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मेरी मज़ेदार मौसी के साथ लेस्बियन सेक्स - Desi Sex Stories

मेरा नाम बरखा है ! अभी मैं राजस्थान के प्रसिद्ध शहर जोधपुर में अपने पति और बिटिया के साथ मस्त जिंदगी व्यतीत कर रही हूँ। लेकिन मेरा मायका बीकानेर के करीब एक गाँव में है।


मैं आपको अपनी शादी से पहले की बात बताना चाहती हूँ।


मेरी मौसी की ससुराल भी हमारे ही गाँव में है।


अक्सर मौसी की अपने पति से अनबन हो जाती थी तो वो हमारे साथ ही रहने आ जाया करती थी। घर में हाँथ बटाने में मौसी कभी पीछे नहीं हटती सो किसी को उनके रहने पर ऐतराज़ नहीं था !


मौसी हमेशा पीछे वाले कमरे में रहती थी।


एक बार देर रात की बात है घर पर सब सोये हुए थे और मैं पढ़ाई कर रही थी … मुझे सिसकारियों की सी आवाज़ सुनाई दी, वो आवाज मुझे मौसी के कमरे की तरफ़ से आती महसूस हुई तो मैं मौसी के कमरे की ओर चल पड़ी … दरवाज़ा खुला था .. झांक कर देखा तो मौसी सिर्फ चोली पहने हुई थी, नीचे बिलकुल नंगी टिन के संदूक के ऊपर जांघें फैलाए बैठी थी … वो बार बार एक लकड़ी के डंडे को अपनी योनि में अन्दर-बाहर कर रही थी … वो उस डण्डे को बार बार पास रखे तेल भरे डिब्बे में डुबो रही थी …


मैं : मौसी, यह क्या कर रही है ?


मौसी बिलकुल पसीने पसीने थी….. आँखे हवस से बेचैन !


मौसी : देख नहीं री .. अपने बुर को शांत करण लागरी ! … शैतान बसै इसमैं … हैवानियत भरी इस छेद में …


मैं : मौसी, ऐसा आप ऐसा क्यूँ कह रही है ?


मौसी : अभी तेरा ब्याह ना हुआ ना .. चुदाई का स्वाद नहीं चखी ना तू … जाकै देख तेरी माँ क्या कर री … चुदरी होगी … तेरा बाप बांका मर्द है … घोड़े की तरह ….जालिमों की तरह चोदै है, तेरी मां तांई तै खुस रेहवे है पर मन्ने कोई इसा मज़ा ना देवै ?


मैं : छी. मौसी कितना गंद बोल रही है … ऐसा कोई कहता है भला ? वो तो आपकी बहन है….और अब शायद माँ पापा संभोग भी …


मौसी : मेरी बात्तां पै जकीन नी तो चल … दिखाऊं हूँ तन्नै…


मौसी ने अपना घाघरा पहना और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर माँ के कमरे के पास ले गई …


मौसी : देख लै अपनी आंखां खोल कै बारी मां ते … दोन्ना किक्कर लिपटे पड़े …


मैंने पहली बार दोनों को नग्न देखा … माँ के ऊपर पापा चढ़े हुए थे … लंड निकला हुआ था … बहुत बड़ा सा लिंग था … माँ की जांघें पापा को घेरे हुए थी … शायद अभी अभी ही पापा का स्खलन हुआ होगा … वीर्य माँ की जांघों और पेट पर गिरा हुआ था … मुझे नहीं पता था कि वे अभी भी संभोग करते हैं …


मौसी : देख लिया … थोड़ी होर देखेगी .. तेरा बाप फिर तेरी माँ नै उठा उठा कर चोदे सबेरे तैं …


मैं : चलो मौसी यहाँ से …


हम दोनों वहाँ से वापिस चलने लगे …मध्य रात थी …


मैं : मौसी … मौसा जी भी तो हट्टे कट्टे है वो भी तो …


मौसी : बस देक्खण मां ही …कुछ ना होत्ता उसतै ! फिस्सड्डी साला ! … ब्याह की पैल्ली रात नै मैं बूझ गी ती … मन्नै मज़ा देणा इसके बसकी बात नी …


मैं : क्या ? सच में ?


मौसी : हाँ … है के उसकै धोत्ती मै? जरा सा डण्डी सा.. मूत्तण जोग्गा बस ! जरा सी जाण आत्तै ई गिर ज्या .. बस ऊप्पर ऊप्पर मज़ा देवे अन्दर कुछ णी … आज बी मैं तरसूं हूँ … बोहोत जी मै आवे केर कियां मर्द सै चोदे लगवाऊँ …


मैं : फिर .. आज तक … आपने ठीक से संभोग …?


