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पहले प्लेटफ़ार्म पर फिर ट्रेन में टी.सी. - Gay Sex Stories

प्रणाम दोस्तो, एक बार फिर से आपका गांडू प्रेम आपके लिए अपनी चुदाई लेकर हाज़िर है। मुझे बहुत ज़रूरी काम के लिए आगरा जाना पड़ा, एक तो पहले से ही स्टेशन पर ही एक लंड ने मेरी गांड गर्म कर दी, मेरी बुकिंग थी छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की लेकिन बीस नंबर वेटिंग में मिला था, मुझे वहाँ टी.सी। ने कहा था कि तुम काउंटर टिकट खरीद लो, जब ट्रेन चलेगी तो वहाँ ट्रेन वाले टी.सी को थोड़ा बहुत सेवा पानी देकर कोई सीट कन्फर्म करवा लेना।


मैंने उसकी बात मान ली, मैं काफी देर पहले स्टेशन चला गया था इसी वजह से कि टिकट लेनी थी, कन्फर्म भी तो करवानी थी। मैंने सोचा, अभी समय है, स्टेशन के सामने ठेके से मैंने क्वाटर खरीदा, दो उबले अंडे लिए, दो पैग खींचे, वापस प्लेटफोर्म पर आ गया।


मुझे नशा होने लगा, मैं एक बेंच पर बैठ गया। मैं बिळ्कुल आखिरी बेन्च पर बैठा था। मेरी नज़र अँधेरे से कुछ हलचल सी होती दिखी गौर से देखा एक मेरे जैसा कोई गांडू कुली को अपनी अदा से दीवार पर हाथ रख गांड को हिला कर एक हाथ पीछे लेजा बरमूडा के ऊपर से गांड को सहला रहा था, वो कुली देख रहा था कि यह लड़का क्या कर रहा है।


उसने कुली को इशारा सा किया और प्लेटफ़ार्म से नीचे उतर दीवार के पीछे चला गया। कुली ने अपने लुल्ले को धोती के ऊपर से पकड़ा खुजलाया, मानो उस लड़के की हरकत से उसका खड़ा था। वो भी मौका देख दीवार के पीछे गया, मैं धीरे से गया, दीवार की इस तरफ़ खड़ा हो गया।


कुली बोला- हाँ बे साले, क्या तब से गांड हिला रहा था?

“तुम कोई अनजान हो इस बात से? समझ कर यहाँ आ गए तो !’

“हाँ तो क्यूँ बुलाया?” मैंने धीरे से मुंडी आगे की, देखा उस लड़के ने उसका लुल्ला पकड़ लिया।

वहीं पाँव के बल बैठ गया। ठीक से लंड का आकार-रंग नहीं दिख रहा था। वो चुप्पे लगाने लगा।

“वाह साले, तुम तो माल हो ! मेरा तो पानी निकल जाएगा !”

लड़का खड़ा हुआ और बरमूडा थोड़ा खिसका कर उल्टा खड़ा होकर झुक गया, कुली ने थूक लगाया और लुल्ला घुसा दिया- मजा आया गांडू?

“हाँ, झटके लगा जोर जोर से !”

दो मिनट में ही कुली ने उसकी गांड को रस से भर दिया।

“उह कितना पानी निकला तेरे लुल्ले से !”

मैं वहाँ से हट गया, वापस आया, पव्वे में जो बचा था, थर्मोकोल के ग्लास में डाला, कोक मिलाया और खींच कर प्लेटफोर्म की आगे तरफ चलने लगा।


मेरी नज़र बुक स्टाल पर गई, वहाँ गया एक गर्म किस्सों की किताब निकाली, तभी मेरे पीछे भी कोई ग्राहक खड़ा था, उसका लंड मेरी गांड पर घिस रहा था। मैंने और किताबें देखनी शुरु कर दी। धीरे धीरे से गांड को पीछे धकेला ताकि उसको महसूस हो सके।

