मेरी मतवाली कुंवारी गाण्ड मार ही ली
- Kamvasna
- Dec 2, 2024
- 11 min read
दोस्तो, मेरा नाम अनिल है.. मेरे यौवन जीवन की शुरूआत मेरी गाण्ड मरवाने से ही हुई।
यह किस्सा जब का है.. जब मेरी बहन सपना 18 साल की और में 19 साल का था। हम दोनों एक ही स्कूल में और एक ही क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों पढ़ने-लिखने में ज्यादा होशियार नहीं थे.. बस औसत थे।
हमारे एक अध्यापक थे.. पाल सर.. उनके लिए मशहूर था कि वो जानबूझ कर अपने स्टूडेंट को फेल कर दिया करते थे.. ताकि वो उनके पास जाए और वो फिर उसका फायदा उठा सकें।
हमारे स्कूल में इस तरह के कई किस्से थे.. जिसमें पहले फेल हुए छात्र-छात्रा.. पाल सर से मिलने के बाद पास हो गए। इस बार हमें भी पता चला कि हम दोनों भाई-बहन भी फेल हो गए हैं और हमें अगर पास होना ही है तो पाल सर से मिलना पड़ेगा..
मैंने सपना से कहा- हम दोनों को शाम को पाल सर के पास चलना पड़ेगा.. ताकि हम पास हो सकें।
लेकिन पाल सर पास करने की क्या कीमत लेंगे.. ये हमें भी पता नहीं था।
शाम को हम दोनों पाल सर के घर गए.. तो वो कमरे में लुंगी पहने अकेले ही बैठे हुए थे। उन्होंने हम दोनों से आने का कारण पूछा.. तो हमने बताया। मैंने देखा कि बातचीत के दौरान पाल सर की निगाहें सपना पर ही लगी रहीं।
उन्होंने पूरी बात सुनने का नाटक किया और कहा- पास तो मैं करवा दूँगा.. पर इसके लिए तुम्हें कीमत देनी होगी।
हमने कहा- हमारे पास देने को कोई पैसा नहीं है।
तो उन्होंने कहा- उन्हें पैसे की नहीं.. बल्कि जो चाहिए है.. वो तुम्हारे पास है।
हम दोनों भाई-बहन ने एक-दूसरे की ओर देखा फिर सहमति में गर्दन हिला दी।
पाल सर ने मुझसे कहा- तुम कल अकेले आकर उनसे मिलो.. फिर मैं बताऊँगा कि तुम दोनों कैसे पास हो सकते हो।
अगले दिन मैं पाल सर के पास गया.. तो वो जैसे मेरा ही इंतजार कर रहे थे..
उन्होंने मुझसे कहा- मैं जो भी तेरे साथ करूँ.. तू उसका बुरा तो नहीं मानेगा?
मैंने ‘न’ में अपना सर हिला दिया।
पाल सर ने मुझे अपने पास बुलाया और वो मेरे निक्कर के ऊपर से ही मेरे चूतड़ों को सहलाने लगे.. मैं समझ गया कि आज पाल सर मेरे साथ क्या करेंगे..
उन्होंने मेरा निक्कर उतारा और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरा लंड प्यार से पकड़ा और मुँह में ले लिया।
मैं तनिक उत्तेजित सा हुआ.. इसी बीच उन्होंने मेरा पूरा सामान अपने मुँह में अन्दर ले लिया और चूसने लगे। एक हाथ बढ़ाकर उन्होंने थोड़ा नारियल तेल अपनी ऊँगली पर लिया और मेरी गुदा पर चुपड़ा। फ़िर मेरा लंड चूसते हुए धीरे से अपनी ऊँगली मेरी गाण्ड में आधी डाल दी।
‘ओह… ओह..’ मेरे मुँह से निकला।
‘क्या हुआ बेटा.. दु:खता है?’ सर ने पूछा.
‘हाँ सर… दर्द भी होता है..’
‘इसका मतलब है कि दु:खने के साथ मजा भी आता है.. है ना? अब तुझे यही तो मैं सिखाना चाहता हूँ… गाण्ड का मजा लेना हो.. तो थोड़ा दर्द भी सहना सीख ले..’