मौसी : नहीं … मण तो करै है के इबी दरवज्जा खोल कै जिज्जी के कमरे में बड़ कै जीज्जाजी से चुदवा ल्यूं !


मैं : मतलब आप पापा से …??


मौसी : हां ! मैं जाणूँ …. नीरी जान है मेरे जिज्जा धोरै ! जिज्जी बतावै थी मन्नै सारी बातां पैल्लै तो ! इब त्तां कुछ नी बतात्ती ! वा बी मेर तै डरदी के कहीं मैं कितै उड़ा के ना ले जाऊँ ! घणी नज़र राखै हैं जिज्जी !


मैं : हाँ ! मां तो हमेशा पापा के साथ साथ रहती है …


गुप अँधेरा था, मुझे अपने कमरे में ले गई …


मौसी : इब तै तेरे पै बी जवानी खिड री ! … तेरा बी तो जी करदा होग्गा कुछ करण णूं?


मैं : मौसी !


मौसी : के करै मौसी ? बोल णा ! उंगली तो करदी ऐ होग्गी ?


यह कहते कहते मौसी मुझसे लिपट गई … मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पागलों की तरह चूसने लगी।


मौसी का एक हाथ मेरी गर्दन पर था और दूसरा पीछे मेरे कूल्हों पर !


वो जोर जोर से मुझे चूम रही थी और मेरे चूतड़ मसल रही थी। मेरे तन-बदन में भी आग सी भरती जा रही थी। अब मैं भी चुम्बन में खुल कर मौसी का सहयोग करने लगी थी।


मौसी की उंगलियों ने मेरे घाघरे का नाड़ा खींच दिया तो मैं चौंक उठी !


मैं : मौसी ! क्या कर रही हो?


मौसी : कुछ नहीं री ! तन्णै भी आज जवानी का थोड़ा सा मजा दिखा दयूँ ?


मैं : मौसी कुछ होगा तो नहीं ..


मौसी : नाई रे पगली … कुछ नी होवे तन्नै …


मौसी ने मेरा घाघरा नीचे गिरा दिया और मेरी चोली को ऊपर सरका कर मेरे एक चूचे पर होंठ जमा दिए और दूसरे पर अपना पंजा !


मौसी के चूसने-मसलने से मेरी चूचियाँ चरमरा उठी, उनमें दर्द सा होने लगा।


मैं : मौसी ! होले होले !


मौसी : क्यूं ? दुःख होवे ?


मैं : हाँ मौसी !


मौसी ने मेरी चोली पूरी उतार दी और अपनी चोली-घाघरा भी उतार कर अपनी चूचियों पर मेरे हाथ रखते हुए बोली : ले इना नै मसल जित्ता तेर पै मसल्या जावे !


मुझे शर्म भी आ रही थी और मज़ा भी !


मौसी : महीना आत्ता होगा तन्नै तो ?


मैं : हाँ मौसी पर दर्द बहुत होता है जब खून का स्त्राव होता है …


मौसी : इकरै होवे है … कोन्नी बात !


मौसी ने मुझे नीचे बिछी दरी पर लिटा लिया और मेरी जांघों को पागलों के सामान चूमने लगी … फुद्दी चाटने लगी … चूतड़ों को मसलने लगी।


मैं : अहह मौसी .. क्या हो रहा है मुझे, मज़ा आ रहा है .. मौसी किसी को बुलाओ न ! किसी को भी अभी बुला दो चुदवा दो मुझे …


मौसी : इबजा कोई नी आवैगा ए ऐसे छोरी … इब तनै बेरा लागया ना के यो छेद नी, शैतान की नलकी है … घणे गंदे काम करवावै सै यो … इन्ना गोल गोल बोब्बों नै चूस चूस कर इतने बड़े बना दयूंगी तेरे ब्याह सा पैल्लाँ ई … लौंडों को बड़े पसंद आवे हैं !


मैं : मौसी कुछ कर ना !


मौसी : .. आजा मैं चोदूं हूँ तेरे को !


मौसी ने वही लकड़ी का डण्डा तेल भरे डिब्बे में से निकाला और उसे मेरी योनि की दरार पर फ़िराने लगी।


मुझे मज़ा भी आया पर मैं डर गई : मौसी, क्या कर री तू !


मुझे लगा कि मौसी इस डण्डे को मेरे अन्दर घुसा देगी : मौसी ! देख तन्ने मेरी सौं ! इस्सै कुछ ना करिये !


