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नर्सिंग के साथ चुदाई की पढ़ाई - Hindi Sex Stories

मेरा नाम राधिका पटेल है, उस वक्त मैं 22 साल की थी, नर्सिंग कॉलेज में पढ़ती थी और जयपुर में कोचिंग के लिए रह रही थी, पहले मैं बिल्कुल सिम्पल लड़की थी, लेकिन मेरी सहेली मोनिका ने मुझे चालू रंडी बना दिया, उसी की वजह से मुझे रोज नये-नये लंड लेने की लत लग गई, वो मेरे जैसी ही दिखती थी, गोरी-चिट्टी, बड़ी चुचियां वाली, और हम दोनों को चूत मरवाने का इतना शौक था कि बस लंड मिलना चाहिए, चाहे कितने भी हों।


मेरा रंग एकदम गोरा है, चुचियां पहले से ही बड़ी और उभरी हुई थीं, अब तो और भी भारी हो गई हैं क्योंकि लंड का शौक इतना बढ़ गया था कि मैं कुछ भी कर गुजरती थी, पढ़ाई में तो मैं टॉपर थी, पर दो और शौक थे, लंड पकड़ना और लंड खाना, मौका मिलते ही मैं किसी का भी लंड मुंह में ले लेती, मोनिका और मैंने कई बार एक साथ तीन-तीन लंड लिए थे, ग्रुप सेक्स हमारे लिए आम बात थी, वो रातें याद करके आज भी मेरी चूत गीली हो जाती है, कैसे हम दोनों चिल्लातीं, एक-दूसरे की चुचियां दबातीं, और लंड बदल-बदल कर लेतीं।


कॉलेज के एक फंक्शन में मुझे विकास शर्मा अंकल पसंद आ गए, सभी उन्हें शर्मा जी कहते थे, उनका बदन सुडौल, कसरती था, देखते ही मेरी चूत में खुजली शुरू हो गई, मन में सोच रही थी—ये मर्द कितना जोरदार चोदेगा, उसकी नसें फूली हुईं, जैसे मेरी चूत को पुकार रही हों, मैं उनके पास गई, हंसते-हंसते बातें करने लगी, अंकल ने भी प्यार से बात की और बोले, “राधिका, कभी घर आना, बैठकर लंबी बात करेंगे।” मैंने हंसकर हाँ कह दिया और उनका पता ले लिया, जाते वक्त उनकी आंखों में वो भूख देखी जो मुझे और तड़पा गई।


अगले दिन मैं तैयार होकर गई, टाइट शॉर्ट निकर जींस और स्लीवलेस टॉप, जिसमें मेरी बड़ी-बड़ी चुचियां बस बाहर झांक रही थीं, निप्पल ही ढके थे, लेकिन उभरे हुए साफ दिख रहे थे, अंदर पहुंची तो अंकल ने कैप्री पहनी थी, टेबल पर व्हिस्की के गिलास रखे थे, हमने ढेर सारी व्हिस्की पी, खूब बातें की, व्हिस्की का नशा चढ़ रहा था, मेरी जांघें गर्म हो रही थीं, अंकल की आंखें मेरी चुचियों पर टिकीं, लेकिन कुछ बोले नहीं, जाते वक्त मन मसोसकर लौटी, सारी रात बस उनके लंड के सपने देखती रही, सोचती रही—कितना मोटा होगा, कैसे मेरी चूत को भरेगा, उंगलियां चूत में डालकर सो गई।


तीसरे दिन फिर गई, आज मैंने ठान लिया था कि आज लंड लूंगी चाहे कुछ भी हो जाए, जानबूझकर टॉप के दो बटन खोल दिए, चुचियां आधी से ज्यादा बाहर, निप्पल सख्त होकर टॉप से दब रहे थे, व्हिस्की पीते-पीते अंकल का लंड तनकर खड़ा होने लगा, उनकी कैप्री में उभार साफ दिख रहा था, मैं उठी, दिल की धड़कनें इतनी तेज कि कान में गूंज रही थीं, और शर्मा अंकल के पास जाकर उनके होंठों पर एक गहरा, गीला किस कर दिया—उनकी जीभ मेरी जीभ से लिपट गई, जैसे दो भूखे जानवर, मैं उनके बगल में बैठी, हाथ कैप्री पर फेरा, महसूस किया वो उभार जो पहले से ही सख्त हो रहा था, धीरे से कैप्री नीचे खींची, और उनका लंड बाहर उछला—गर्म, नसों से फूला हुआ, मेरे गाल पर थप्पड़ मारता सा।