अब वो वहीं खड़ा खड़ा किताबें देखने लगा।


काफी भीड़ थी, ट्रेन चलने में बीस मिनट बचे थे, मैंने गाण्ड को और धकेला और इस बार गाण्ड को थिरकाया, उसका लंड अब हरकत में था, थोड़ा खड़ा हो चुका था। उसने मेरी गांड पर हाथ फेर दिया, दो तीन बार फेरा, मैं मुड़ा, मुस्कुराया और प्लेटफ़ार्म की उसी तरफ गया जहाँ दूसरे गांडू ने कुली को बुलाया था।


वो जल्दी से मेरे पीछे आ गया, समय बर्बाद किये बिना हम लिपट गए।

मैंने कहा- सिर्फ पन्द्रह मिनट हैं !

उसने लंड निकाला, मैंने पकड़ा, काफी बड़े आकार का था !

“कैसा लगा?”

“मस्त है !”

“घूम कर थोड़ा झुक जा !”

मैंने कहा- रुक !

जल्दी से बैठ कर चूसा, काफी थूक लगा कर चूसा।

“वाह यार, तू कमाल का है !”

मैंने भी लोअर खिसकाया और झुक गया। वो घुसाने लगा तो मैंने रोका और जेब से कंडोम निकाल कर उसे दिया।

उसने कहा- वाह, पक्का गांडू है !

“जल्दी कर, ट्रेन चलने वाली है !”

उसने झटका लगा कर लंड गांड के फ्रेम में उतार दिया, झटके लगाने लगा। अभी मुझे स्वाद आने लगा था कि उसका काम हो गया। मुझे गुस्सा बहुत आया लेकिन जल्दी थी, कुछ न बोला।

उसने अपना नंबर दिया, बोला- जल्दी में जल्दी काम तमाम हुआ ! कमरे में तुझे पूरा सुख दूँगा ! वापस आते ही मिलना !

मैं जल्दी से भागा ट्रेन की तरफ और अपने उस डिब्बे में घुस गया जहाँ मुझे उस टी.सी ने कहा था। तब उस डिब्बे में कोई भीड़ नहीं थी, मैं एक खिड़की वाली साइड बैठ गया। मेरी गांड गीली गीली सी हुई थी, उसको देने के बाद जल्दी से लोअर पहन लिया था।

बैग को ऊपर रखा और मैं बाथरूम में घुस गया, रुमाल से अपनी गांड को साफ़ किया और वापस सीट पर बैठ गया।

करते करते ट्रेन जालंधर पहुँच गई, वहाँ से काफी सवारियाँ चढ़ी, मुझे काफी डर भी था, बैठ तो गया, अब क्या सेवा पानी लेकर टी.सी मुझे सीट देगा? कहीं जुर्माना न लगा डाले !


लुधियाना से काफी यात्री चढ़े और मुझे वो सीट छोडनी पड़ी, खिड़की के पास वाली सीट खाली थी। लुधियाना से जब ट्रेन छूटी, तब रात हो गई थी, मैंने देखा दूसरी खिड़की वाली साइड से टी.सी धड़ाधड़ टिकट चेक करता आ रहा था। मेरी गांड फटने लगी, बिना लंड फटने लगी !


मैंने बैग खिड़की के पास रखा और उस पर बैठ गया। वो दूसरे डिब्बे में घुसने वाला था कि उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी, बोला- हाँ, तू यहाँ क्यूँ बैठा है?


मैं खड़ा हुआ, बोला- यह काउंटर टिकट खरीदी थी, वहाँ टी.सी साब ने कहा था कि डिब्बे में आपसे किसी खाली सीट पर एडजस्ट

करवाने की रिक्वेस्ट करने को कहा।


वो कड़क कर बोला- यह तेरे बाप की ट्रेन नहीं है, किसी ने कह दिया और तू यहाँ बैठ गया, जुर्माना लगेगा, वरना साथ में अगले स्टेशन उतार पुलिस को दे दूँगा।


“सर, देखो कुछ कर दो, मैं फीस दे रहा हूँ !”