मौसी : तू बस मन्नै करण दे ! देख्ती जा के तन्ने कितना मज़ा आवेगा !


मैं : ना मौसी ना ! मेरी फ़ट जा गी ! तू मन्ने बख्श दे ! मन्नै नी लेणे मज़े !


डण्डे के चूत पर रगड़ने से मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, मेरे चूतड़ बार बार अपने आप ही उछल उछल कर उसे अपने अन्दर समा लेने का यत्न कर रहे थे, मौसी की चूत मेरे मुंह के पास ही थी, मस्ती में मैं भी मौसी की चूत सहलाने लगी, उसमें उंगलियाँ घुसाने लगी तो मौसी के चूतड़ भी थिरकने लगे।


मौसी : एक दो सै मेरा के बणै ! पूरा पंजा बाड़ दे अन्दर !


सच में मौसी की चूत बहुत खुली थी।


मौसी ने अपने अंगूठे से और एक उंगली से मेरे चूत के फ़लक खोले और तेल में भीगे डण्डे को मेरी योनि में दबाने लगी।


डर के मारे मैंने अपनी जांघें भींच ली !

मैं : ना मौसी ना ! मेरी फ़ट जा गी ! तू मन्ने बख्श दे ! मन्नै नी लेणे मज़े !


डण्डे के चूत पर रगड़ने से मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, मेरे चूतड़ बार बार अपने आप ही उछल उछल कर उसे अपने अन्दर समा लेने का यत्न कर रहे थे, मौसी की चूत मेरे मुंह के पास ही थी, मस्ती में मैं भी मौसी की चूत सहलाने लगी, उसमें उंगलियाँ घुसाने लगी तो मौसी के चूतड़ भी थिरकने लगे।


मौसी : एक दो सै मेरा के बणै ! पूरा पंजा बाड़ दे अन्दर !


सच में मौसी की चूत बहुत खुली थी।


मौसी ने अपने अंगूठे से और एक उंगली से मेरे चूत के फ़लक खोले और तेल में भीगे डण्डे को मेरी योनि में दबाने लगी।


डर के मारे मैंने अपनी जांघें भींच ली !


मौसी मेरे अन्दर डण्डे को ऐसे घुमा घुमा कर डाल रही थी जैसे कि बढ़ई बरमे से लकड़ी में छेद कर रहा हो ! मुझे लगा कि जैसे मेरे बदन में किसी ने चाकू उतार दिया हो ! मुझे असहनीय पीड़ा हुई और जैसे ही मैं चीखने को हुई, मौसी का एक हाथ मेरे मुख पर जम गया जिससे मेरी चीख मेरे गले में ही घुट कर रह गई। मैं समझ चुकी थी कि मेरा योनिपटल भंग हो चुका था और रक्त की एक अविरत धारा मैं अपनी गाण्ड पर से बहती महसूस कर रही थी।


अब तक मौसी धीरे धीरे आधे के अधिक डण्डा मेरी योनि की गहराइयों में उतार चुकी थी। मौसी मुझे होने वाली तकलीफ़ से बेपरवाह अपना काम किए जा रही थी।


डण्डे की मोटाई-लम्बाई को मैं अपने बदन के अन्दर स्पष्ट महसूस कर रही थी, डण्डे ने मेरी योनि को अपने आकार में फ़ैला कर अपना स्थान बना लिया था।


थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि मेरा दर्द कम होने लगा है। शायद थोड़ा बहुत आनन्द का अनुभव भी होने लगा था। मौसी को भी मेरे आनन्द का आभास हो गया था शायद, तभी तो उसने अपना हाथ मेरे मुंह से हटा कर मेरे स्तनों पर रख लिया था।


अब मौसी मेरे स्तनों को बेदर्दी से मसलने लगी। उस लकड़ी के डण्डे को मौसी ने मेरी चूत में ऐसे छोड़ दिया जैसे कोई खूंटा गाड़ कर चला गया हो। मुझे लगने लगा कि आज तो मौसी ने जैसे पूरी दुनिया का दर्द मुझे ही देने की ठान ली हो। मेरी चूचियों को मौसी ऐसे मथ रही थी जैसे आटा गूंथ रही हो। मेरे चुचूकों को पकड़ कर ऐसे खींच रही थी जैसे उनमें से दूध निकालने की कोशिश कर रही हो।


कुछ देर बाद फ़िर मौसी का ध्यान डण्डे की तरफ़ गया तो वो उसे धीरे धीरे मेरी योनि में अन्दर-बाहर करने लगी। बीच बीच में लगभग पूरा डण्डा बाहर खींच कर फ़िर पूरा अन्दर घुसा देती तो मैं फ़िर से योनि में दर्द से कराह उठती। मौसी बार बार मुझे आवाज ना करने की हिदायत दे रही थी। जितनी बार मैंने मौसी को अपने दर्द का अहसास दिलाने की कोशिश की उतनी बार मौसी ने यही कहा- बस इबै होवैगो यो दर्द ! फ़ेर तो घणो मज्या यो आवेगो !