“अरे शर्मा जी, आजाद होते ही थप्पड़ मार रहा है तेरा लंड? इतना बेताब है मेरी चूत को फाड़ने के लिए?” मैंने हंसकर कहा, मन में सोच रही थी—कितना मोटा है ये, मेरी चूत को फाड़ देगा, लेकिन यही तो मजा है, मैंने उसे किस किया, जीभ से चाटा, फिर मुंह में ले लिया—ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग… गीगीगी… गोंगोंगों… की आवाजें गूंजीं, उसका स्वाद नमकीन-मस्की, मेरी लार से चमकता हुआ, अंकल कराह उठे, “राधिका, तू तो जादूगरनी है… चूस ऐसे जैसे तेरी जान इसमें अटकी हो,” मैंने गले तक ठूंस लिया, आंखों में आंसू आ गए लेकिन रुकी नहीं—मेरी चूत पहले से ही गीली हो रही थी, जांघें आपस में रगड़ रही थीं, पसीने की हल्की महक कमरे में फैल रही थी।


फिर अंकल ने मुझे सोफे पर लिटाया, सारे कपड़े उतारे, मेरी चुचियां दबाईं—निप्पल को मरोड़ा, मैं तड़प उठी, “आह्ह्ह… शर्मा जी… चूसो इन्हें… ओह्ह्ह्ह… इह्ह्ह्ह…” फिर मेरी चूत को चाटा—उनकी गर्म सांसें मेरी क्लिट पर लगीं, जीभ अंदर-बाहर, मेरी गांड उछल रही थी, “आह्ह्ह… शर्मा जी… और जोर से… मेरी चूत का रस चूस लो… ओह्ह्ह्ह… इह्ह्ह्ह… ऊउईईई…” मैं तड़प रही थी, निप्पल सख्त होकर दर्द कर रहे थे, अंकल बोले, “तेरी चूत का अमृत कुछ और ही है, राधिका—मीठा, गीला, मेरे लंड के लिए बनी हो, आज तक कई लड़कियों को चोदा, पर तेरी जैसी भूखी रंडी नहीं मिली,” मैं तारीफ सुनकर और गर्म हो गई, मन में सोच रही थी—हाँ, मैं रंडी हूं, लेकिन ये लंड मेरे गुलाम हैं।


फिर उन्होंने अपना मोटा लंड मेरी चूत पर रगड़ा—टिप से क्लिट को छेड़ा, मैं कमर हिलाकर चिल्लाई, “पेल दो अंकल… मत तड़पाओ… चोदो मुझे रंडी की तरह,” एक जोरदार झटके में अंदर ठूंस दिया—’आआआह्ह्ह्ह… मर गई… फट गई चूत…’ लेकिन दर्द में मजा था, मेरी दीवारें उसके चारों ओर कस रही थीं, गीलेपन की चपचपाहट गूंज रही थी, अंकल ने आधे घंटे तक जोर-जोर से ठोका, मैं बस चिल्लाती रही, “हाँ अंकल… और तेज… फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह्ह ओह्ह्ह… ऊउइइइ… ह्ह्हाााा…” हर धक्के में मेरी चुचियां उछल रही थीं, पसीना टपक रहा था, मैं हंस पड़ी बीच में—मजा इतना कि हंसी आ गई, लेकिन अंकल नहीं रुके।


तभी डोरबेल बजी, और मेरा मूड खराब हो गया—कौन आ गया बीच में, इतना अच्छा माहौल था, लेकिन जब राजीव अंकल अंदर आए, तो मेरी आंखें चमक उठीं, मैं शॉल ओढ़कर बैठी थी, अभी कपड़े नहीं पहन पाई थी, शर्मा अंकल ने शॉल खींचकर फेंक दी और बोले, “राजीव, ये राधिका है, आज इसकी चूत का मजा ले रहे थे, तू भी शामिल हो जा, ये भूखी शेरनी है,” राजीव अंकल ने तुरंत कपड़े उतारे, उनका लंड शर्मा अंकल से भी बड़ा और मोटा था, देखकर मेरी चूत फिर लार टपकाने लगी।