यह कहकर सर ने पूरी ऊँगली मेरी गाण्ड में उतार दी और हौले-हौले घुमाने लगे.. पहले मुझे दर्द हुआ.. पर फ़िर मजा आने लगा.. मेरे लंड को भी अजीब सा जोश आ गया और वो खड़ा हो गया.. सर उसे फ़िर से बड़े प्यार से चूमने और चूसने लगे।
‘देखा? तू कुछ भी कहे या नखरे करे.. तेरे लंड ने तो कह दिया कि उसे क्या लुत्फ़ आ रहा है..’
पांच मिनट तक सर मेरी गाण्ड में ऊँगली करते रहे और मैं मस्त होकर आखिर उनके सिर को अपने पेट पर दबा कर उनका मुँह चोदने की कोशिश करने लगा।
अब सर मेरे बाजू में लेट गए, उनकी ऊँगली बराबर मेरी गाण्ड में चल रही थी।
वो मेरे बाल चूम कर बोले- अब बता अनिल बेटे.. जब औरत को प्यार करना हो.. तो उसकी चूत में लंड डालते हैं या उसे चूसते हैं.. है ना..? अब ये बता कि अगर एक पुरुष को दूसरे पुरुष से प्यार करना हो.. तो क्या करते हैं?’
‘सर… लंड चूसकर प्यार करते हैं?’ मैंने ज्ञान बघारते हुए कहा।
‘और अगर और कस कर प्यार करना हो तो? याने चोदने वाला प्यार?’
सर ने मेरे कान को दांत से पकड़कर पूछा।
मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था, ‘सर, गाण्ड में ऊँगली डालते हैं.. जैसा आप कर रहे हैं..’
‘अरे.. वो तो आधा प्यार हुआ.. इसमें तो सिर्फ ऊँगली करवाने वाले को मजा आता है.. पर लंड में होती गुदगुदी को कैसे शांत करेंगे?’
मैं समझ गया… बहुत ही छटा हुआ मादरचोद किस्म का मास्टर है.. यह साला बिना गाण्ड मारे नहीं मानेगा।
मैं हिचकता हुआ बोला- सर… गाण्ड में… लंड डाल कर सर?
‘बहुत अच्छे मेरी जान.. बहुत अच्छे मेरी जान.. तू वाकयी समझदार है.. अब देख.. तू मुझे इतना प्यारा लगता है कि मैं तुझे चोदना चाहता हूँ.. तू भी मुझे चोदने को लंड मुठिया रहा है.. अब अपने पास चूत तो है नहीं.. पर ये जो गाण्ड है.. वो चूत से ज्यादा सुख देती है और चोदने वाले को भी जो आनन्द आता है वो बयान करना मुश्किल है बेटे..’
मैं चुप था।
‘अब बोल.. अगला लेसन क्या है? तेरे सर अपने प्यारे स्टूडेंट को कैसे प्यार करेंगे?’
‘सर.. आप मेरी गाण्ड में अपना लंड डाल कर.. ओह सर..’
मेरा लंड मस्ती में उछला.. क्योंकि सर ने अपनी ऊँगली सहसा मेरी गाण्ड में गहराई तक उतार दी..
‘सर दर्द होगा.. सर.. प्लीज़ सर..’ मैं मिन्नत करते हुए बोला।
मेरी आंखों में देख कर सर मेरे मन की बात समझ गए- तुझे करवाना भी है ऐसा प्यार और डर भी लगता है.. है ना?
‘हाँ सर, आपका बहुत बड़ा है..’ मैंने झिझकते हुए कहा।
‘अरे उसकी फ़िकर मत कर.. ये तेल किस लिए है.. आधी शीशी अन्दर डाल दूँगा.. फ़िर देखना ऐसे जाएगा.. जैसे मक्खन में छुरी.. और तुझे मालूम नहीं है.. ये गाण्ड बहुत लचीली होती है.. बड़े आराम से ले लेती है.. और देख.. मैंने पहले एक बार अपना झड़ा लिया था.. नहीं तो और सख्त और बड़ा होता.. अभी तो बस प्यार से खड़ा है.. है ना? और चाहे तो तू भी पहले मेरी मार सकता है..’