तभी अचानक मौसी ने पूरा डण्डा मेरी चूत से बाहर खींच लिया तो मैंने देखा कि डण्डा खून से लाल था। रक्त से सना डण्डा देख कर मैं घबरा गई और अपनी योनि की हालत का जायजा लेने के लिए सिर उठा कर देखने का प्रयत्न करने लगी लेकिन मेरी दृष्टि वहाँ तक पहुँच नहीं पा रही थी।


मौसी ने मेरे वस्ति-स्थल पर झुक कर अपनी एक उंगली और अंगूठे से मेरी योनि को फ़ैलाया और अन्दर झांकते हुए बोली- ले ! इबै तू कुंआरी कौन्ना रई ! फ़टगी तेरी ! पाड़ दी मन्नै तेरी या फ़ुद्दी !


मैं बड़ी मुश्किल से बोली- मौसी एक बार देखने तो दे !


के करैगी तू इब इन्नै देख कै ? चल दिखाई दयूं तन्नै ! देख लै तूं बी के किक्कर मु खोल्ले पडी !


मौसी अपने ट्रंक में से एक छोटा सा शीशा निकाल कर लाई और उसे मेरी योनि के सामने करके इधर उधर हिला कर मुझे मेरी फ़टी हुई योनि दिखाने का प्रयत्न करने लगी।


अपनी चूत की खस्ता हालत देख मुझे रोनी सी आ गई।


मौसी ने फ़िर से मेरी चूत में डण्डा डालने की कोशिश की तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और मना करने लगी।


इब के रोक्कै तूं मन्नै ! इब्जां ई ते मज़ा लेण का बखत होया !


कहते हुए मौसी ने मेरी चूत में सरका दिया उस डण्डे को और धीरे धीरे अन्दर-बाहर करने लगी।


मुझे भी मज़ा आने लगा। मैंने मौसी का हाथ पकड़ लिया और अपने आनन्द के अनुसार मौसी के हाथ की गति निर्धारित करने लगी।


मेरा मज़ा बढ़ता ही जा रहा था और एक बार तो ऐसा लगा कि मैं मर ही जाऊँगी इस आनन्द के सागर में डूब कर ! मेरी सांसें थम गई, मेरे चूतड़ अपने आप डण्डे के साथ-साथ उछलने लगे और फ़िर तो ऐसा लगा कि जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ, उड़ रही हूँ ! मेरी आंखें बद थी, मेरे होश खो गए थे, मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ, किस दुनिया में हूँ।


मुझे भी मज़ा आने लगा। मैंने मौसी का हाथ पकड़ लिया और अपने आनन्द के अनुसार मौसी के हाथ की गति निर्धारित करने लगी।


मेरा मज़ा बढ़ता ही जा रहा था और एक बार तो ऐसा लगा कि मैं मर ही जाऊँगी इस आनन्द के सागर में डूब कर ! मेरी सांसें थम गई, मेरे चूतड़ अपने आप डण्डे के साथ-साथ उछलने लगे और फ़िर तो ऐसा लगा कि जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ, उड़ रही हूँ ! मेरी आंखें बद थी, मेरे होश खो गए थे, मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ, किस दुनिया में हूँ।


यह था मेरे जीवन का प्रथम यौन चरमोत्कर्ष ! पहला पूर्ण यौन-आनन्द ! आनन्द की पराकाष्ठा !


इतना सब होने के बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा था कि मैं कहाँ हूँ, किस हाल में हूँ। शायद मौसी ने ही मुझे साफ़ किया होगा, मेरे कपड़े ठीक किए होंगे।


सुबह उठी तो मैंने अपने को मौसी के कमरे में पाया। मेरा अंग-अंग दर्द कर रहा था, मेरी जांघें जैसे जल रही थी, जांघों के बीच योनि में चीस मार रही थी। तभी रात की पूरी घटना मेरे दिलो-दिमाग में घूम गई। मुझे अपने पर शर्म भी आई और गुस्सा भी ! और साथ ही मौसी पर बहुत क्रोध आया कि मौसी ऐसा कैसे कर सकती हैं !