शर्मा अंकल ने फिर मेरी चूत में अपना लंड ठूंस दिया—गीली, फिसलन भरी, हर धक्के में चपचप की आवाज, राजीव अंकल ने अपना विशाल लंड मेरे मुंह में पेला—मस्की गंध नाक में भर गई, मैं गोंगों… ग्ग्ग्ग… चूस रही थी, लार टपक रही थी, दोनों तरफ से पेली जा रही थी मैं, चूत और मुंह भरे हुए, शरीर पसीने से चिपचिपा—मन में सोच रही थी, दो लंड एक साथ, मैं रंडी बन गई हूं, लेकिन कितना मजा है ये, ये दो बूढ़े मेरे लंड के गुलाम बन गए हैं, मैं ही क्वीन हूं, शर्मा अंकल ने मेरी चूत में झड़ दिया, गर्म माल अंदर भर गया, फिर राजीव अंकल ने एक ही झटके में पूरा लंड अंदर ठूंस दिया, मैं चीखी, “आआआआईईईई… मर गई… फट गई चूत…” पर वो नहीं रुके, दनादन पेलते रहे।


मैं चिल्लाई, “राजीव अंकल… मैं भूखी रंडी हूँ… मेरी भूख मिटाओ… और तेज… फाड़ दो इसे… चोदो ऐसे जैसे तेरी आखिरी चुदाई हो,” वो और जोर-जोर से चोदने लगे, 30 मिनट बाद दोनों ने मेरी चुचियों पर माल गिराया, मैंने उंगली से उठाकर चाटा—“ये माल बर्बाद नहीं होने दूंगी, अंकल—स्वादिष्ट है तुम्हारा रस,” फिर हम तीनों नंगे ही खाना खाने बैठे, खाते-खाते दोनों के लंड फिर खड़े हो गए, मेरी चूत की आग अभी शांत नहीं हुई थी।


मैंने दोनों लंड मुंह में लिया, चूसी, फिर बारी-बारी से दोनों ने मुझे फिर चोदा, राजीव अंकल ने मुझे घोड़ी बनाया, मेरी गांड पर थप्पड़ मारा—लाल निशान छोड़ते हुए, “तेरी गांड कितनी टाइट है, राधिका—मुझे मारनी है इसे,” वो गरजे, मैंने कुछ नहीं कहा, बस कमर पीछे धकेली—पता था गांड मारने का दर्द चूत के मजा जैसा ही मीठा होता है, उन्होंने लंड पर थूक लगाया, धीरे-धीरे टिप अंदर दबाया—’आह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… जल रही है…’ लेकिन मैं रुकी नहीं, आगे-पीछे हिली, पूरा अंदर जाते ही दनादन ठोका—चूत से रस टपक रहा था, गांड की दीवारें कस रही थीं, मैं चिल्लाई, “हाँ अंकल… फाड़ दो मेरी गांड… और जोर से… आह्ह्ह ओह्ह्ह… ऊउईईई…” शर्मा अंकल ने भी गांड मारी, उनका लंड गांड में फिसलता हुआ, पसीने की महक कमरे में फैली, काफी देर की चुदाई के बाद उन दोनों ने अपना सारा माल एक साथ मेरे बूब्स पर निकाल दिया, मैंने फिर चाटा, हंसकर बोली, “अभी और चाहिए, अंकल?”


फिर हम तीनों नहाए, नंगे ही सो गए, रात में मेरी चूत फिर खुजली करने लगी तो मैंने राजीव अंकल का लंड चूसा और उन्होंने फिर मेरी चूत में गर्म माल भर दिया, उस दिन के बाद जब भी मन करता, मैं शर्मा अंकल के घर चली जाती, धीरे-धीरे मैं पूरी रंडी बन गई, शादी के बाद भी लंड लेना नहीं छोड़ा, अब पति के साथ-साथ देवर और ससुर का लंड भी लेती हूँ, वो सब मेरे आगे पानी भरते हैं, लेकिन मैं जानती हूं—ये मेरी ताकत है, मेरी भूख।

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