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दीदी को उंगली करती देखा तो उसने मुजे बुला लिया - Antarvasna Sex Story

दोस्तो, मेरा नाम आदर्श है और यह बदला हुआ है.

नाम बदल कर सेक्स कहानी को लिखने का यह कारण है क्योंकि मैं घटना का जिक्र कर रहा हूँ वह उसी शहर की जिसमें मैं रहता हूँ.

इसी लिए नाम बदलकर लिखना पड़ा.


हम लोग उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं.


यह कहानी दरअसल सन् 2013 की जरूर है पर एकदम सच्ची है.

इस Xxx दीदी सेक्स कहानी में कोई बनावटी बात नहीं लिखी गई है.


मेरी उम्र उस टाइम 19 साल होने के कगार पर थी.

उस टाइम मैं नया नया जवान हो रहा था.


यह घटना मेरे बड़े पापा की लड़की की है.

उसका नाम भी बदला हुआ शालिनी लिख रहा हूँ.


उस समय दीदी की उम्र लगभग 25 साल रही होगी.

उनके बड़े-बड़े दूध बहुत ही मस्त थे.

दीदी की चूचियों की साइज़ लगभग 32 इंच रही होगी.


पूरे फिगर की यदि बात लिखूँ तो दीदी का 32-28-36 फिगर था जो किसी को भी एक नजर में ही उत्तेजना से भर दे.


उस समय की बात है, जब मेरे घरवाले एक साथ रहते थे पर कुछ कारणों से हम लोग अलग अलग हो गए थे.


उस समय मेरे मम्मी-पापा पड़ोसियों की बातों का बहुत आदर करते थे इसलिए उनकी हर बात माननी पड़ती थी.


हमारे मम्मी-पापा अपने ताई ताऊ की बातों को आधार मानकर उनके कामों में हाथ बंटाया करते थे.


उस समय मैं भी कम उम्र का था और ताई ताऊ की बेटी की बातों को भी मानते थे क्योंकि हम सभी की इज्जत करते थे.


चाहे खेतों का काम हो या बाहर से सामान लाना हो, सब काम हम लोग ही करते थे.

मेरे परिवार में मम्मी-पापा, दो बहनें और मैं अकेला हूँ.


मेरे पापा ज्यादा पैसे नहीं कमा पाते थे इसलिए अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हम ताई ताऊ या छोटे चाचा के घर चले जाते थे … जैसे टीवी आदि देखने के लिए.


कभी-कभी बड़े पापा की बेटी शालिनी को समोसे खाने का बहुत मन करता था तो वे हमसे कहकर समोसे मँगा लेती थी और बदले में मुझे एक-दो रुपये दे दिया करती थीं.


इस तरह हमारे और उनके घर में आना-जाना बना रहा जिससे हमें उनसे बात करने का मौका मिलता रहा.


एक दिन अचानक ऐसा हुआ कि मेरे बड़े पापा के दो लड़के यानि के मेरे बड़े भाई पढ़ने के लिए बाहर चले गए थे.

शालिनी दीदी घर में अकेली रह गई थीं.


उस समय गांव से कुछ दूरी पर एक कॉलेज था, जहां दीदी पढ़ने जाती थीं.

उनका रोज़ ही कॉलेज तक आना-जाना रहता था.


एक रविवार को मेरी बड़ी मम्मी खेतों की तरफ गई थीं.

वे यह देखने गई थीं कि कोई काम बाकी तो नहीं रहा है.


मेरी बड़े पापा कोर्ट में मुंशी का काम करते थे तो वे अपने किसी काम से वकील के पास चले गए थे.


शालिनी दीदी घर में अकेली थीं.


हमारे घर एक मंज़िला और दो मंज़िला बने हुए हैं जिससे हम दूसरी मंज़िल से नीचे देख सकते थे.


उस दिन घर में कोई नहीं था, सिवाए मेरे और शालिनी दीदी के.


मेरी सगी दो बहनें बाहर घूमने गई थीं, पापा बाज़ार गए थे और मम्मी घर के कामों में व्यस्त थीं.

मैं छत पर था और शालिनी दीदी अपने घर में थीं.


अचानक ऐसा हुआ कि शालिनी दीदी अपने घर की नीचे वाली छत पर आकर बैठ गईं.

उन्होंने पहले एक चादर लाकर बिछाई और उस पर बैठ गईं.