अपने दाएँ-बाएँ देखा तो मौसी वहाँ नहीं थी। उठ कर अपने कमरे में जाना चाहा तो उठा ही नहीं गया, टांगें तो हिलाए नहीं हिल रही थी।जैसे कैसे खड़ी हुई तो कदम ही आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। पेट में भी दर्द महसूस कर रही थी और योनि का दर्द तो असहनीय था। दर्द के मारे मेरा हाथ अपनी योनि पर गया तो लगा जैसे यह मेरे शरीर का हिस्सा ही नहीं है। मैं अपनी योनि को काफ़ी अच्छी तरह पहचानती थी, लेकिन यह तो आज काफ़ी बड़ी और सूजी हुई लग रही थी। चल कर अपने कमरे में जाना मुझे दुश्वार हो गया था फ़िर भी येन-केन-प्रकारेण मैं अपने कमरे में पहुंच गई और दर्द की एक गोली पानी के साथ निगल ली, वही गोली जो मैं अक्सर माहवारी में होने वाले दर्द के लिए लेती थी।


गोली खाकर मैं अपने बिस्तर पर बैठी ही थी कि मौसी अन्दर आ गई ! मौसी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी जो मुझे ऐसे लगी जैसे मेरा मज़ाक उड़ा रही हो !


मौसी ने मेरे पास आ कर मेरे सिर पर हाथ रखा तो मैंने गुस्से से मौसी का हाथ एक तरफ़ झटक दिया और बोली- हाथ ना लगाइयो मन्ने !


मौसी ने झुक कर मेरे सिर पर चूम लिया और बोली- घणी दुक्खे के?


मैं बोली- मौसी ! तन्नै करया के यो !


मज़्ज़ा नी आयो के? मौसी बोली।


मेरे मुख से निकल पड़ा- मेरी गाण्ड पटी पड़ी अर तन्नै मज़्ज़ै की सूझरी !


मौसी बोली- गाण्ड किक्कर पट गी तेरी? मन्ने तै तेरी फ़ुद्दी मै बाड़या ता ! गाण्ड किसी होर तै पड़वाई आइ के?


मैं मौसी की जांघ पर जोर से हाथ मारते हुए बोली- चुप होज्या इब नैइओ मैं तन्नै मारुंगी ! बोहोत दर्द हो रहैया।


मौसी मुझे पुचकारते हुए बोली- नाराज नी हुआ करते ! सब ठिक्क होज्यागा ! तेरे धोरै दर्द की गोली हो तो खाले !


मौसी मेरे पास बिस्तर पर बैठ गई मेरे गालों पर अपने दोनों हाथ रख कर मेरा चेहरा अपने हाथों में लेकर चूम लिया और फ़िर अपनी छाती पर दबा पर मुझे प्यार करने लगी।


मेरी आंखों से आंसू बहने लगे जो मौसी की चोली को भिगो रहे थे। मौसी को भी मेरे रोने का अहसास हुआ तो मेरे चेहरे को अपने वक्ष से उठा कर मेरे होंठ चूमते हुए बोली- रोवै ना मेरी बच्ची !


और मेरे होंठों को चूसने लगी।


तभी मेरी मम्मी ने मुझे आवाज लगाई। मैंने मौसी को कहा- मौसी देखना तो मम्मी क्या कह रही हैं?


मौसी बोली- तू यहीं रहना अभी कुछ देर तक जब तक गोली का असर नहीं होता। जिज्जी को मैं देखती हूँ कि क्या कहती हैं।


और इस तरह से मौसी और मेरे समलिंगी सम्बन्ध बन गए। कभी मैं मौसी के घर चली जाती और अक्सर मौसी हमारे घर आती ही रहती थी। हन दोनों मिल कर हर प्रकार से यौन-आनन्द लेती थी, उसी लकड़ी के डण्डे से, एक दूसरे को चूम कर, एक दूसरे की चूचियाँ चूस कर, योनि में उंगली करके योनि को चाट कर ! यानि हर तरह से !


इसी तरह मेरी और मौसी के बीच वासना की ज्वाला दो-तीन साल तक जली। तभी मेरे रिश्ते की बात चली और मेरी शादी हरियाणा के हिसार शहर में तय हो गई !


मेरी शादी हो गई ! बिदाई के वक़्त सबसे ज्यादा मैं मौसी से लिपट कर रोई …


तो आप को मेरी Desi Sex Stories कैसी लगी ये बताये।

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