचे थी, उसका लंड अभी मेरी चूत में था और मेरी चूत उसके पानी से और मेरे पानी से भर गई थी इसलिए पानी बाहर निकल रहा था। मेरे अंदर इतनी भी शक्ति नहीं थी कि मैं अब आरव को साइड कर के कपड़े पहन सकूं, इसलिए मैं वैसे ही पड़ी रही. सुबह 4 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि आरव सोया पड़ा था।
मैं बड़ी मुश्किल से खड़ी हुई और 2 पेनकिलर लेकर वापिस सो गई। 2 घंटे के बाद उठी और मैंने आरव को उठाया। आरव उठते ही फिर से किस करने लगा लेकिन मैं बहुत थक चुकी थी और मेरी चूत भी दर्द कर रही थी इसलिये मैंने उसे मना किया और कपड़े पहन कर बाहर आ गयी।
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आप की मीरा।

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