दोस्तो, क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया कि किसी को ऊपर वाली छत से चुपके से देख रहे हो और उसे पता ही न चले कि नीचे कोई क्या कर रहा है?

आपने भी शायद ध्यान दिया होगा कि बिना बताए किसी को देखते हैं कि वह क्या कर रही है या क्या कर रहा है!


वैसे ही मैंने भी बिना बताए उनकी हरकतों को ऊपर से देखा कि वे क्या कर रही हैं.

देखते ही देखते मैं दीदी की गतिविधियों में बदलाव देखने लगा.


जैसे उन्होंने अपनी चादर लाकर बिछा दी और उसी पर लेट गईं.


हालांकि उस समय हल्की ठंड थी, तो बाहर धूप में लेटने में मज़ा आता था.

इस दौरान उन्हें बिल्कुल पता नहीं चल सका था कि कोई छत से उन्हें निहार रहा है.


कुछ समय तक मैं उन्हें एकटक नजरों से देखता रहा और दीदी आराम से लेटी रहीं.

लगभग दस मिनट बाद एक अलग ही नजारा सामने आया.

मेरी आंखें एकदम भौचक्की रह गईं कि दीदी ये क्या कर रही हैं?


उन्हें भी जरा सा अंदाज़ा नहीं था कि ऊपर से कोई उन्हें देख सकता है.


शायद इसी लिए उन्होंने बिना किसी की परवाह के अपनी सलवार के अन्दर हाथ डाला.

हालांकि उनका नाड़ा थोड़ा ही खुला था, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने उसे पूरी तरह खोल दिया.


मेरी आंखों के सामने ऐसा नजारा मैंने जीवन में पहली बार देखा था.

उस समय मेरी उम्र उन्नीस साल हो गई थी और मैं जवानी की दहलीज पर था.


ऐसा दृश्य देखते ही मेरी आंखें एकदम से सहम गईं कि यह मैं क्या देख रहा हूँ?

इससे पहले मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था.


तभी मेरी जवान शालिनी दीदी और गर्म हो गई थीं और उन्होंने अपने हाथ को और ऊपर-नीचे करने शुरू कर दिया .


मैं ऊपर से उन्हें यह सब करते देख कर एकदम मदहोश होने लगा, मेरा जी कर रहा था कि हट जाऊं, लेकिन देखने का लोभ मैंने नहीं छोड़ा.


धीरे-धीरे दीदी अपने दूसरे हाथ से अपने एक दूध को भी पकड़ कर दबाने लगीं.

आप यकीन मानो … मैंने उस समय पहली बार किसी पच्चीस साल की युवा सेक्सी लड़की शालिनी दीदी की झांटों को देखा था.


दीदी की झांटें एकदम काले रंग की थीं और गोरी चुत के इर्द गिर्द उनकी झांटों का घुँघरालापन मेरी आंखों को क्या मदहोश कर रही थीं.

मेरा लंड शालिनी दीदी की चूत को सलामी देने लगा था.


अगर उस वक्त आप मेरी जगह होते, तो यकीनन छत से कूद जाने की सोचते.

लेकिन न तो आप ऐसा कर सकते थे, न मैं.


कुछ टाइम बीतने के बाद शालिनी ने अपनी सलवार को कमर के नीचे किया और पैंटी को भी नीचे सरका दिया.

दीदी की पैंटी सफेद रंग की थी.


जब उन्होंने अपने हाथों से पैंटी के अन्दर डालकर चूत को मसला तो उनकी चुत से चमकता हुआ पानी निकल रहा था जो उनकी पैंटी को भिगो रहा था.


दोस्तो, आप लोग जानते होंगे कि जब सफेद रंग पर पानी पड़ता है, तो जितना कपड़ा भीगता जाता है, उससे अन्दर का सब कुछ दिखने लगता है.

शालिनी दीदी की पैंटी भी भीग गई थी तो अन्दर का सब दिखने लगा था.


फिर जब दीदी ने अपनी सलवार और पैंटी को कमर से नीचे किया, तो क्या मस्त नजारा था.

मेरा लंड तो एकदम कड़क होकर सातवें आसमान को देखने लगा था.


उस समय शालिनी दीदी का सर दूसरी तरफ था, जिस ओर से गली में से आने-जाने का रास्ता दिखता था.

वे उसी तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई आ न जाए. इसी वजह से दीदी ने मेरी तरफ ध्यान ही नहीं दिया.


शालिनी दीदी की छत ऐसी थी कि बाहर से तो कोई नहीं देख सकता था.