मेरा मन ललचा गया..
सर हँस कर बोले- मारना है मेरी?.. वैसे मैं तो इसलिए पहले तेरी मारने की कह रहा था कि तेरा लंड इतना मस्त खड़ा है.. इस समय तुझे इस लेसन का असली मजा आएगा.. गाण्ड को प्यार करना हो तो अपने साथी को मस्त करना जरूरी होता है.. वैसे ही जैसे चूत चोदने के पहले चूत को मस्त करते हैं.. अभी तेरा लंड खड़ा है.. तो तुझे मरवाने में बड़ा मजा आएगा..
‘हाँ सर..’
सर मुझे इतने प्यार से देख रहे थे कि मेरा मन डोलने लगा।
‘सर.. आप ही डाल दीजिये सर अन्दर.. मैं संभाल लूंगा..’
‘अभी ले मेरे राजा.. वैसे तुम्हें कायदे से कहना चाहिए कि सर.. मेरी गाण्ड मार लीजिए..’
‘हाँ सर.. मेरी गाण्ड मारिए सर.. मुझे .. मुझे चोदिए.. सर!’
सर मुस्कराए- अब हुई ना बात.. चल पलट जा.. पहले तेल डाल दूँ अन्दर.. तुझे मालूम है ना.. कि कार के इंजन में तेल से पिस्टन सटासट चलता है? बस वैसे ही तेरे सिलेंडर में मेरा पिस्टन ठीक से चले.. इसलिए तेल लगाना जरूरी है..
मैंने सहमति में अपने सिर को हिलाया।
‘अच्छा सुन.. पलटने के पहले मेरे पिस्टन में तेल तो लगा दे..’
मैंने हथेली में नारियल का तेल लिया और सर के लंड को तेल से चुपड़ने लगा.. उनका खड़ा लंड मेरे हाथ में नाग जैसा मचल रहा था। तेल चुपड़ कर मैं पलट कर लेट गया.. मुझे डर भी लग रहा था। तेल लगाते समय मुझे अंदाजा हो गया था कि सर का लंड फ़िर से कितना बड़ा हो गया है।
सर ने भले ही दिलासा देने को यह कहा था कि एक बार झड़कर उनका जरा नरम पड़ गया है पर असल में वो लोहे की सलाख जैसा ही टनटना गया था।
सर ने तेल में ऊँगली डुबो कर मेरी गुदा को चिकना किया और एक ऊँगली अन्दर-बाहर की.. फ़िर एक हाथ से मेरे चूतड़ फ़ैलाए और कुप्पी उठाकर उसकी नली धीरे से मेरी गाण्ड में अन्दर डाल दी।
मुझे सुरसुराहट सी हुई.. मैं पलट कर सर की ओर देखने लगा.. वे मुस्कराकर बोले- बेटे.. अन्दर तक तेल जाना जरूरी है.. मैं तो आधी शीशी तेल तेरे अन्दर भर ही देता हूँ.. जिससे तुझे कम से कम तकलीफ़ हो..
वे शीशी से तेल कुप्पी के अन्दर डालने लगे.. मुझे गाण्ड में तेल उतरता हुआ महसूस हुआ.. बड़ा अजीब सा.. पर मजेदार अनुभव था.. सर ने मेरी कमर पकड़कर मेरे बदन को हिलाया- बड़ी टाइट गाण्ड है रे तेरी.. तेल धीरे-धीरे अन्दर जा रहा है!
मेरी गाण्ड से कुप्पी निकालकर सर ने फ़िर एक ऊँगली डाली और घुमा-घुमा कर गहरे तक अन्दर-बाहर करने लगे।
मैंने दांतों तले होंठ दबा लिए कि सिसकारी न निकल जाए.. फ़िर सर ने दो ऊँगलियां डालीं.. आह.. इतना दर्द हुआ कि मैं चिहुंक पड़ा।
मेरे पीछे बैठते हुए सर बोले- अब तू आराम से पलट कर लेट जा… वैसे तो बहुत से आसन हैं और आज तुझे सब आसनों की प्रैक्टिस कराऊंगा.. पर पहली बार डालने वक्त ये सबसे अच्छा आसन है..