“तुम लोग ऐसे समझ लेते हो कि जैसे टी.सी गांड मरवाने के लिए भरती किये हैं?”

“नहीं सर, मैं ऐसा क्यूँ समझूँगा, आपके हाथ में ही तो सब होता है !’

“अब यार गांडू चार पांच सौ निकाल !”

“इतने नहीं हैं, गांडू कह लो, लेकिन सीट दे दो !”

“साले, तुझे गांड मरवाने को कह दूंगा तो क्या फिर भी यही कहोगे कि चाहे गांड मार लो, सीट दे दो !’

मैंने इधर उधर देखा, धीरे से बोला- हाँ सर, तैयार हूँ उसके लिए ! पूरे मजे दे दूँगा !

वो हैरानी से मेरा चेहरा देखने लगा।

“आपकी ड्यूटी सफल कर दूँगा !”

“यार तुम भी ना ! सीट देखता हूँ तेरे लिए ! चल तब तक मेरे साथ !”

दो डिब्बे आगे जाकर उसने मुझे अपने केबिन में सीट पर बिठाया, बोला- मैं चेक करके आता हूँ, फिर देखता हूँ कोई खाली हुई तो तुझे दे दूँगा ! जो कहा था उसपे कायम रहेगा ना?”

“हाँ हम दो जने होंगे !”

“चलेगा सर !”

चल अब बेफ़िक्र होकर लेट जा !”


सामान रख मैंने केबिन का छोटा सा दरवाज़ा बंद किया, पर्दा आगे कर दिया। पौने घंटे बाद वो टी.सी आया और बोला- साला पक जाते हैं यह ड्यूटी करते करते हुए !


“यह देख !” उसने लिस्ट दिखाई, एक सीट नंबर को पेन से गोल किया, बोला- यहाँ से फ्री होकर तुम इस डिब्बे की इस सीट पर आराम करना !


वो मेरे बराबर में बैठा था, मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखते हुए सरकाया, बोला- धन्यवाद सर, आपने मेरी सुन ली।

मैंने हाथ और आगे सरकते हुए उसके लंड को पकड़ लिया, मसलने लगा। उसका खड़ा होने लगा तो मैंने उसकी जिप खोल ली, उसके लंड को निकाला।

काला कोबरा था, काफी बड़ा लंड था !

“कैसा लगा?”

“बहुत ज़बरदस्त है !”

मैंने मुँह में लिया, वो पागल होने लगा।

तभी दूसरा टी.सी आया- वाह, तो यह है माल ! यह तो तेरा मुँह में डालकर बैठा है !

मैंने टीशर्ट उतारी, वो मेरी लड़की जैसी नर्म छाती देख बोला- तुम लड़का कहीं से नहीं लगते !

दोनों ने मिलकर मेरे मम्मे लाल कर डाले, मैं पूरी नंगी उनके लंड चूस रही थी।

पहले वाले ने कहा- मुड़ जा, घोड़ी बन !

जैसे ही मैं बना, वो डालने लगा।

“रुको !” न मैंने उनको भी कंडोम दिए।

“वाह मेरे लाल !” उसने लगाया और घुसा दिया। थोड़ी चुभन हुई, फिर ज़न्नत दिखने लगी। दूसरा सामने से मेरे मुँह को चोद रहा था।

जैसे उसने गाण्ड में अपना पानी निकाला तो दूसरे वाले ने घुसा दिया।

दोनों ने मुझे एक एक बार ठोका, बोले- अगला स्टेशन अम्बाला है, उसके बाद काफी आगे रुकेगी। अभी जा रहे हैं, टिकेट चेक करके लौटेंगे, यहीं सो जा !

फ्री होकर दोनों आये और दुबारा मुझसे चुसवाने लगे और फिर चोदा।

दोस्तो, मेरा सफर सफल हो गया !

जल्दी अगली Gay Sex Stories लेकर हाज़िर हो जाऊँगा !

आपका प्यारा प्रेम गाण्डू

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