हां अगर कोई देख सकता था, तो वह ऊपर से ही देख सकता था.


जब दीदी ने अपने मम्मों को कुर्ते और ब्रा से जुदा किया, तो बेहद न/शीला कर देने वाला नजारा था.


दीदी की चूचियां एकदम गोरी-गोरी किसी मर्द के हाथों से मसलने के लिए तड़प रही थीं.


हालांकि उस वक्त अपनी चूचियों को मसल तो शालिनी दीदी ही रही थीं लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था कि कब उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर लूँ.


कसम से दोस्तो, ऐसा नजारा मुझे पहली बार देखने को मिला था.

आप खुद सोच सकते हैं कि मेरा क्या हाल हुआ होगा.


जैसा कि मैंने आपको बताया कि मेरी दीदी की चुत काली झांटों से चारों तरफ से घिरी हुई थी.


दीदी ने अपनी ब्रा और कुर्ते से चूचियों को बाहर निकाल दिया था तो उनके दोनों गुप्त अंग मेरी नजरों में हवस भर रहे थे.


मैं भूल गया था कि मेरी नजरों के सामने मेरी बहन नंगी है.


धीरे-धीरे जवान शालिनी दीदी ने अपनी पैंटी और सलवार को भी अपनी टांगों से निकाल कर बाहर कर दिया.

अब वे पूरी तरह से नंगी पड़ी थीं और शायद चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थीं.


लेकिन सवाल यह था कि दीदी को लंड कहां से मिलता?


ऊपर वाले का करिश्मा देखो दोस्तो …


अचानक से मुझे बैठे-बैठे मेरे पैर में दर्द होने लगा था तो मैंने सोचा कि धीरे से उठकर कहीं और चला जाऊं.

लेकिन हुआ कुछ यूँ कि शालिनी दीदी को शक हो गया था कि कोई ऊपर वाली छत से मुझे छुपकर देख रहा है.


हालांकि उनको बस शंका थी लेकिन उनकी शंका उस वक्त यकीन में बदल गई जब उन्होंने मुझे उठकर जाते हुए देख लिया.


फिर भी दीदी ने कुछ बोला नहीं … यह बात हैरान कर देने वाली थी!


मैं उधर से उठकर दूसरी जिस जगह पर बैठा था उन्होंने मेरी पोजीशन को देख लिया.

मैं वहां पर जाकर बैठ गया और छुपी नजरों से शालिनी दीदी को देखते रहे.


जिधर मैं बैठा था, उसके बगल में एक दिवाली की मोमबत्ती लगी हुई थी, जो अचानक से मेरे हाथ से लगकर नीचे गिरी और दीदी के सिर पर जाकर गिर गई.


उन्होंने मुझे दोबारा देख लिया.


चूंकि दीवाली कुछ दिन पहले ही बीती थी, उस वजह से कुछ मोमबत्तियां रह गई थीं.


जब एक मोमबत्ती दीदी के सिर पर जाकर लगी तो उसने मुझे देख लिया और आवाज देकर मुझे बुला लिया.


‘आदर्श तू छत पर है ना?’ मेरी तरफ देख रहा था न!’


दीदी की आवाज सुनते ही मेरी हालत जवाब दे गई थी.

फिर शालिनी दीदी ने मुझे नीचे आने का कह कर अपने पास बुला लिया.


मैंने उनकी आवाज को सुनकर अनसुना कर दिया.


दीदी ने मुझे तीन-चार बार बुलाया लेकिन मैं नहीं बोला.


आखिर में उन्होंने कह ही दिया- अगर तू मेरी तरफ नहीं देख रहा था, तो मैं चाची से कह दूँगी कि आदर्श मुझे नहाते हुए घूर रहा था!


उनकी यह बात सुनकर मेरा दिल अब जोर-जोर से धड़कने लगा था.


शालिनी दीदी बोलीं- तू मेरी तरफ देख रहा था कि नहीं? आखिरी बार पूछ रही हूँ!

यकीन मानो भाई … बहुत कोशिश करने के बाद मैंने दीदी की तरफ देखा.


जब देखा, तो मेरी आंखों के सामने एक खुला नजारा था.

शालिनी एक हाथ अपनी चूत में डाले हुई थीं और दूसरे हाथ से अपनी चूची दबा रही थीं.


जब मैंने उन्हें ऐसे देखा तो मेरे हाथ-पैर कांप रहे थे.