मैं औंधा लेटा था.. सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक तकिया लगा दिया और अपने घुटने मेरे बदन के दोनों ओर टेक कर बैठ गए।
‘अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल.. तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी.. और एक बात है बेटे.. गुदा को ढीला छोड़ना.. नहीं तो तुझे ही दर्द होगा.. समझ ले कि तू लड़की है और अपने सैंया के लिए चूत खोल रही है.. ठीक है ना?’
मैंने अपने हाथ से अपने चूतड़ पकड़ कर फ़ैलाए.. सर ने मेरी गुदा पर लंड जमाया और पेलने लगे, ‘ढीला छोड़.. अनिल बेटा जल्दी..’
मैंने अपनी गाण्ड का छेद ढीला किया और अगले ही पल सर का सुपाड़ा ‘पक्क’ से अन्दर हो गया.. मेरी चीख निकलते-निकलते रह गई।
मैं औंधा लेटा था.. सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक तकिया लगा दिया और अपने घुटने मेरे बदन के दोनों ओर टेक कर बैठ गए।
‘अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल.. तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी.. और एक बात है बेटे.. गुदा को ढीला छोड़ना.. नहीं तो तुझे ही दर्द होगा.. समझ ले कि तू लड़की है और अपने सैंया के लिए चूत खोल रही है.. ठीक है ना?’
मैंने अपने हाथ से अपने चूतड़ पकड़ कर फ़ैलाए.. सर ने मेरी गुदा पर लंड जमाया और पेलने लगे- ढीला छोड़.. अनिल बेटा जल्दी..
मैंने अपनी गाण्ड का छेद ढीला किया और अगले ही पल सर का सुपाड़ा ‘पक्क’ से अन्दर हो गया.. मेरी चीख निकलते-निकलते रह गई। मैंने मुँह में तकिया को दांतों तले दबा लिया और किसी तरह चीख निकलने नहीं दी.. मुझे बहुत दर्द हो रहा था।
सर ने मुझे शाबासी दी- बस बेटे बस.. अब दर्द नहीं होगा.. बस पड़ा रह चुपचाप..’
वे एक हाथ से मेरे चूतड़ सहलाने लगे.. दूसरा हाथ उन्होंने मेरे बदन के नीचे डाल कर मेरा लंड पकड़ लिया और उसे आगे-पीछे करने लगे। दो मिनट में जब दर्द कम हुआ तो मेरा कसा हुआ बदन कुछ ढीला पड़ा और मैंने जोर से सांस ली।
सर समझ गए.. उन्होंने झुक कर मेरे बाल चूमे और बोले- बस अनिल.. अब धीरे-धीरे अन्दर डालता हूँ.. एक बार तू पूरा ले ले.. फ़िर तुझे समझ में आएगा कि इस लेसन में कितना आनन्द आता है..
फ़िर वे हौले-हौले अपना मूसल लंड मेरे चूतड़ों के बीच पेलने लगे.. दो-तीन इंच बाद जब मैं फ़िर से थोड़ा तड़पा.. तो वे रुक गए.. मैं जब संभला तो फ़िर शुरू हो गए.. पांच मिनट बाद उनका पूरा लवड़ा.. मेरी गाण्ड में था। मेरी गाण्ड ऐसे दुख रही थी.. जैसे किसी ने हथौड़े से अन्दर से कीला ठोक दिया हो।
सर की झांटें मेरे चूतड़ों से भिड़ गई थीं.. सर अब मुझ पर लेट कर मुझे चूमने लगे। उनके हाथ मेरे बदन के इर्द-गिर्द बंधे थे और मेरे निपल्लों को हौले-हौले मसल रहे थे।
सर बोले- दर्द कम हुआ अनिल बेटे?