लेकिन उस नजारे को देखने के बाद कुछ अलग ही माजरा था.


दीदी ने मुझे आंख मारी और इशारे से बोलीं- नीचे आ, मुझे तुझसे काम है!


बड़ी कोशिशों के बाद मैं उनकी छत पर गया.

पहले तो मैं सोचा कि कहीं दीदी मुझे बुलाकर मारे ना. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.


दीदी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया, बैठाया और बोलीं- आदर्श सच सच बता बाबू, तूने क्या क्या देखा?

शालिनी दीदी मुझे शुरू से ही बाबू बुलाती हैं.


मैंने कहा- दीदी क…कुछ नहीं, बस छत पर आया था … मुझे थोड़ा-सा काम था.


शालिनी दीदी बोलीं- कौन सा काम था तुझे छत पर?

मैंने कहा- कुछ नहीं दीदी … व…वह मोमबत्ती थी … जो नहीं जली थी, मैं उसे लेने आया था. उसी समय आपको देख लिया. आप कपड़े उतार कर नहाने जा रही थीं और आपने मुझे देख लिया.


शालिनी दीदी ने पूछा- बाबू सच बता, तूने क्या क्या देखा? बता दे, फिर जा!

मैंने कहा- दीदी, आप कपड़े उतार रही थीं, वही देखा.


यह सब कहते हुए मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी.

लेकिन थोड़ी हिम्मत करके मैंने बात आगे बढ़ाई.


फिर शालिनी दीदी ने पूछा- बाबू और तूने देखा क्या क्या … यह तो बता, नहीं तो चाची को बता दूँगी.


डर के मारे मैंने बता दिया- मैंने आपकी नीचे वह देखी.

वे बोलीं- क्या वह नीचे देखी?


मैंने कहा- नीचे का अंग!

वे बोलीं- नाम तो बता उस अंग का?


मैं नहीं बता रहा था लेकिन मेरे अन्दर डर था कि अगर नहीं बताया, तो कहीं दिक्कत न हो जाए.

इसलिए मेरे मुँह से निकल गया- आपकी बुर देखी है.


यह सुनकर दीदी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई, फिर चली गई.

फिर दीदी ने पूछा- कहां होती है वह … बता?


मुझे कुछ देर के लिए समझ ही नहीं आया कि ये क्या पूछ रही हैं.

वे मुझसे बड़ी हैं, फिर भी ऐसी बातें पूछ रही थीं.

बड़े छोटे का थोड़ा ध्यान तो रखना चाहिए था, लेकिन नहीं.


मैं थोड़ा डर भी रहा था.


उन्होंने कहा- बाबू सीधे सीधे बताएगा या फिर चाची के पास जाऊं?


मैं डर गया था.

मैंने सोचा कि बता देने में ही फायदा है, नहीं तो कहीं ये बता देंगी तो दिक्कत हो जाएगी.


मैंने धीरे-धीरे उनकी सारी बातों का जवाब दे दिया.


उन्होंने पूछा- बुर कहां होती है … हाथ रख कर बता?

मैंने दीदी की टांगों के बीच की जगह पर हाथ दिखाकर बता दिया.


शालिनी दीदी बोलीं- सही से हाथ रखकर बता न और उंगली से दिखा कि बुर कहां है?


दोस्तो यकीन मानो … जो मेरे और जवान शालिनी दीदी के बीच वार्तालाप हुआ था, वह एक एक शब्द बिल्कुल सच है.


दीदी ने दोबारा से पूछा- बताओ न तुमने कहां-कहां देखा है आदर्श? बताओ!

उन्होंने बोला, तो मैं शर्म के मारे थोड़ा हिचक रहा था … फिर भी बता दिया.


दीदी ने फिर कहा- दिखाओ मुझे!

मैंने कहा- दीदी, आप तो खुद भी देख सकती हैं न.


उन्होंने कहा- तुमने देखा है तो तुम ही दिखाओ. हम तो रोज़ देखते हैं.

मैं चुप था.


वे बोलीं- दिखा रहे हो या नहीं?

मैंने सोचा कि इन्हें दिखाना तो पड़ेगा ही … नहीं तो घर में बता देंगी फिर दिक्कत हो जाएगी.


मैंने धीरे से उनकी सलवार को धीरे-धीरे नीचे किया और बताया- देखो यहीं पर है.

मैंने पैंटी को नहीं निकाला था.


उन्होंने कहा- कहां कुछ दिख रहा है … तुमने यही देखा है?

मैंने धीरे से कहा- दीदी जाने दो न!


दीदी ने कहा- बाबू बता भी दे … नहीं तो ढेर पछताएगा!

मैंने सोचा कि अब इन्हें सब बता देने में भलाई है.


मैंने दीदी की पैंटी को नीचे किया और कहा- यही देखना चाहती थीं न आप?


वे बोलीं- हां रे बाबू, अब यह भी बता न कि तुमने और क्या क्या देखा था?


मैंने झट से दीदी की ब्रा और कुर्ता को ऊपर कर दिया.


उसने मुझे देखते हुए कहा- ये क्या है बेटा … बड़ी जल्दी है तेरे को क्या?

मैंने कहा- नहीं दीदी … आप पूछेंगी ना दोबारा … इसलिए जल्दी से आपको बता दिया.


शालिनी दीदी हंस कर बोलीं- और मैं क्या कर रही थी?


दोस्तो सच बता रहा हूँ कि अब मेरी डर और घबराहट थोड़ा कम हो गयी थी.


मैं भी गर्म हो गया था तो मैंने भी झट से दीदी की चूची को पकड़ लिया और दबाने लगा.


शालिनी दीदी बोलीं- आह बाबू धीरे धीरे कर न!


अब उनके सारे सवालात ख़त्म हो गए थे.

वे बस पागलों की तरह बेड पर पड़ी थीं और धीरे धीरे आहें भर रही थीं.


वे बोल रही थीं- आह बाबू जरा धीरे धीरे कर न आह आह.


फिर कुछ मिनट बाद बोलीं- और क्या कर रही थी यह भी बता न!


अब मैं उनकी चूत में उंगली करने लगा और धीरे धीरे वे बेहद गर्म हो गईं.


कुछ ही पलों बाद दीदी की चूत से पानी निकलने लगा और वे गर्म आहें भरने लगीं.


‘ओह बाबू और जोर से कर … आह और जोर से कर .. आह … उह हह उह् उफ्ह ऊफ्ह … हये रे बाबू बस कर तू लेट जा अब!’


जैसे ही मैं लेटा … कसम से वे मेरे कान में आकर बोलीं- देख बाबू ये बात किसी को कहना नहीं … नहीं तो सोच लेना … मैं भी घर में सब बता दूंगी!

मैंने कहा- नहीं दीदी यह मैं किसी से नहीं कहूँगा!


जैसे ही मैं लेटा, वैसे ही वे मेरे ऊपर आ गईं और मुझे सहलाने लगीं.

वे बोल रही थीं- डार्लिंग बाबू … मुझे आज मज़ा मिलेगा ना?


मैं तो मन ही मन सोच रहा था कि आज तो मैं तुम्हें ऐसा चोदूंगा कि पूछो मत.

मेरी नई चढ़ती जवानी है और नए लंड का रस चूसोगी तो मस्त हो जाओगी.


हां दोस्तो, बता रहा हूँ … क्या मस्त वाली फीलिंग आ रही थी.


दीदी लंड के ऊपर से अपना हाथ धीरे-धीरे अन्दर डालने लगीं और लंड को सहलाने लगीं.


वे बोलीं- आज तेरा तो लाल हो जाएगा बाबू!

मैंने पूछा- क्या?

उसने कहा- तेरा लंड!


यह कह कर उन्होंने बड़ी ज़ोर से मेरे लंड को बाहर निकाला और चूसने लगीं.


वे बोलीं- आह कैसा है तेरा नुन्नू … बाबू? जैसा तू है न … वैसा ही तेरा है!


मेरा लंड सोया हुआ था. धीरे-धीरे जब लंड खड़ा हुआ तो उन्होंने भी कहा- क्या लंड है तेरा?


वे लौड़े को चूसती हुई आहें भर रही थीं- आह बाबू रे … अब बस … अब अपना लंड डाल दे इस बुर के अन्दर!


दीदी को भी मज़ा लेने की बड़ी जल्दी थी क्योंकि उनकी बॉडी पूरी तरह चुदने के लिए तैयार थी.

वे भी एकदम गर्म हो गई थीं.


बिना देर किए मैंने भी उनको चुदाई के लिए तैयार कर दिया था.


दीदी ने कहा- अरे बाबू, सुन ना … थोड़ी चूत को मसल ना अपने मुँह से!