मैंने मुंडी हिलाकर ‘हाँ’ कहा।
सर बोले- अब मैं तुझे मर्दों वाला प्यार मजे से करूँगा… थोड़ा दर्द भले हो पर सह लेना.. देखना तुझे भी मजा आएगा।
वे धीरे-धीरे मेरी गाण्ड मारने लगे.. मेरे चूतड़ों के बीच उनका लंड अन्दर-बाहर होना शुरू हुआ और एक अजीब सी मस्ती मेरी नस-नस में भर गई।
मुझे दर्द तो हो रहा था.. पर गाण्ड में अन्दर तक बड़ी मीठी कसक हो रही थी। एक-दो मिनट धीरे-धीरे लंड अन्दर-बाहर करने के बाद मेरी गाण्ड में से ‘सप..सप’ की आवाज निकलने लगी। तेल पूरा मेरे छेद को चिकना कर चुका था.. मैं कसमसा कर अपनी कमर हिलाने लगा।
यह देख कर सर हँसने लगे- देखा.. आ गया रास्ते पर.. मजा आ रहा है ना? अब देख आगे मजा..
फ़िर वे कस कर लंड पेलने लगे.. सटासट-सटासट लंड अन्दर-बाहर होने लगा। फ़िर मैं भी अपने चूतड़ उछाल कर सर का साथ देने लगा।
‘अनिल.. बता.. आनन्द आया या नहीं?’
‘हाँ… सर.. आप का अन्दर लेकर बहुत मजा… आ रहा है.. आह..’ सर के धक्के झेलता हुआ मैं बोला।
‘सर.. आपको.. कैसा लगा.. सर?’
‘अरे राजा.. तेरी मखमली गाण्ड के आगे तो गुलाब भी नहीं टिकेगा.. ये तो मेरे लिए जन्नत है जन्नत.. ले… ले… और जोर से करूँ..?’
‘हाँ.. सर… जोर से.. मारिए.. सर बहुत अच्छा लग रहा है.. सर!’
सर मेरी पांच मिनट मारते रहे और मुझे बेतहाशा चूमते रहे.. कभी मेरे बाल चूमते, कभी गर्दन और कभी मेरा चेहरा मोड़ कर अपनी ओर करते और मेरे होंठ चूमने लगते।
फ़िर वे रुक गए.. मैंने अपने चूतड़ उछालते हुए शिकायत की- मारिए ना सर… प्लीज़!
‘अब दूसरा आसन.. भूल गया कि ये लेसन है? ये तो था गाण्ड मारने का सबसे सीधा-सादा और मजेदार आसन.. अब दूसरा दिखाता हूँ.. चल उठ और ये सोफ़े को पकड़कर झुक कर खड़ा हो जा…’
सर ने मुझे बड़ी सावधानी से उठाया कि लंड मेरी गाण्ड से बाहर न निकल जाए और मुझे सोफ़े को पकड़कर खड़ा कर दिया।
‘झुक अनिल.. ऐसे सीधे नहीं.. अब समझ कि तू कुतिया है.. या घोड़ी है… और मैं पीछे से तेरी गाण्ड मारूँगा।’
मैं झुक कर सोफ़े के सहारे खड़ा हो गया। सर मेरे पीछे खड़े होकर मेरी कमर पकड़कर फ़िर पेलने लगे।
उनका हलब्बी लौड़ा मेरी गुदा में आगे-पीछे आगे-पीछे.. चल रहा था.. सामने आइने में दिख रहा था कि कैसे उनका लंड मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर हो रहा था..
ये देख कर मेरा और जोर से खड़ा हो गया.. मस्ती में आकर मैंने एक हाथ सोफ़े से उठाया और लंड पकड़ लिया।
सर पीछे से मेरी गाण्ड में लवड़ा पेल रहे थे.. एक धक्के से मैं गिरते-गिरते बचा।
‘चल.. जल्दी हाथ हटा और सोफ़ा पकड़.. नहीं तो तमाचा मारूँगा!’ सर चिल्लाए।
‘सर.. प्लीज़… रहा नहीं जाता… मुठ्ठ मारने का मन हो रहा है।’
‘अरे मेरे राजा मुन्ना.. यही तो मजा है, ऐसी जल्दबाजी न कर.. पूरा लुत्फ़ उठा.. ये भी इस लेसन का एक भाग है।’
मैं उन्हें सुन रहा था।
‘और अपने लंड को कह कि सब्र कर.. बाद में बहुत मजा आएगा उसे..’