मैंने भी उनकी चूत को मसलना शुरू किया और उनकी मस्त टाइट चूचियों को दबा-दबाकर उन्हें मज़ा दे रहा था.


मैं उन्हें और ज्यादा गर्म कर रहा था.


कुछ देर बाद वे उठकर बोलीं- बाबू, अब ऊपर आ जा ना!


मैं दीदी की एक चूची को मुँह में भर लिया, क्या मस्त फीलिंग आ रही थी.


Xxx दीदी तो एकदम पागल सी हो गई थी.

चूची से मुँह हटाकर लिप-टू-लिप किस करने लगीं.


अब उस वक्त वह मुझे एक रंडी लगने लगी थीं.

बड़े ही मुलायम होंठ थे साली के … क्या मस्त मजा दे रही थीं. उसकी गांड तो एकदम मॉडल जैसी थी.


मैं एकदम बड़के वाले चोदू तरीके से लेटे हुए थे और उन्हें किस कर रहे थे.

साथ ही दीदी की गांड को थप-थप करके अपने दोनों हाथों से दबा दबा कर मजा ले रहे थे.


ऐसे ही कुछ मिनट तक करने के बाद वे खुद से ऊपर आ गईं और बोलीं- अब और नहीं रुकेंगे बाबू!


जैसे ही उन्होंने लंड को चूत पर सटाया, वैसे ही वे पागल हो गईं.

वे बोलीं- बाबू रे डाल दे अन्दर … आह!


मैंने कहा- रुको ज़रा!

मैंने उनकी चूत पर अपने लंड को रगड़ा और फिर पूरा साढ़े छह इंच का लंड एकदम में उनकी चूत में घुसा दिया.


वे रोने लगीं और बोलीं- आह बाबू निकाल दे … नहीं तो मर जाऊंगी.

मैंने धीरे से निकाला, तो वे आराम से सांसें लेने लगीं और बोली- साले तेरा लंड तो घोड़े का लंड है. तू तो अभी जवान हो रहा है … मेरी तो फाड़ ही देगा!


मैंने कहा- हां दीदी … मजा आया?

अब वे थोड़ी गुस्सा हुईं और बोलीं- आह साले अब दीदी नहीं बोल कुत्ते … अभी बस जानू या रंडी बोल … क्योंकि अभी बस चुदाई … मादरचोद … दीदी वीदी बाहर बोलना!


मैंने दूसरी बार उनकी चूत में लंड लगाया और धीरे-धीरे अन्दर घुसेड़ा!

वे बोलीं- आह हां बाबू ऐसे ही कर!


जैसे ही मैंने चोदना शुरू किया, वे बोलीं- उफ्फ्फ … अह अह अह … हाय रे हाय चोद साले बाबू … और इस बुर को चोद कर फाड़ दे आह साली बुर को भोसड़ा बना दे और गांड भी मार ले मेरी.

वे बोलती रहीं और दीदी सेक्स का मजा लेती हुई बीस मिनट बाद झड़ गईं.


फिर वे ढीली सी आवाज में बोलीं- बाबू अब बस कर … नहीं तो मम्मी खेतों से वापस आ जाएंगी!

वे झड़ गई थीं और मैं भी लंड से पानी फेंक चुका था.


उन्होंने मेरे सीने पर सिर रखा और थोड़ा आराम करने के बाद मेरे कान में बोलीं- आज से तू मेरा पति है, क्योंकि पति ही ऐसे चोदते हैं. रात में आ जाना, क्योंकि मेरे यहां कोई नहीं रहता. तेरी बड़ी मम्मी और बड़े पापा नीचे सोते हैं. मैं रात में छत वाले कमरे में सोती हूँ.


मैं अपने घर में आ गया.


रात में करीब 11 बजे दीदी ने छत पर सीढ़ी लगाई हुई थी.

उस वक्त मैं खाना खाकर उसी पल के इंतज़ार में छत पर टहल रहा था.


दीदी ने कहा था कि जब मैं अपनी छत पर गाने धीमी आवाज में बजाऊं तो तुम सीढ़ी से नीचे उतर आना.


उसी वक्त गाना बजने लगा.

मैं झट से दीदी की छत पर आ गया.


दोस्तो, सच बता रहा हूँ कि उस रात मैंने दीदी को बहुत मज़ा दिया और चुदाई भी जमकर हुई.

उस रात की सेक्स कहानी को मैं बाद में लिखूँगा कि मैंने दीदी को कितनी बार चोदा और हमारी चुदाई कहां कहां हुई.


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