सर ने खड़े-खड़े मेरी दस मिनट तक गाण्ड मारी। उनका लंड एकदम सख्त था.. मुझे अचरज हो रहा था कि कैसे वे झड़े नहीं. बीच में वे रुक जाते और फ़िर कस के लंड पेलते। मेरी गाण्ड में से ‘फ़च.. फ़च..’ की आवाज आ रही थी।
फ़िर सर रुक गए.. बोले- मैं थक गया हूँ बेटे? चल थोड़ा सुस्ता लेते हैं.. आ मेरी गोद में बैठ जा.. ये है तीसरा आसन है.. आराम से प्यार से चूमाचाटी करते हुए करने वाला आसन है।
यह कहकर वे मुझे गोद में लेकर सोफ़े पर बैठ गए.. लंड अब भी मेरी गाण्ड में धंसा था, मुझे बांहों में लेकर सर चूमा-चाटी करने लगे.. मैं भी मस्ती में था, उनके गले में बांहें डाल कर उनका मुँह चूमने लगा और जीभ चूसने लगा।
सर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होकर अपना लंड नीचे से मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर करने लगे।
पांच मिनट आराम करके सर बोले- चल अनिल.. अब मुझसे भी नहीं रहा जाता.. क्या करूँ.. तेरी गाण्ड है ही इतनी लाजवाब.. देख कैसे प्यार से मेरे लंड को कस कर जकड़े हुए है.. आ जा.. इसे अब खुश कर दूँ.. बेचारी मरवाने को बेताब हो रहा है.. है ना?’
मैं बोला- हाँ सर..
मेरी गाण्ड अपने आप बार-बार सिकुड़ कर सर के लंड को गाय के थन जैसा दुह रही थी।
‘चलो, उस दीवार से सट कर खड़े हो जाओ!’
सर मुझे चला कर दीवार तक ले गए। चलते समय उनका लंड मेरी गाण्ड में रोल हो रहा था.. मुझे दीवार से सटा कर सर ने खड़े-खड़े मेरी मारना शुरू कर दी।
अब वे अच्छे लंबे स्ट्रोक लगा रहे थे, दे-दनादन… दे-दनादन.. उनका लंड मेरे चूतड़ों के बीच अन्दर-बाहर हो रहा था।
थोड़ी देर में उनकी सांस जोर से चलने लगी.. उन्होंने अपने हाथ मेरे कंधे पर जमा दिए और मुझे दीवार पर दबा कर कस-कस कर मेरी गाण्ड चोदने लगे।
मेरी गाण्ड अब ‘पचक.. पचाक.. पचाक’ की आवाज कर रही थी।
दीवार पर बदन दबने से मुझे दर्द हो रहा था.. पर सर को इतना मजा आ रहा था कि मैंने मुँह बंद रखा और चुपचाप गाण्ड मरवाता रहा।
तभी सर एकाएक झड़ गए और ‘ओह… ओह… अह… आह..’ करते हुए मुझसे चिपट गए.. उनका लंड किसी जानवर जैसा मेरी गाण्ड में उछल रहा था.. सर हाँफ़ते-हाँफ़ते खड़े रहे और मुझ पर टिक कर मेरे बाल चूमने लगे।
पूरा झड़ कर जब लंड सिकुड़ गया.. तो सर ने लंड बाहर निकाला.. फ़िर मुझे खींच कर बिस्तर तक लाए और मुझे बांहों में लेकर लेट गए और चूमने लगे।
‘अनिल बेटे.. आज बहुत सुख दिया है तूने.. मुझे.. बहुत दिनों में मुझे इतनी मतवाली कुंवारी गाण्ड मारने मिली है.. आज तो दावत हो गई मेरे लिए.. मेरा आशीर्वाद है तुझे.. कि तू हमेशा सुख पाएगा.. इस क्रिया में मेरे से ज्यादा आगे जाएगा.. तुझे मजा आया? दर्द तो नहीं हुआ ज्यादा?’
सर के लाड़ से मेरा मन गदगद हो उठा। फिर उन्होंने सभी पेपर मुझे दे दिए और मैं रटकर अच्छे नंबर ले आया।

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